ब्रू-रियांग शरणार्थियों को मिलेगा प्लॉट, 4 लाख की एफडी और हर महीने 5 हजार रुपये

न्यूज़ डेस्क : मिजोरम के 30 हजार से ज्यादा ब्रू-रियांग शरणार्थियों को स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाया जाएगा। इस संबंध में गुरुवार को एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए। केंद्र सरकार और प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते के तहत ब्रू-रियांग शरणार्थियों को चार लाख रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट के साथ 40 से 30 फीट का प्लॉट और दो साल तक 5,000 रुपये प्रति माह की नकद सहायता और मुफ्त राशन दिया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने 600 करोड़ रुपये का पैकेज देने का एलान किया है।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को ब्रू-रियांग शरणार्थियों को त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसाने के लिए किये गए समझौते का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस कदम से ब्रू-रियांग शरणार्थियों को बहुत मदद मिलेगी। मोदी ने यह भी कहा कि ब्रू-रियांग शरणार्थियों को सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘वास्तव में यह दिन खास है।’

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और ब्रू-रियांग शरणार्थियों के प्रतिनिधियों ने त्रिपुरा के सीएम बिप्लब कुमार देब और मिजोरम के मुख्यमंत्री गोरमथांगा की मौजूदगी में मिजोरम से ब्रू शरणार्थियों के संकट को समाप्त करने और त्रिपुरा में उन्हें बसाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

मिजोरम के 30,000 से अधिक विस्थापित ब्रू-रियांग आदिवासी जो 1997 से त्रिपुरा में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। ये अब स्थायी रूप से त्रिपुरा में बस जाएंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में यहां नॉर्थ ब्लॉक में ब्रू समुदाय, केंद्र सरकार और मिजोरम सरकार के प्रतिनिधियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। शाह ने कहा कि समझौते के तहत 30 हजार से अधिक ब्रू-रियांग आदिवासी त्रिपुरा में स्थायी रूप से रहेंगे। 

 


कौन हैं ब्रू-रियांग शरणार्थी?
ब्रू-रियांग पूर्वोत्तर में बसने वाला एक जनजातीय समूह है। वैसे तो इनकी  कमोबेश आबादी पूरे पूर्वोत्तर में है, लेकिन मिजोरम के ज्यादातर ब्रू मामित और कोलासिब जिसे में रहते हैं। ब्रू समुदाय के अंदर तकरीबन एक दर्जन उपजातियां आती हैं। मिजोरम में ब्रू अनुसूचित जनजाति का एक समूह माना जाता है और त्रिपुरा में एक अलग जाति। लेकिन त्रिपुरा में इन्हें रियांग नाम से पुकारते हैं। इनकी भाषा ब्रू है।

 

ब्रू-रियांग और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के बीच 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना था। मिजोरम में 1997 में हुई हिंसक झड़पों के बाद ब्रू जनजाति के हजारों लोग भाग कर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में चले गए थे। इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की। इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी जब यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू-रियांग समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया। इन संगठनों का कहना था कि ब्रू-रियांग समुदाय के लोग राज्य के नहीं है।

पहले भी सरकार ने किया था पैकेज का एलान : 3 जुलाई 2018 को नई दिल्ली में गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव और मिजोरम के मुख्यमंत्री ललथनहवला के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था। इस समझौते में ब्रू परिवारों के 30 हजार से ज्यादा लोगों के लिए 435 करोड़ का राहत पैकेज दिया गया था। इसमें हर परिवार को चार लाख रुपये की एफडी, घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये, 2 साल के लिए मुफ्त राशन और हर महीने पांच हजार रुपये दिए जाने थे। इसके अलावा त्रिपुरा से मिजोरम जाने के लिए मुफ्त ट्रांसपोर्ट, पढ़ाई के लिए एकलव्य स्कूल, मूल निवासी और जाति प्रमाणपत्र (एसटी) मिलने थे।ब्रू-रियांग लोगों को मिजोरम में वोट डालने का हक भी मिलना तय हुआ था। लेकिन यह क्रियान्वित नहीं हो सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था।

 

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