डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने चीन ने किया स्विफ्ट से करार, युवान को दुनिया की सबसे पसंदीदा करेंसी बनाने की तैयारी

केंद्रीय बैंक की मदद से डिजिटल करेंसी के विकास के मामले में चीन अमेरिका से बहुत आगे निकल चुका है। अगर चीन युवान को दुनिया की सबसे पसंदीदा डिजिटल करेंसी के रूप में स्थापित करने में सफल हो गया, तो वह डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने के अपने मकसद में कामयाब हो जाएगा…

 

 

न्यूज़ डेस्क : स्विफ्ट सिस्टम के साथ चीन के सेंट्रल बैंक के दो दिन पहले हुए करार को विशेषज्ञों ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में डॉलर की अहमियत घटाने की चीन की एक ठोस कोशिश बताया है। चीन वित्तीय बाजारों में डॉलर का वर्चस्व तोड़ने की कोशिशों में काफी समय से जुटा रहा है। पहले इसके लिए उसने कई देशों के साथ आयात-निर्यात का भुगतान आपसी मुद्राओं में करने के करार किए थे। लेकिन सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) के साथ उसके करार को ऐसी कोशिशों को बहुपक्षीय रूप देने की दिशा में बड़ा कदम बताया गया है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर चीन की ये कोशिश सफल रही, तो उसके एक बड़ी वैश्विक वित्तीय शक्ति बनने का रास्ता भी खुल जाएगा।

 

 

 

ये करार डिजिटल मुद्रा के वैश्विक इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक स्विफ्ट और चीन के केंद्रीय बैंक के तहत आने वाला डिजिटल करेंसी रिसर्च इंस्टीट्यूट एंड क्लीयरिंग सेंटर ने एक साझा उद्यम बनाया है। स्विफ्ट अंतरराष्ट्रीय भुगतान का सिस्टम है, जिसमें भुगतान की मुद्रा डॉलर है। साझा उद्यम का नाम फाइनेंशियल गेटवे इन्फॉर्मेशन सर्विस होगा। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक ये साझा उद्यम पिछले 16 जनवरी को ही अस्तित्व में आ चुका है। इसे एक करोड़ यूरो (लगभग एक करोड़ 20 लाख डॉलर) की पंजीकृत पूंजी के साथ गठित किया गया है।

 

 

अमेरिकी वेबसाइट एक्सियोस.कॉम ने एक रिपोर्ट में बताया है कि केंद्रीय बैंक की मदद से डिजिटल करेंसी के विकास के मामले में चीन अमेरिका से बहुत आगे निकल चुका है। इसका यह मतलब भी है कि भविष्य में वह वैश्विक भुगतान और वित्तीय निपटान के मामलों में पूरी दुनिया में अग्रणी बना रहेगा। अगर चीन युवान को दुनिया की सबसे पसंदीदा डिजिटल करेंसी के रूप में स्थापित करने में सफल हो गया, तो वह डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने के अपने मकसद में कामयाब हो जाएगा। उस हाल में चीन को दुनिया में वित्तीय मामलों में वे तमाम लाभ हासिल हो जाएंगे, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका को मिलते रहे हैं।

 

 

जानकारों का कहना है कि अब तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी ताकत नहीं बन पाया है, तो उसके पीछे प्रमुख कारण यही है कि उसकी मुद्रा का अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं होता। डॉलर का वर्चस्व उसकी राह में सबसे बड़ी रुकावट रहा है। अब कमी को दूर करने के लिए चीन अब नियोजित ढंग से कदम उठा रहा है। उसने अपने वित्तीय बाजारों को अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए खोलने की शुरुआत की है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजारों में चीन की कंपनियों ने अपने को सूचीबद्ध कराया है। इसका परिणाम है कि 2020 में चीन के युवान में बेचे गए बॉन्ड्स में 2019 की तुलना में विदेशी पूंजी का दोगुना निवेश हुआ।

 

 

गौरतलब है कि अमेरिका डॉलर के वर्चस्व के कारण ही अंतरराष्ट्रीय कर्ज बाजार से असीमित कर्ज लेने और अपने विरोधी देशों पर प्रतिबंध लगाने में सक्षम बना हुआ है। चूंकि दुनिया में सारा अंतरराष्ट्रीय भुगतान स्विफ्ट के जरिए होता है, जिस पर अमेरिका का नियंत्रण है, इसलिए वह जिस देश पर चाहे प्रतिबंध लगाकर उसे मुश्किल में डाल देता है। डिजिटल करेंसी में भी अमेरिका अपना ये वर्चस्व कायम रखे, इसके लिए उसने पहल करने की योजना पिछले साल बनाई थी। उसके सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के गवर्नर लाएल ब्रेनार्ड ने पिछले अगस्त में कहा था कि फेडरल रिजर्व एक काल्पनिक सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी निर्मित करने और उसका परीक्षण करने की तैयारी में है। लेकिन उन्होंने चेतावनी दी थी कि ऐसी करेंसी के साथ प्राइवेसी के हनन, गैर-कानूनी गतिविधियों को बढ़ावा मिलने और वित्तीय अस्थिरता का जोखिम हो सकता है।

 

 

यूरोपियन सेंट्रल बैंक भी डिजिटल करेंसी को लेकर आशंकित रहा है। इसके अध्यक्ष क्रिस्टाइन लगार्ड ने पिछले महीने कहा था कि डिजिटल करेंसी को सुरक्षित बनाने में बहुत समय लगेगा। उन्होंने अनुमान लगाया था कि इस काम में पांच साल तक लग सकते हैं। इस बीच चीन डिजिटल युवान का परीक्षण शुरू कर चुका है। इसके जरिए कई चीनी शहरों में भुगतान का काम चल रहा है। इसलिए कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने फर्स्ट मूवर्स एडवाटेंज (शुरुआत करने वाले को मिलने वाला लाभ) हासिल कर लिया है। लेकिन वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ बेथनी एलन-इब्राहिमियां ने वेबसाइट एक्सियोस से कहा कि डिजिटल करेंसी लागू करने के मामले में फर्स्ट मूवर्स एडवांटेज बना रहे, यह जरूरी नहीं है, क्योंकि टेक्नोलॉजी तेजी से बदल रही है। इसके बावजूद ज्यादातर जानकार इस बात से सहमत हैं कि फिलहाल डिजिटल करेंसी के मामले में चीन दुनिया के बाकी तमाम देशों से खासा आगे निकल चुका है।

 

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