केजरीवाल को लगा जोर का झटका, वक्फ बोर्ड से विधायक अमानतुल्लाह का पत्ता साफ

नई दिल्ली। नीतिगत मामलों में एक बार फ‍िर आम आदमी पार्टी को करारा झटका लगा है। दरअसल, दिल्‍ली सरकार आप विधायक अमानतुल्लाह खान को फिर से दिल्ली वक्फ बोड का चेयरमैन बनाने पर अड़ी थी। इसे लेकर दिल्‍ली की सियासत में कोहराम मचा था, लेकिन एेन मौके पर खान ने वक्‍फ बोर्ड के सदस्‍य के पद से इस्‍तीफा देकर सियासत को नया मोड दिया है।

बुधवार को खान ने दिल्ली विधानसभा में इस बारे में जानकारी दी। अमानतुल्लाह खान को फिर से वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाने के लिए ही आप सरकार ने कुछ समय पहले प्रक्रिया शुरू की थी। पार्टी के अन्य मुस्लिम विधायकों ने खान को वक्फ बोर्ड का सदस्य चुन लिया था।

इसके बाद चेयरमैन के पद के चुनाव के लिए प्रक्रिया होनी थी। मगर खान को फिर से चेयरमैन बनाने के सरकार के प्रयास की हर तरफ निंदा हो रही थी। दैनिक जागरण ने 22 नवंबर को इस बारे में प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किया था।

इसमें बताया गया था कि खान के समय हुई नियुक्तियों आदि में घपले की जांच सीबीआइ कर रही है। इन्हीं आरोप के बाद खान के नेतृत्व वाले बोर्ड को 2016 में भंग कर दिया गया था। उसके बाद भाजपा के विधायकों ने इस मामले की जांच कराने की मांग उपराज्यपाल अनिल बैजल से की थी।

एक अदालती आदेश के चलते गत 10 जनवरी को उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली वक्फ बोर्ड के गठन पर रोक लगा दी थी। उधर आप सरकार की ओर से बुधवार को विधानसभा की विशेष समिति ने वक्फ बोर्ड की जमीन से जुड़े मामलों की एक जांच रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा सदन में सौंपी।

जिसमें वक्फ बोर्ड के कुछ अधिकारियों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने वफ्फ की जमीन से जुड़े मामलों की अदालतों में ठीक से पैरवी नहीं की। जिससे वक्फ मुकदमे हार गया। इसी रिपोर्ट के बाद बता दें कि 7 अक्टूबर 2016 को उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया था।

इसके साथ ही वक्फ बोर्ड में  अलग-अलग पदों पर हुई भर्तियों में भ्रष्टाचार की शिकायत की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी जो चल रही है। वक्फ बोर्ड का गठन पांच साल के लिए किया जाता है। वर्ष 2011 में दिल्ली सरकार द्वारा गठित दिल्ली वक्फ बोर्ड का कार्यकाल दिसंबर 2016  में पूरा होने वाला था, लेकिन भ्रष्टाचार की शिकायत तथा बोर्ड के कुल सात सदस्यों में से पांच ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

फिलहाल दिल्ली वक्फ बोर्ड से जुड़े सभी अधिकार राजस्व सचिव को दे दिए गए थे। उपराज्यपाल ने अपने आदेश में कहा था कि बोर्ड द्वारा गैरकानूनी काम करने, नियमों को न मानने और नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के आरोप की जांच सीबीआइ करेगी।

 

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