पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – कठिन कलिकाल में भगवन्नाम स्मरण ही सर्वोत्तम साधन है। अतः सर्वतोभावेन भगवद-विधान के प्रति समर्पित रह कर नामस्मरण करते रहें ..! कलियुग में नाम स्मरण की बड़ी महिमा है। अविच्छिन्न एवं सतत् प्रभु नाम स्मरण, भगवदीय-अनुग्रह अनुभूत करने में सहायक हैं। नाम स्मरण एक सरल और उत्तम मार्ग है – प्रभु प्राप्ति का। कलियुग में नाम स्मरण से ईश्वर को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। कलियुग में भगवान का नाम स्मरण करना कल्पवृक्ष के समान है। उन्होंने कहा कि कलियुग में श्रीहरि-नाम के अतिरिक्त भव-बंधन से मुक्ति प्रदान करने वाला दूसरा कोई और साधन नहीं है।
श्रीराम और श्रीकृष्ण इस राष्ट्र के प्राणतत्व हैं। जब मन चैतन्य हो जाए तो ईश्वर प्राप्ति कोई कठिन बात नहीं। चित्त को शांत करने के लिए अध्यात्म को जानना आवश्यक है। गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रसंग का वर्णन करते हुए पूज्य “आचार्यश्री जी” ने कहा कि तुलसीदास जी ने अपने कामना भाव से मृत देह पर बैठकर नदी को पार किया और सांप को रस्सी समझकर घर के अंदर प्रवेश किया। पत्नी रत्ना ने उसे काफी तिरस्कार किया और कहा कि यह कामना अविवेकपूर्ण है। अगर यही आकर्षण मेरे देह के लिए नहीं होकर श्रीराम के प्रति होता तो भव से तर जाते या मोक्ष की प्राप्ति होती। पत्नी ने तो यहां तक कहा कि आप तो आंख होते हुए भी नेत्रहीन हैं। इस अपमान को वह सह नहीं सके और प्रभु श्रीराम के चरण में स्वयं को लीन कर दिया। और, उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस संत-सत्पुरुष घर-घर पहुँचा रहें है …।
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कलियुग में भगवन्नाम स्मरण की महिमा का विशेष महत्व है। नाम स्मरण कलि के पापों का नाश करनेवाला है। इससे श्रेष्ठ कोई अन्य उपाय सारे वेदों में भी देखने को नहीं आता। भगवन्नाम स्मरण के द्वारा षोडश कलाओं से आवृत्त जीव के आवरण नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात जैसे बादल के छट जाने पर भगवान भुवन भास्कर सूर्य की किरणें प्रकाशित हो उठती हैं, उसी तरह परब्रह्म का स्वरूप भी प्रकाशित हो जाता है। देवर्षि नारदजी के द्वारा नाम-मंत्र के जप की विधि पूछने पर श्रीब्रह्माजी बोले – इसके जप की कोई विशिष्ट विधि नहीं है। कोई पवित्र हो या अपवित्र, इस नाम-मंत्र का निरन्तर जप करने वाला मुक्ति को प्राप्त करता ही है, इसमें कोई संशय नहीं …।
अपनी ताकत पर अभिमान ना करें। गज को अपनी ताकत का अभिमान था, परंतु ग्राह से बचने के लिए उसे भी नारायण को पुकारना पड़ा। जीवन में हमेशा आदर का बीज लेकर चलें उससे आपको आदर मिलेगा। हमारी संस्कृति में तो दरिद्र को नारायण माना गया है। भगवान नारायण सबमें हैं आवश्यकता है तो उन्हें पहचानने की। वस्तु, पदार्थ और प्राप्त संग्रह की नश्वरता-क्षणभंगुरता और उनसे प्राप्त होने वाले सुख-दुःख का अनुभव जगत की अनित्यता और अस्थिरता का परिचय देते हैं। अतः अखण्ड-आनन्द; स्थायी प्रसन्नता, भगवद-भजन एवं अविनाशी स्वरूप के बोध में है। स्थायी प्रसन्नता ही सभी लक्ष्यों का परम लक्ष्य है और यह चेतनता की वह अवस्था है, जो आपके भीतर पहले से विद्यमान है। भगवन्नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है। स्वार्थ को छोड़कर दूसरे के हित के लिए चिंता करना ही भगवान को प्रेम में बांधने का उपाय है और यह तभी संभव है जब व्यक्ति संतों की संगति में रहे। सत्संग की बातें सुनने का यह असर होता है कि व्यक्ति का कुसंग कम हो जाता है। इस प्रकार दूसरों के प्रति ईर्ष्या व द्वेष भाव रखने के बजाए सभी के प्रति आत्मीयता रखें, क्योंकि यही सुखी जीवन का आधार है …।
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