सड़कों पर घूसखोरी 120 फीसदी तक बढ़ी, सालाना 48 हजार करोड घूस देते है ड्राइवर : खुलासा

न्यूज़ डेस्क : पिछले 12 वर्षों में सड़कों पर घूसखोरी 120 फीसदी तक बढ़ी है। अकेले व्यवसायिक वाहन के चालक राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने के लिए हर साल औसतन 48 हजार करोड़ रुपए घूस देते हैं। सेव लाइफ फाउंडेशन (एसएलएफ) की ओर से शुक्रवार (28 फरवरी) को जारी एक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक घूस लेने में स्थानीय पुलिस सबसे आगे है। परिवहन विभाग दूसरे स्थान पर है। जागरण और चंदे के नाम पर भी चालकों से वसूली करने वालों की कमी नहीं है।

 

 

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारी कहते हैं, राष्ट्रीय राजमार्गों पर घूसखोरी को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन वित्त वर्ष 2006-07 में ट्रांसपेरेंसी नाम की एजेंसी ने पहली बार व्यवसायिक वाहनों के चालकों से बातचीत के विश्लेषण के बाद अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि भारत में सड़कों पर सालाना 22 हजार करोड़ रुपए घूस वसूली जाती है। मौजूदा समय में यह आंकड़ा बढ़कर 48 हजार करोड़ रुपए हो गया है।

 

एसएलएफ रिपोर्ट पर नजर डालें तो चालकों से हर साल सर्वाधिक 22 हजार करोड़ रुपए घूस स्थानीय पुलिस लेती है। दूसरे स्थान पर क्षेत्रीय परिवहन कार्यायल (आरटीओ) के अधिकारी आते हैं, जो सालाना 19500 हजार करोड़ रुपये रिश्वत लेते हैं। धर्मिक आयोजनों जैसे जागरण, मेला व भवनों के निर्माण आदि के नाम पर भी चालकों से 5900 हजार करोड़ रुपये वसूले जाते हैं। एसएलएफ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पीयूष तिवारी ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि रिपोर्ट देशभर के 1310 ट्रक ड्राइवरों से बात पर आधारित है। इसे बनाने में ट्रक मालिक एसोसिएशन, ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन, प्लीट ऑपरेटर्स और स्थानीय मीडिया से विभिन्न मुद्दों पर जानकारी जुटाई गई है। 

 

जगने के लिए नशीले पदार्थ का सेवन :एसएलएफ की मानें तो 22 फीसदी ड्राइवर रात में जागकर ट्रक चलाने के लिए कई प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन करते हैं। इसमें डोड शामिल है, जिससे ड्राइवर 12 से 14 घंटे लगातार ट्रक चला सकता है। 77 फीसदी ट्रक ड्राइवर तमाम बीमारियों से ग्रस्त हैं।

 

चालकों को सामाजिक सुरक्षा की दरकार : रिपोर्ट पर गौर करें तो देश में सड़क दुर्घटनओं के लिए व्यवसायिक वाहन तीसरे स्थान पर हैं। ट्रकों की टक्कर के कारण 23 हजार से अधिक जानें जाती हैं, इसमें 15 हजार ड्राइवर भी शामिल हैं। 53 फीसदी ड्राइवर अपने पेशे से संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें सामाजिक सुरक्षा की दरकार है।

 

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