न्यूज़ डेस्क : सात राज्यों ने अपने मंत्रियों को इतना गरीब समझा था कि वे अपना आयकर भर पाने लायक नहीं हैं। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश और पंजाब शामिल है। मार्च 2018 में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अधिनियम में संशोधन कर यह व्यवस्था खत्म कर दी।
पंजाब को छोड़ कर अन्य छह राज्यों में मौजूदा मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के आयकर का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है। कई दशकों से इन राज्यों में मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का टैक्स सरकारी खजाने से भरा जाता है। फिलहाल नजर डालते हैं पिछले तीन बार के मुख्यमंत्रियों की संपत्ति पर l
उत्तर प्रदेश में सरकारी खजाने से साल 1981 के बाद से ही सभी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का आयकर भरा जा रहा है। ऐसा तब से हो रहा है जब से यूपी के मंत्रियों के वेतन, भत्ते और विविध अधिनियम, 1981 को पास किया गया था। इसे विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल के दौरान इस आधार पर पारित किया गया था कि मंत्री ‘गरीब’ हैं और अपनी कम आय से आयकर का भुगतान नहीं कर सकते हैं। इसके बाद से यह व्यवस्था बनी हुई है।
साल 2004 में बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनीं। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, तब मायावती की संपत्ति छह करोड़ से ज्यादा की थी। वहीं 2009 में समाजवादी पार्टी की जीत के बाद अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनें, जिनकी संपत्ति तब चार करोड़ आंकी गई थी।
साल 2014 में भाजपा ने सपा और बसपा को किनारे लगाते हुए अप्रत्याशित जीत हासिल की और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। सीएम योगी की संपत्ति 2014 लोकसभा चुनाव के समय 71 लाख से ज्यादा बताई गई।
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान तीन कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहे। 2005 से लेकर 2018 तक सालों में उन्होंने अपना आयकर अपने पैसों से नहीं भरा, जबकि उनकी संपत्ति 2008 मेें उनकी संपत्ति एक करोड़ थी, जबकि 2013 में यह बढ़कर छह करोड़ हो गई। छत्तीसगढ़ में 2008 से 2018 तक भाजपा सत्ता में रही। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की संपत्ति 2008 में एक करोड़ से ज्यादा थी, जबकि 2013 में उनकी संपत्ति पांच करोड़ हो गई। वहीं, 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बनें, जिनकी संपत्ति 23 करोड़ से ज्यादा है। इन नेताओं का इनकम टैक्स भी सरकारी खजाने से भरा जाता रहा है।
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