न्यूज़ डेस्क : मेरठ में ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही से करीब 10 मिनट तक सीए विक्रांत त्यागी की सांसें अटकी रहीं। सुनकर व पढ़कर भी हैरानी होगी, लेकिन यह हकीकत है। एक व्यक्ति जो अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा है और वह कार सड़क से कई फीट ऊंचाई पर हवा में लटका कर ले जाई जा रही है।
वहीं पीड़ित व्यक्ति न तो कार को रोक सकता था, और न ही खिड़की खोल सकता था। ट्रैफिक पुलिस क्रेन से कार को उठाकर ले जा रही थी। पीड़ित की करीब 10 मिनट तक सांसें अटकी रहीं।
विक्रांत त्यागी का कहना है कि वीडियो बनाते हुए हार नहीं मानी। इतना डर लगा कि यह मेरे साथ हो क्या रहा है, मेरी पत्नी अस्पताल में है। मैं तो खुद पत्नी की बीमारी से जूझ रहा हूं। ऊपर से यह कैसा कानून है कि जो व्यक्ति अपनी कार में है उस कार को ही पुलिस क्रेन से उठाकर ले जा रही है।
विक्रांत त्यागी ने बताया कि बच्चा पार्क के पास से जब कार चली तो उनकी आवाज निकलनी बंद हो गई। उन्हें समझ नहीं आया कि आखिर क्या करें। बस किसी वजह से सांसें चल रही थी। और यह पता था कि आज पता नहीं क्या होकर रहेगा। करीब दो किलोमीटर से अधिक दूर पुलिस लाइन तक आठ से 10 मिनट का समय लगा। बस किसी वजह से मेरी जान ही नहीं गई। पहली बार इतना डरावना व भयावहता का मंजर आंखों के सामने देखा है। गनीमत रही कि क्रेन की लिफ्ट व रस्सा जरा सा नीचे आकर नहीं गिरा। नहीं तो कार का अगला हिस्सा जमीन पर गिरता और जान भी जा सकती थी।
पूरे मामले में ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। जहां ट्रैफिक पुलिस के अफसर यह कहकर बचाव में जुट गए हैं कि जब कार सड़क पर थी तो उसमें कार मालिक सीट पर नहीं थे। रास्ते में चलती हुई कार में वह ड्राइविंग सीट पर बैठ गए। लेकिन सवाल यह है कि जब क्रेन द्वारा खींचकर ले जा जा रही कार में पीड़ित व्यक्ति ड्राइविंग सीट पर बैठे तो ट्रैफिक पुलिस को क्रेन वहीं पर रोक देनी चाहिए थी। वहीं पर जुर्माना वसूल कर कार को छोड़ देना चाहिए था। लेकिन ट्रैफिक पुलिस के दो सिपाही कार को पुलिस लाइन लेकर पहुंचे। पीड़ित व्यक्ति के पास पांच वीडियो हैं। जिनमें ट्रैफिक पुलिस के सिपाहियों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
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