न्यूज़ डेस्क : भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने चुनावी राज्यों में जाकर किसानों से भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील का बचाव किया है। उन्होंने कहा है कि जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तब यही भाजपा हमसे कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ आंदोलन करवाती थी। क्या तब हम ठीक थे? तब हम पर राजनीतिक होने के आरोप नहीं लगे तो अब ऐसे आरोप क्यों लगाए जा रहे हैं? किसान नेता ने कहा कि भाजपा को वोट न देने की अपील करना किसानों के विरोध का तरीका है। इसे राजनीतिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए।
किसान नेता ने कहा कि उनका राजनीति में उतरने का कोई इरादा नहीं है। न ही वे किसानों के नाम से कोई नया राजनीतिक दल बनाएंगे। वे पूरी तरह किसान आंदोलन को समर्पित हैं और उनका जीवन केवल किसानों के नाम समर्पित है। टिकैत परिवार में कोई बच्चा भी जन्म लेगा तो उसे किसान आंदोलन को ही अपना जीवन समर्पित करना होगा। अगर वह किसानों के लिए समर्पित नहीं होगा तो समझिए कि उसे टिकैत परिवार में जन्म लेने का कोई अधिकार नहीं है।
नवंबर-दिसंबर में होगी सरकार से बातचीत
अमर उजाला के इस सवाल पर कि किसानों और केंद्र सरकार के बीच 12 बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन अब तक इसका कोई समाधान नहीं निकला है, ऐसे में अब आगे रास्ता कैसे निकलेगा? इस पर किसान नेता ने कहा कि उन्हें यह पूरा विश्वास है कि आंदोलन लंबा चलेगा और सरकार नवंबर-दिसंबर में ही बात करेगी। वे इसे जानते हैं और वे इस लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। किसी को भी यह गलतफहमी नहीं रखना चाहिए कि बिना कृषि कानूनों के वापसी के आंदोलन खत्म हो जाएगा।
क्या आटा 200 रुपये किलो नहीं हो जाएगा?
अमर उजाला के एक पाठक प्रणब ने ऑनलाइन माध्यम से किसान नेता से सवाल किया कि अगर सरकार किसानों की मांगें मान लेगी तो क्या इससे आटा 200 रूपये किलो नहीं हो जाएगा? क्या तब हर सामान्य आदमी आटा खरीद पाएगा? जवाब में राकेश टिकैत ने कहा कि हर चीज की न्यूनतम कीमत होती है और किसान की फसलों की भी एक न्यूनतम कीमत तय होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने से आटा-दाल का भाव आसमान पर नहीं जाएगा , क्योंकि असलियत यह है कि निजी कंपनियां किसानों से सस्ती कीमतों पर गेहूं खरीदकर ग्राहकों को बेहद महंगे दामों पर आटा बेचती हैं। अगर न्यूनतम कीमत तय हो जाएगी तो इसका लाभ किसानों को मिलेगा, लेकिन इससे आटा-दाल की कीमतें नहीं बढ़ने पाएंगी।
पूरे देश में आंदोलन क्यों नहीं?
किसान अपने आंदोलन के पूरे देश के किसानों का आंदोलन बताते हैं, लेकिन देखा जा रहा है कि आंदोलन में कुछ चंद राज्यों के ही किसान सक्रिय हैं। आंदोलन देशव्यापी क्यों नहीं है? अमर उजाला के इस सवाल पर राकेश टिकैत ने कहा कि वे लगातार प्रवास कर लोगों को इस मुद्दे पर जागृत करने की कोशिश कर रहे हैं। आगे आने वाले दिनों में यह आंदोलन और व्यापक रूप धारण करेगा। किसान नेता ने कहा कि वे पश्चिम बंगाल में भी जाकर किसानों को इस मुद्दे से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
तृणमूल नेता क्यों मिलीं?
राकेश टिकैत की पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान तृणमूल कांग्रेस की एक नेता ने उनका स्वागत किया था। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या पश्चिम बंगाल में किसानों का आंदोलन सरकार द्वारा प्रेरित था? किसान नेता ने कहा कि वे देश के हर राज्य में दौरा कर रहे हैं और किसानों को कृषि कानूनों पर लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी क्रम में वे पश्चिम बंगाल भी गए थे। ऐसे में अगर कोई उनके पास आता है तो वे उसका विरोध नहीं कर सकते हैं। इसमें अगर कुछ गलत है तो चुनाव आयोग को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।
लालकिले पर हिंसा क्यों?
लालकिले पर 26 जनवरी को हुई हिंसा के कारण किसान आंदोलन की काफी बदनामी हुई थी। क्या इस आंदोलन को अनुशासन में रखना किसानों की जिम्मेदारी नहीं थी? इस सवाल पर किसान नेता ने कहा कि किसानों के लिए जो रूट तय किया गया था उस पर बाधा खड़ी कर दी गई थी। किसानों को मजबूरन दूसरे रास्ते से जाने के लिए मजबूर किया गया था। दूसरी बात, वे इस हिंसा की जांच कराने के लिए तैयार हैं और उनका दावा है कि इस मामले में किसानों की कोई भूमिका नहीं थी।
क्यों रोये थे उस रात?
26 जनवरी की हिंसा के बाद एक दिन रात के समय पुलिस की घेराबंदी बढ़ने पर किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े थे और पूरे किसानों से इस आंदोलन के लिए अपनी जान लगा देने की अपील की थी। इससे कमजोर पड़ते आंदोलन में एक बार फिर जान आ गई थी और सरकार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किसान नेता ने कहा कि उस रात 300 से ज्यादा सरकार के समर्थक हिंसा कर रहे थे और वे किसी भी कीमत पर अपने किसानों को चोट पहुंचने नहीं दे सकते थे। यही कारण है कि उनकी आंखों में आंसू आ गए थे।
संसद में फसल बेचेंगे
किसान नेता ने कहा कि सरकार ने फसलों को कहीं भी बेचने की बात कही है। अब वे संसद में अपनी फसल बेचेंगे। जो इसका विरोध करेगा उससे कहेंगे कि वो उनकी फसल खरीदे तभी वे अपनी जगह से हटेंगे। अब सरकार से इसी तरीके से लड़ाई लड़ी जाएगी।
पीछे नहीं हटेंगे, भले ही चली जाए जान
आरोप है कि सरकार पंजाब से लेकर अलग-अलग जगहों पर किसान नेताओं पर ईडी और टैक्स अधिकारियों के माध्यम से छापे पड़वा रही है। स्वयं किसान नेता राकेश टिकैत पर भी आरोप लगते हैं कि उन्होंने केवल आठ बीघे जमीन से करोड़ों रूपयों की प्रॉपर्टी कैसे बना ली? इस सवाल के जवाब में राकेश टिकैत ने कहा कि वे किसी भी एजेंसी से जांच कराने के लिए तैयार हैं। अगर कहीं कुछ भी गलत है तो सरकार अपने स्तर पर उसकी जांच करवा सकती है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन के लिए अगर उनकी जान भी चली जाती है या उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की जाती है तो वे इसके लिए तैयार हैं, लेकिन वे किसान आंदोलन से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।
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