आयुष मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ (आरएवी) ने अपने 25वें दीक्षांत समारोह के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया है। केंद्रीय आयुष मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल 11 मार्च को दीक्षांत समारोह का उद्घाटन करेंगे।
देश में इन दिनों भारत की स्वतन्त्रता के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस वर्ष के दीक्षांत समारोह का विषय “आयुर्वेद आहार-स्वस्थ भारत का आधार” है।
11 और 12 मार्च को दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान, हाल ही में सम्पन्न हुए राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ (सीआरएवी) प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले 155 छात्रों को प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। सीआरएवी के अगले सत्र की पारंपरिक तरीके से शुरुआत, जिसे शिशोपनयन कहा जाता है, 12 मार्च को आयोजित किया जाएगा। अगले सत्र के लिए लगभग 225 विद्यार्थियों को शामिल किया जाएगा। आरएवी हर साल महत्वाकांक्षी सीआरएवी कार्यक्रम आयोजित करता है जो सीखने की पारंपरिक पद्धति यानी गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करता है।
गुरु-शिष्य परम्परा आरएवी का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसके माध्यम से पारंपरिक ज्ञान को गुरुओं से शिष्यों को हस्तांतरित किया जाता है। सीआरएवी के माध्यम से आरएवी उस प्रणाली को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है जो गुरुकुलों के विलुप्त होने के साथ धीरे-धीरे समाप्त हो गई है।
डॉ. सुभाष रानाडे और वैद्य ताराचंद शर्मा को देश के भीतर और बाहर आयुर्वेद के प्रचार और प्रसार के लिए आयुष मंत्री उनके जीवन भर के उत्कृष्ट योगदान के लिए “लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” प्रदान करेंगे।
डॉ. सुभाष रानाडे आयुर्वेद के क्षेत्र में एक प्रमुख शिक्षाविद और चिकित्सक हैं। वे आयुर्वेद और योग पर 155 पुस्तकों के लेखक हैं। उन्होंने आयुर्वेद के अंतर विषयक स्कूल के प्रोफेसर और प्रमुख, आयुर्वेद पुणे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और प्रमुख, और अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज, पुणे, के प्राचार्य के रूप में काम किया है।
वैद्य ताराचंद शर्मा 1967 से आयुर्वेद की सेवा कर रहे हैं और उन्होंने विभिन्न आयुर्वेद संस्थानों में काम किया है। उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। वे नाड़ी विषेशज्ञता (पल्स एक्सपर्ट) में निपुण हैं और उन्होंने आयुर्वेद पर लगभग 21 पुस्तकें भी लिखी हैं।
इसके अलावा, एफ़आरएवी पुरस्कार वैद्यों को भी दिया जाएगा जो आयुर्वेद के गौरव को फिर से स्थापित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं और अपने व्यावसायिक कौशल से समाज की सेवा भी कर रहे हैं।
आरएवी 1991 से भारत सरकार की वित्तीय सहायता से कार्य कर रहा है। आरएवी का उद्देश्य आयुर्वेद के ज्ञान को बढ़ावा देना, आयुर्वेद से संबंधित शैक्षणिक कार्य करना, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, सतत चिकित्सा शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) प्रशिक्षण कार्यक्रम और अन्य गतिविधियों सहित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना है।
आयुष मंत्रालय ने आरएवी को उन पाठ्यक्रमों के लिए एक मान्यता प्राप्त निकाय के रूप में अधिसूचित किया है जो आईएमसीसी अधिनियम, 1970 या किसी अन्य विनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं। आरएवी ने इस उद्देश्य के लिए आयुर्वेद प्रशिक्षण मान्यता बोर्ड (एटीएबी) नामक एक निकाय का गठन किया है।
आरएवी ने द्रव्यगुण, रस शास्त्र और भैषज्य कल्पना, संहिता और सिद्धांत, शल्य, पंचकर्म और काया चिकित्सा में पीएचडी पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी वाराणसी) के साथ भी सहयोग किया है।
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