नई दिल्ली/चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की कड़ी आलोचना करते हुए इसे भाषाई विविधता के लिए खतरा बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस नीति में हिंदी और संस्कृत को अत्यधिक प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे उत्तर भारत की 25 से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।
स्टालिन ने कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है, जहां विभिन्न राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं की अपनी एक समृद्ध परंपरा और पहचान है। लेकिन नई शिक्षा नीति में हिंदी और संस्कृत को बढ़ावा देने से अन्य भारतीय भाषाओं की अनदेखी हो रही है। उनका मानना है कि यह नीति उत्तर और दक्षिण भारत दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है, क्योंकि यह स्थानीय भाषाओं को पीछे धकेल सकती है और एक “भाषाई एकरूपता” थोपने की कोशिश कर रही है।
स्टालिन ने यह भी कहा कि यह संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है, जिसमें प्रत्येक राज्य को अपनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की स्वतंत्रता दी गई है। उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार NEP में बदलाव करे और सभी क्षेत्रीय भाषाओं को समान अवसर दे।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के अनुसार, बृजभाषा, अवधी, मगही, भोजपुरी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, कुमाऊंनी और गढ़वाली जैसी कई उत्तर भारतीय भाषाएँ धीरे-धीरे मुख्यधारा से बाहर हो रही हैं। सरकार द्वारा हिंदी और संस्कृत पर अधिक ज़ोर देने से इन भाषाओं के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
स्टालिन ने इस संदर्भ में संविधान की आठवीं अनुसूची का भी ज़िक्र किया, जिसमें वर्तमान में 22 आधिकारिक भाषाएँ शामिल हैं। उनका मानना है कि अन्य भाषाओं को भी इसमें शामिल कर उनकी रक्षा की जानी चाहिए।
तमिलनाडु की सरकार ने पहले से ही त्रिभाषा नीति का विरोध किया है और राज्य में दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेज़ी) को प्राथमिकता दी है। स्टालिन ने कहा कि राज्य में भाषा की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए सरकार किसी भी “थोपी गई भाषा नीति” को स्वीकार नहीं करेगी।
उन्होंने सुझाव दिया कि हर राज्य को अपनी भाषा नीति खुद तय करने का अधिकार होना चाहिए और किसी भी भाषा को ज़बरदस्ती लागू नहीं किया जाना चाहिए।
एम.के. स्टालिन के इस बयान पर कई राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ आई हैं। भाजपा के नेताओं ने इसे “राजनीतिक स्टंट” बताया है और कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति किसी भी भाषा को जबरदस्ती थोपने के पक्ष में नहीं है।
हालांकि, विपक्षी दलों ने स्टालिन के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि भारत की ताकत उसकी भाषाई विविधता में है और केंद्र सरकार को सभी भाषाओं को समान महत्व देना चाहिए।
भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा नीति को बेहद संवेदनशील तरीके से लागू करने की ज़रूरत है। यदि सरकार NEP में सभी भाषाओं को समान महत्व देने का प्रावधान नहीं करती है, तो यह कई क्षेत्रीय भाषाओं के अस्तित्व पर खतरा बन सकता है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर भाषाई संतुलन बनाए रखने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
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