नई दिल्ली । पुराने किले में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ थी या नहीं, इसके साक्ष्य जुटाने के लिए 2014 में हुई खोदाई का स्थल संरक्षित होगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने इसकी अनुमति दे दी है। माना जा रहा है कि मिट्टी से ढंके जा चुके इस स्थल के लिए शीघ्र ही फिर से खोदाई की जाएगी। टीन का छत बनाकर इसे संरक्षित किया जाएगा। खोदाई में निकली ऐतिहासिक चीजों को यहां जनता के लिए प्रदर्शित भी किया जाएगा।
बता दें कि विशेषज्ञों के अनुसार, 2014 में हुई खोदाई में जो रिंगवेल (कुएं) मिले थे, ये आज से 23 सौ साल पहले से लेकर 3 हजार साल पहले तक प्रचलन में थे। मौर्य काल के अलावा पांडवों के समय में भी ये रिंगवेल थे। हस्तिनापुर पर एएसआइ के पूर्व महानिदेशक प्रो.बीबी लाल द्वारा लिखित पुस्तक में भी रिंगवेल का जिक्र है। इसमें बताया गया है कि गड्ढे की खोदाई कर पक्की मिट्टी के रिंग बनाकर सेट किए जाते थे। मौर्य काल के बाद इनका प्रचलन बंद हो गया।
कुछ माह पहले केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की अपर सचिव सुजाता प्रसाद को एएसआइ के महानिदेशक के पद की जिम्मेदारी भी दी गई थी। उन्होंने जुलाई में पुराना किला स्थित खोदाई वाले स्थल का निरीक्षण किया था और एएसआइ के अधिकारियों से विस्तार से जानकारी ली थी। उन्होंने इस खोदाई स्थल को संरक्षित किए जाने का सुझाव दिया था। प्रसाद अब संस्कृति मंत्रालय की ओर से एएसआइ के मामले देखती है।
कब कब हुई खोदाई
पांडवों की राजधानी का नाम इंद्रप्रस्थ था, इसके साक्ष्य जुटाने के लिए 1955 और 1969 से लेकर 1973 तक इस किले में खोदाई हुई। इसके बाद भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका कि इस टीले को आधिकारिक रूप से इंद्रप्रस्थ माना जाए या नहीं। तीसरी बार खोदाई 9 जनवरी 2014 से 30 जून 2014 तक चली।
News Source: jagran.com
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