राहुल गांधी के विवादित बयान, स्वीडन का हवाला देते हुए कहा, भारत लोकतांत्रिक देश नहीं रहा

न्यूज़ डेस्क : कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत लोकतांत्रिक देश नहीं रहा है। यह बात उन्होंने स्वीडन के एक मीडिया संस्थान की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कही।  राहुल गांधी ने डेमोक्रेसी के बारे में स्वीडन के एक मीडिया संस्थान की रिपोर्ट का जिक्र किया। इसमें भारत में लोकतंत्र के दर्जे को घटाकर इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी चुनावी एकतंत्रताया चुनावी निरंकुशता कर दिया है।

 

 

 

राहुल गांधी ने गुरुवार को अपने ट्वीट के साथ एक फोटो भी साझा किया। इसमें लिखा हुआ है कि पाकिस्तान की तरह अब भारत भी निरंकुश देश है। स्वीडन की संस्था वी-डेम ने अपनी रिपोर्ट में भारत में लोकतंत्र की स्थिति पाकिस्तान जैसी और बांग्लादेश से भी खराब करार दी है। उसने कहा कि भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र से चुनावी निरंकुशता तक पहुंच गया है।

 

 

फ्रीडम हाउस ने भी घटाया था दर्जा, भारत ने की थी कड़ी आलोचना

इससे पिछले सप्ताह भारत ने अमेरिकी वॉचडॉग फ्रीडम हाउसकी रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, जिसमें भी भारत के लोकतांत्रिक दर्जे को घटाया गया था।  इस अमेरिकी संस्था ने भारत में लोकतंत्र व मुक्त समाज के दर्जे को घटाकर आंशिक रूप से मुक्त करार दिया था।  विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था कि अमेरिकी संस्था का राजनीतिक फैसला अनुचित है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी का हवाला देकर कहा कि भारत जिस ढंग से इससे निपटा है, उसकी चहुंओर तारीफ हो रही है। भारत की संक्रमण दर व मृत्यु दर बहुत कम है।  फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट के कवर पेज पर भारत का गलत नक्शा प्रकाशित किया। इसे लेकर भी उसकी आलोचना हुई थी। यह अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्था है।

 

 

 

फ्रीडम हाउस ने रिपोर्ट में यह कहा था

फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021- डेमोक्रेसी अंडर सीजमें कहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार व उसके राज्य स्तरीय सहयोगी दलों ने इस साल अपने आलोचकों पर कार्रवाई करती रही। सरकार के सख्त लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी श्रमिकों को अनियोजित व खतरनाक विस्थापन का सामना करना पड़ा।

 

 

भारत ने कहा- हमें प्रवचन की जरूत नहीं

इसके जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत में सशक्त संस्थान हैं और सुस्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं हैं। हमें उन लोगों के प्रवचन की जरूरत नहीं है, जिन्हें उनके मूलभूत अधिकार तक नहीं मिलते हैं।

 

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