न्यूज़ डेस्क : लोकसभा में गुरुवार को मध्यस्थता और सुलह संशोधन विधेयक 2021 पेश किया गया जिसमें संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देने में उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने और भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के केंद्र के रूप में बढ़ावा देने की बात कही गई है।
तीन नए कृषि कानूनों पर कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों के शोर-शराबे के बीच केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में मध्यस्थता और सुलह संशोधन विधेयक 2021 पेश किया। हालांकि बीजू जनता दल के बी महताब ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध किया। उन्होंने पूछा कि मंत्री बताएं कि विधेयक लाने की इतनी हड़बड़ी क्या है?
इस पर रविशंकर प्रसाद ने कहा कि विधेयक को पेश किए जाते समय इस संबंध में सदन के अधिकार पर प्रश्न उठाया जा सकता है, ना कि विधेयक के गुण-दोषों पर। उन्होंने कहा कि महताब ने विधेयक के गुण-दोषों की बात की है, जिस पर वह बाद में विस्तार से अपनी बात रखेंगे।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविदा या मध्यस्थता पंचाट सुनिश्चित करने में भ्रष्ट आचरणों के मुद्दे को पता लगाने के उद्देश्य से यह सुनिश्चित करने की जरूरत महसूस की गई थी कि सभी पक्षकार दलों को मध्यस्थता पंचाटों के प्रवर्तन पर शर्त रहित रोक का अवसर वहां मिले जहां अंतर्निहित मध्यस्थता समझौता या करार या मध्यस्थता पंचाट बनाना कपट या भ्रष्टाचार से प्रेरित है।
इसमें कहा गया है कि प्रतिष्ठित मध्यस्थों को आकर्षित करके भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता केंद्र के रूप में बढ़ावा देने के लिये अधिनियम की आठवीं अनुसूची को खत्म करना आवश्यक समझा गया।
इसके अनुसार उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 का और संशोधन करना आवश्यक हो गया। संसद सत्र में नहीं था और तत्काल उस अधिनियम में और संशोधन करना जरूरी हो गया था। ऐसे में राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 123 के खंड (1) के अधीन 4 नवंबर 2020 को मध्यस्थता और सुलह संशोधन अध्यादेश 2020 को लागू किया गया था।
Comments are closed.