इन वजहों से सुरक्षाबलों की चुनौतियां बढ़ाएगा संघर्ष विराम, अच्छा नहीं रहा 18 साल पुराना अनुभव

जम्मू  । केंद्र सरकार के संघर्ष विराम के फैसले से कश्मीरी आवाम और क्षेत्र की राजनीतिक पार्टियां भले ही उत्साहित हो, लेकिन सेना व सुरक्षाबलों के लिए यह चुनौतियां भरा साबित होगा। करीब तीन दशक से जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से लड़ रही सेना व सुरक्षाबलों को वर्ष 2000 के संघर्ष विराम के अनुभव भूले नहीं हैं। पाकिस्तान की शह पर अलगाववादियों व आतंकी तंजीमों ने संघर्ष विराम को औपचारिकता बताया था और कश्मीर में हिंसा व सुरक्षाबलों पर हमलों में तेजी आई थी। ऐसे हालात में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि संघर्ष विराम अच्छी नीयत के साथ हुआ था, लेकिन आतंकियों ने नागरिकों को अधिक निशाना बनाया, जिससे इसे समाप्त करना पड़ा। अब अठारह साल बाद हुए इस संघर्ष विराम का भी अलगाववादियों व आतंकियों ने विरोध कर साबित कर दिया है कि वह पाकिस्तान की भाषा बोले रहे हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 नवंबर, 2000 में रमजान में संघर्ष विराम की घोषणा की थी। 27 नवंबर से संघर्ष विराम शुरू हुआ था। 28 दिसंबर को इसे पहली बार और 27 जनवरी 2001 को एक माह का दूसरा विस्तार दिया गया था। इसके बाद 28 फरवरी से 31 मई तक अंतिम विस्तार दिया गया। छह महीनों के इस संघर्ष विराम के बाद भले ही सेना और सुरक्षाबलों ने संयम बरता हो, लेकिन आतंकियों ने इसका फायदा खुद को मजबूत बनाकर हमले करने में उठाया। संघर्ष विराम के करीब छह महीनों में आतंकी हमलों में 512 नागरिकों व ढाई सौ से अधिक सुरक्षा कर्मियों की जानें गई थीं। इस दौरान करीब साढ़े सात सौ आतंकी भी मारे गए।

संघर्ष विराम के समय आतंकवाद में आई तेजी के कारण वर्ष 2000 में 842 और 2001 में 1067 नागरिकों की मौतें हो गई। ऐसे हालात में सेना व सुरक्षाबल इस संघर्ष विराम को लेकर उत्साहित नहीं हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कश्मीर के हालात को बिगाड़ने के लिए पाकिस्तान की शह पर कोशिशें होंगी। ऐसे हालात में फील्ड कमांडरों के निर्देश हैं कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों के हमले जारी रहेंगे। ऐसे में उनके प्रति सतर्कता के स्तर में कोई कमी न लाई जाए। सीमा पर भी घुसपैठ करवाने के लिए पाकिस्तान की ओर से गोलाबारी किया जाना इसका सुबूत है।

कश्मीर में स्थिति हाथ से निकलने की इजाजत नहीं दी जा सकती: गुप्ता

कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान में शामिल हुए सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता का कहना है कि यह संघर्ष विराम तभी प्रभावी होगा जब कश्मीर में लोग आतंकियों को शरण देना बंद कर उनके बारे में सुरक्षाबलों को सूचना देंगे। इसके साथ शुक्रवार को होने वाले हिंसक प्रदर्शन भी बंद करने होंगे। 18 साल पहले हुए संघर्ष विराम के समय कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स की बटालियन की कमान संभालने वाले ब्रिगेडियर गुप्ता का कहना है कि कश्मीर में स्थिति को हम अपने हाथ से निकलने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। वहीं, कश्मीर में संघर्ष विराम उस समय हुआ है जब आतंकियों पर भारी दबाव बनाया गया था। इस वर्ष अब तक वहां 72 आतंकी मारे गए हैं, जबकि 30 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं और 33 नागरिक भी मारे गए हैं।

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