न्यूज़ डेस्क : वर्ष 2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा है। इस नीति के अंतर्गत कई सरकारी क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का लक्ष्य तय किया गया है, जिसमें भारतीय जीवन बीमा निगम का आईपीओ लाकर पैसा जुटाने की बात भी कही गई है। अनेक कंपनियों में स्ट्रैटेजिक डिसइनवेस्टमेंट करना भी सरकार का लक्ष्य है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ये कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस सोच के अनुसार ही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि व्यापार चलाना सरकार का काम नहीं है। इससे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भी केंद्र सरकार यह नीति जारी रखने की कोशिश करेगी।
लेकिन सरकार की इस विनिवेश नीति से वामपंथी श्रमिक संगठन ही नहीं, आरएसएस का सहयोगी संगठन भारतीय मजदूर (BMS) संघ भी नाराज है। संगठन ने चेन्नई में आयोजित अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सरकार के इस कदम को श्रमिकों के हितों के विरूद्ध बताया है। संगठन ने कहा है कि विनिवेश से हजारों कर्मचारियों-श्रमिकों का रोजगार हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। संगठन विनिवेश नीति के विरोध में लंबा आंदोलन चलाने की तैयारी कर रहा है। इससे सरकार की मुश्किलें आने वाले दिनों में बढ़ सकती हैं।
पूरे साल होंगे विरोध के तमाम कार्यक्रम
15 मार्च से इंडस्ट्री के विभिन्न क्षेत्रों में सेमिनार आयोजित किए जाएंगे। 14 जून से जनजागरूकता अभियान शुरू किया जाएगा। 15 जुलाई से यूनिट स्तर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे और 23 नवंबर को सभी कॉर्पोरेट कंपनियों के कार्यालयों पर प्रदर्शन किया जाएगा। यानी पूरे साल विनिवेश नीति के विरोध में कार्यक्रम किए जाएंगे।
क्या कहते हैं विनिवेश संबंधी आंकड़े
सरकार के पास टेलीकम्यूनिकेशन, अंतरिक्ष, ऊर्जा, पेट्रोलियम, कोयला, मिनरल्स, बीमा और वित्तीय सेवाओं में 300 से ज्यादा कंपनियां हैं। इनमें से कई कंपनियां ठीक-ठाक प्रदर्शन कर रही हैं, तो कुछ खराब वित्तीय हालात से गुजर रही हैं। सरकार इन्हें बेचकर राजस्व जुटाने को अपनी नीति घोषित कर चुकी है।
1991-92 से उदारीकरण के समय ही विनिवेश को राजस्व कमाने के एक अवसर के रूप में देखा गया। सरकार ने इस वर्ष में 31 कंपनियों में विनिवेश किया और 3038 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया। 2001 से 2004 के बीच विनिवेश से 21163 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया गया। 2011-12 में सरकार ने विनिवेश से 14 हजार करोड़ रुपये का राजस्व कमाया।
यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि सरकार ने ज्यादातर मामलों में विनिवेश से ज्यादा राजस्व कमाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन तीन-चार सालों में ही वह अपने लक्ष्य तक विनिवेश कर पाई। ज्यादातर वर्षों में केंद्र सरकार विनिवेश का अपना ही लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई। ज्यादातर कंपनियों को बाजार से उचित निवेश नहीं मिला। एयर इंडिया का मामला इसमें सबसे नया है।
भाजपा की नजर में संगठन की चिंता स्वाभाविक
आर्थिक मामलों के जानकार भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने अमर उजाला से कहा कि कोई संगठन जिस उद्देश्य को लेकर चलता है, उसके हितधारकों के लिए उसके मन में चिंता होना बहुत स्वाभाविक है। भारतीय मजदूर संघ श्रमिकों की चिंता कर रहा है, तो सरकार उससे बातचीत करेगी। लेकिन सरकार जब कोई नीति बनाती है तो उसके पूर्व वह सभी हितधारकों से बातचीत करती है और उसकी चिंताओं को समझने का प्रयास करती है। लेकिन नीति बनाते समय पूरे राष्ट्र के व्यापक हित को ध्यान में रखा जाता है।
गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने अमर उजाला से कहा कि कोरोना काल में सरकार के सामने आर्थिक संसाधन जुटाने की चुनौती है। दूसरी तरफ, जिस समय पूरे देश का शेयर बाजार 50 हजार को पार कर चुका है, उस समय में भी पीएसयू कंपनियों का प्रदर्शन खराब स्तर पर बना हुआ है। ऐसे में उन्हें व्यापार में लगाए रखना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। लेकिन कोई भी नीति बनाते समय सरकार उसके कर्मचारियों-श्रमिकों के हितों का पूरा ध्यान रखेगी।
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