आज देश की जनता और सरकार दोनों दिल्ली के राजपथ के बीच मे आ खड़ी हो गई है और इंतज़ार कर रही है की राजपथ के दोनों छोरो का निर्णय क्या होगा l एक छोर जहा सैनिकों के सहादत के बदले का इंतज़ार कर रहा वही दुसरे छोर आम चुनाव के बाद सरकार की l जाहिर है यह शब्द राजपथ सुनते ही सबके दिमाग में दो चीजें आती है l एक राजपथ जहां पर अमर जवान ज्योति है जहां पर 1971 के बाद लगातार एक अखंड ज्योत जलती रहती है ,कभी बुझती नहीं यह उन जवानों की शहादत की याद में जलाई जाती है, जिन्होंने 1971 की पाकिस्तान के साथ लड़ाई मैं अपनी जान गवाई और दूसरा राजपथ दिमाग में आता है सत्ता को लेकर l यह कितनी अजीब बात है या फिर कहें कि कैसा संयोग है कि दोनों ही एक ही पथ पर एक दुसरे के आमने -सामने है या फिर यह कहे की एक ही रास्ता है जिसको राजपथ कहते हैं l एक राजपथ किसी की शहादत को याद करने के लिए है और एक राजपथ देश की सत्ता पर आसीन होने के लिए और दोनों का रास्ता एक ही है l
वर्तमान में देश में दोनों स्थिति चल रही है पहली पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के शहादत का बदला लेना का और दूसरा देश में संसदीय चुनाव का और यह दोनों ही राजपथ से जुड़ा हुआ है l देश के जो वर्तमान प्रधानमंत्री है उनकी चिंता वापस इस राजपथ पर चलना है और उनकी एक और चिंता है कि इस राजपथ पर रहते हुए कश्मीर में शहीद हुए सैनिकों की शहादत का बदला लेकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाए और यह राजपथ अपना बना रहे l परन्तु दोनों ही कठिन रास्ते और दोनों एक ही रास्ते से जुड़े हैं l इस राजपथ का एक छोर शहीदों के लिए है और दूसरा छोर राज्य करने के लिए, परंतु राजनेताओ की प्राथमिकता राज करने वाले राज पथ पर चलने का ज्यादा महत्व है l क्योंकि अगर यह मौका चूक गए तो फिर अगले 5 साल वो इस राज्य से बेदखल हो जाएंगे और राजपथ से दूर हो जाएंगे ,और अगर यह राज्य उनके हाथों से चला गया तो फिर वह इस राजपथ का आनंद नहीं ले पाएंगे l अब आप खुद ही सोच सकते है की राजनेताओ की प्राथमिकता क्या होगी l
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पूरा देश आज शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा है पूरे देश की भावना राजपथ पर जलते हुए अमर जवान ज्योति पर अपने नम आंखों से सभी सैनिकों को श्रद्धांजलि देने की है l क्योकि वास्तव में उन्होंने इस देश को इस राज्य को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी है और राजपथ पर उनका ही हक है, परंतु राजनीति करते हुए सत्ता पर काबिज होना भी महत्वपूर्ण है और इसके लिए नेता सभी नैतिकता को छोड़ देते हैं l आज जहां देश गुस्से से जल रहा है वही देश की दो मुख्य पार्टियां एक दूसरे पर दोषारोपण करने में व्यस्त है और यह सब उस राज्य पथ के लिए हो रहा है जहां सत्ता है , आराम है और जहां 5 सालों तक अपनी मनमर्जी करने का और जनता के टैक्स से जमा हुए रुपयों का दुरुपयोग करने की खुली आजादी है l सत्ता का राजपथ बड़ा हसीन है और सैनिकों का राजपथ बड़ा मुश्किल होता है l
हमारे देश की यह विडंबना है की सेना में सिर्फ सामान्य नागरिकों के परिवार के लोग होते हैं किसी भी बड़े अधिकारी या नेता का परिवार का कोई कभी भी सैनिक मे शामिल नहीं होता और ना ही कभी शहीद होता है l इसलिए यह नेता किसी मां के दर्द को नहीं समझते और अपनी राजनीति इस शहादत पर भी चमकाते रहते हैं l क्या कभी कोई ऐसा नियम इस देश में आ सकता है की देश का नेता वही बन सकता है जिसके परिवार से एक व्यक्ति सेना में हो और अगर ऐसा हो गया तब शायद सैनिकों के कष्ट का , उनके कर्तव्य का ज्ञान उन्हें होगा और फिर वह सही निर्णय लेने की स्थिति में आएंगे l
वर्तमान परिस्थितियों में देश राजपथ पर खड़ा है और एक तरफ सैनिकों की सहादत और दूसरी तरफ आप चुनाव और देश दोनों की तैयार कर रहे हैं l परन्तु अब देश को देखना है की सरकार की प्राथमिकता राजपथ के कौन से छोर पर जाने की जल्दी मे है l आज पूरा देश राजपथ के बीच में खड़ा होकर इंतजार कर रहा है एक तरफ सैनिकों की शहादत का बदला का इंतजार कर रहा है तथा दूसरी आम चुनाव के बाद सत्ता में कौन आएगा इसका इंतज़ार l सरकार भी राजपथ पर खड़ी है और जनता भी और दोनों ही राजपथ के दोनों तरफ देख रही है जहां से एक तरफ सहादत दिख रही है और दूसरी तरफ सत्ता l राजपथ पर खड़े इस देश को आशा है की उनको अपने सैनिकों के सहादत का बदला भी मिलेगा और एक बेहतर सरकार भी मिलेगी l
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