भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने गूगल पर उसकी प्ले स्टोर संबंधी नीतियों के संदर्भ में प्रतिस्पर्धा-विरोधी कार्यप्रणाली के लिए 936.44 करोड़ रुपये का आर्थिक जुर्माना लगाया
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने आज गूगल को उसकी प्ले स्टोर संबंधी नीतियों के संदर्भ में अपनी प्रभुत्व वाली स्थिति का दुरुपयोग बंद करने और ऐसी गतिविधि से दूर रहने का आदेश जारी करने के अलावा उसपर 936.44 करोड़ रुपये का आर्थिक जुर्माना लगाया। आयोग ने गूगल को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर अपना आचरण सुधारने का भी निर्देश दिया।
ऐप डेवलपर्स के लिए, ऐप स्टोर अंतिम उपयोगकर्ताओं को अपने ऐप के वितरित करने का एक आवश्यक माध्यम बन गए हैं और ऐप स्टोर की उपलब्धता सीधे स्मार्ट डिवाइस पर स्थापित ओएस पर निर्भर है। भारत में लाइसेंस योग्य मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम में बाजार की गतिशीलता में वृद्धि यह स्पष्ट करती है कि गूगल के एंड्रॉइड ओएस ने अप्रत्यक्ष नेटवर्क प्रभावों का सफलतापूर्वक फायदा उठाया है। गूगल का प्ले स्टोर एंड्रॉइड मोबाइल इकोसिस्टम में ऐप डेवलपर्स के लिए मुख्य वितरण चैनल निर्मित करता है, जो इसके मालिकों को बाजार में लाए गए विभिन्न ऐप को अपने फायदे में भुनाने का मौका देता है।
अपने आकलन के आधार पर, सीसीआई ने भारत में स्मार्ट मोबाइल उपकरणों के लिए लाइसेंस योग्य ओएस और एंड्रॉइड स्मार्ट मोबाइल ओएस के लिए ऐप स्टोर के बाजार में गूगल को प्रभुत्व की स्थिति में पाया।
इन-ऐप डिजिटल सामग्रियों की बिक्री ऐप डेवलपर्स के लिए अपनी कृतियों/नवाचारों से कमाई करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। हालांकि, खरीदारी करने वाले उपयोगकर्ताओं को इन-ऐप डिजिटल सामग्रियां वितरित करने के लिए, डेवलपर्स को अपने ऐप को इस तरह से कॉन्फ़िगर करना होता है ताकि डिजिटल सामग्रियों की सभी खरीदारी गूगल की भुगतान प्रणाली, जो लेनदेन की प्रक्रिया को पूरी करती है, के माध्यम से हो।
गूगल की प्ले स्टोर संबंधी नीतियों के तहत यह आवश्यक है कि ऐप डेवलपर्स पूरी तरह से और अनिवार्य रूप से गूगल प्ले के बिलिंग सिस्टम (जीपीबीएस) का उपयोग न केवल गूगल प्ले स्टोर के माध्यम से वितरित/बेचे गए ऐप्स (और ऑडियो, वीडियो, गेम जैसे अन्य डिजिटल उत्पादों) के लिए बल्कि कुछ इन-ऐप खरीदारी यानी ऐप के उपयोगकर्ताओं द्वारा प्ले स्टोर से ऐप डाउनलोड/खरीदने के बाद की गई खरीदारी के लिए भी भुगतान प्राप्त करने के लिए करें। इसके अलावा, ऐप डेवलपर्स, ऐप के भीतर, उपयोगकर्ताओं को वैकल्पिक भुगतान पद्धति वाले वेबपेज का सीधा लिंक प्रदान नहीं कर सकते हैं या ऐसी भाषा का उपयोग नहीं कर सकते हैं जो उपयोगकर्ता को ऐप के बाहर डिजिटल आइटम खरीदने (एंटी-स्टीयरिंग प्रावधान) के लिए प्रोत्साहित करती है।
यदि ऐप डेवलपर्स जीपीबीएस का उपयोग करने की गूगल की नीति का पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें प्ले स्टोर पर अपने ऐप सूचीबद्ध करने की अनुमति नहीं है और इस प्रकार, वे एंड्रॉइड उपयोगकर्ताओं के रूप में संभावित ग्राहकों के विशाल समूह को खो देते हैं। प्ले स्टोर तक पहुंच को सशुल्क ऐप और इन-ऐप खरीदारी के लिए जीपीबीएस के अनिवार्य उपयोग पर निर्भर बनाना एकतरफा और मनमाना है और किसी भी वैध व्यावसायिक हित से विपरीत है। ऐप डेवलपर्स खुले बाजार से अपनी पसंद के भुगतान प्रोसेसर का उपयोग करने के अंतर्निहित विकल्प से वंचित हो गए हैं।
सीसीआई ने प्रतिद्वंद्वी यूपीआई ऐप्स को प्ले स्टोर पर प्रभावी भुगतान विकल्प के रूप में बाहर करने के आरोपों की भी जांच की है। यह पाया गया कि गूगल पे को इंटेंट फ्लो कार्यप्रणाली के साथ एकीकृत किया गया है जबकि अन्य यूपीआई ऐप्स का उपयोग कलेक्ट फ्लो पद्धति के माध्यम से किया जा सकता है। यह दर्ज किया गया कि इंटेंट फ्लो टेक्नोलॉजी कलेक्ट फ्लो टेक्नोलॉजी की तुलना में बेहतर और उपयोगकर्ता के अनुकूल है, जिसमें इंटेंट फ्लो ग्राहकों और व्यापारियों दोनों को महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है और कम विलम्बता के कारण इंटेंट फ्लो कार्यप्रणाली के साथ सफलता दर अधिक है। गूगल ने सीसीआई को सूचित किया है कि उसने हाल ही में अपनी नीति में बदलाव किया है और प्रतिद्वंद्वी यूपीआई ऐप्स को इंटेंट फ़्लो के साथ एकीकृत करने की अनुमति दी है।
अपने आकलन के आधार पर, सीसीआई ने निष्कर्ष निकाला कि,
- ऐप डेवलपर्स के लिए प्ले स्टोर तक पहुंच बनाने को सशुल्क ऐप्स के लिए जीपीबीएस के अनिवार्य उपयोग पर निर्भर बनाना और इन-ऐप खरीदारी ऐप डेवलपर्स पर अनुचित स्थिति लादना है। इस प्रकार, गूगल अधिनियम की धारा 4(2)(a)(i) के प्रावधानों का उल्लंघन का दोषी पाया गया।
- गूगल अपने स्वयं के अनुप्रयोगों अर्थात यूट्यूब के लिए जीपीबीएस का उपयोग न करके भेदभावपूर्ण व्यवहारों का पालन करते हुए पाया गया है। यह भेदभावपूर्ण स्थिति को लागू करने के साथ-साथ मूल्य निर्धारण भी है क्योंकि यूट्यूब सेवा शुल्क का भुगतान नहीं कर रहा है जैसा कि जीपीबीएस संबंधी आवश्यकताओं के तहत अन्य ऐप पर लगाया जा रहा है। इस प्रकार, गूगल अधिनियम की धारा 4(2)(a)(i) और 4(2)(a)(ii) का उल्लंघन करता पाया गया।
- जीपीबीएस को अनिवार्य रूप से लागू करने से नवाचार प्रोत्साहन और भुगतान संसाधकों के साथ-साथ ऐप डेवलपर्स दोनों की तकनीकी विकास और नवाचार करने की क्षमता बाधित होती है और इस प्रकार, इन-ऐप की अनिवार्यता अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए भुगतान संसाधित करने वाली सेवाओं के लिए बाजार में तकनीकी विकास को सीमित करने के समान है। इस प्रकार, गूगल अधिनियम की धारा 4(2)(b)(ii) के प्रावधानों का उल्लंघन करता पाया गया।
- अधिनियम की धारा 4(2)(c) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए गूगल द्वारा जीपीबीएस को अनिवार्य रूप से लागू करना भुगतान एग्रीगेटर्स के साथ-साथ ऐप डेवलपर्स को बाजार में पहुंच से वंचित करता है।
- अधिनियम की धारा 4(2)(ई) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए, डाउनस्ट्रीम बाजारों में अपनी स्थिति की रक्षा के लिए, गूगल द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणालियों के परिणामस्वरूप उसे एंड्रॉइड ओएस के लिए लाइसेंस योग्य मोबाइल ओएस और ऐप स्टोर के लिए बाजार में अपने प्रभुत्व का लाभ मिलता है।
- अन्य प्रतिद्वंद्वी यूपीआई ऐप्स की तुलना में अपने स्वयं के यूपीआई ऐप को प्ले स्टोर के साथ एकीकृत करने के लिए गूगल द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न पद्धतियों के परिणामस्वरुप अधिनियम की धारा 4(2)(a)(ii), 4(2)(c) और 4(2)(ई) का उल्लंघन होता है।
तदनुसार, अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों के अनुरूप, सीसीआई एतद्द्वारा गूगल को निर्देश देता है कि वह अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले उन प्रतिस्पर्धा-विरोधी कार्यप्रणाली को अपनाना बंद करे और ऐसी गतिविधियों से दूर रहे, जैसा कि इस आदेश में विस्तार से बताया गया है। इस संबंध में कुछ उपाय नीचे दिए गए हैं:
- गूगल ऐप डेवलपर्स को इन-ऐप खरीदारी या ऐप खरीदने के लिए किसी भी तृतीय-पक्ष बिलिंग/भुगतान प्रसंस्करण सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देगा और प्रतिबंधित नहीं करेगा। गूगल थर्ड पार्टी बिलिंग/भुगतान संसाधन सेवाओं का उपयोग करने वाले ऐसे ऐप्स के विरुद्ध किसी भी तरह से भेदभाव नहीं करेगा या अन्यथा कोई प्रतिकूल कदम नहीं उठाएगा।
- गूगल ऐप डेवलपर्स पर कोई भी एंटी-स्टीयरिंग प्रावधान नहीं लगाएगा और उन्हें किसी भी तरह से अपने ऐप और प्रस्ताव को बढ़ावा देने के लिए अपने उपयोगकर्ताओं के साथ संवाद करने से प्रतिबंधित नहीं करेगा।
- गूगल किसी भी तरह से अंतिम उपयोगकर्ताओं को ऐप डेवलपर्स द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं एवं सेवाओं तक पहुंचने और ऐप्स के भीतर उनका उपयोग करने के लिए प्रतिबंधित नहीं करेगा।
- गूगल अपने प्लेटफॉर्म पर एकत्र किए गए डेटा, इस प्लेटफॉर्म द्वारा ऐसे डेटा के उपयोग और संबंधित संस्थाओं सहित ऐप डेवलपर्स या अन्य संस्थाओं के साथ ऐसे डेटा के संभावित तथा वास्तविक रूप से साझा करने के बारे में एक स्पष्ट और पारदर्शी नीति निर्धारित करेगा।
- जीपीबीएस के माध्यम से उत्पन्न और प्राप्त किए गए ऐप्स के प्रतिस्पर्धी रूप से प्रासंगिक लेनदेन/उपभोक्ता डेटा का गूगल द्वारा अपने प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा। जैसा कि इस आदेश में रेखांकित किया गया है, गूगल पर्याप्त सुरक्षा उपायों के अधीन उस डेटा के ऐप डेवलपर को भी एक्सेस प्रदान करेगा, जो संबंधित ऐप के माध्यम से उत्पन्न किया गया है।
- गूगल ऐप डेवलपर्स पर ऐसी कोई शर्त (कीमत संबंधी शर्त सहित) नहीं लगाएगा, जो अनुचित, भेदभावपूर्ण या ऐप डेवलपर्स को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए असंगत हो।
- गूगल ऐप डेवलपर्स को प्रदान की गई सेवाओं और संबंधित शुल्क के संबंध में संवाद करने में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। गूगल एक स्पष्ट तरीके से भुगतान नीति और शुल्क (शुल्कों) के लागू होने संबंधी मानदंड को भी प्रकाशित करेगा।
- गूगल अपने स्वयं के यूपीआई ऐप की तुलना में भारत में यूपीआई के माध्यम से भुगतान की सुविधा प्रदान करने वाले अन्य ऐप्स के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करेगा।
दंड के निर्धारण के संदर्भ में, सीसीआई ने यह पाया कि गूगल द्वारा विभिन्न राजस्व डेटा बिंदुओं को प्रस्तुत करने में स्पष्ट विसंगतियां और व्यापक अस्वीकरण थे। हालांकि, न्याय के हित में और जल्द से जल्द आवश्यक बाजार सुधार सुनिश्चित करने के इरादे से, सीसीआई ने गूगल द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के आधार पर अंतरिम आर्थिक दंड की मात्रा निर्धारित की। तदनुसार, सीसीआई ने अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन करने के लिए गूगल पर अंतरिम आधार पर उसके औसत प्रासंगिक टर्नओवर के सात प्रतिशत की दर से 936.44 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। गूगल को आवश्यक वित्तीय विवरण और सहायक दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए 30 दिनों का समय दिया गया है।
आयोग द्वारा पारित आदेश का सार्वजनिक संस्करण यहां देखा जा सकता है: https://www.cci.gov.in/antitrust/orders/details/1072/0
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