अच्छे दिन की आस आजादी के समय से सभी देशवासियों के दिल में है और वो सोचते है कि क्या कभी अच्छे दिन आएंगे l 2014 चुनाव मे जो सभी देशवासियों को एक सपना दिखाया गया था की अच्छे दिन आने वाले है के 5 साल बाद हम मूल्यांकन करने की स्थिति में खड़े हैं कि क्या अच्छे दिन आए हैं ? बहुत सारे लोगों से इसका जवाब ढूंढने की कोशिश करने पर जब उनसे पूछा जाता है कि अच्छे दिन आ गए तो सभी लोग थोड़ा देर मौन होने के बाद बोलते हैं आ गया या फिर बोलते है आने वाले हैं , वह खुद ही स्पष्ट नहीं है कि क्या अच्छे दिन आ गए l
परंतु एक विकल्प के अभाव में एक मजबूत विपक्ष के अभाव में इस भरोसे के साथ की अच्छे दिन आएंगे के सहारे फिर से मोदी को वोट देने की बात करते हैं l परन्तु मूल्यांकन यह होना है कि क्या अच्छे दिन आ गए ? वर्तमान में देश में नोटबंदी के बाद जो परिस्थितियों हुई है जो 2016 से 2019 में एकदम अलग हो चुकी है l 2016 नोट बंदी के पहले मोदी सरकार अभी तक की सबसे लोकप्रिय सरकार मानी जाती थी l नोटबंदी जीएसट के बाद धीरे धीरे देश में मोदी सरकार अलोकप्रिय होती चली गई और आज स्थिति यह है कि बहुत सारे अच्छे कार्य करने के बावजूद भी बीजेपी आज इस स्थिति में नहीं है कि वह मान ले कि वह पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है l
परंतु देश की जनता के लिए आज यह एक सवाल है कि क्या कभी ऐसा समय आएगा कि देश मे गरीबी नहीं होगी , इस देश में सभी युवाओं को रोजगार मिलेगा , इस देश में सभी महिलाओं को सम्मान मिलेगा, इस देश के सभी उद्योग धंधे सुचारू रूप से चलेंगे , इस देश का भ्रष्टाचार खत्म होगा , किसानों को उनका हक मिलेगा , विद्यार्थियों को उचित शिक्षा का माहौल मिलेगा और यह भारत देश विकसित राष्ट्र बनेगा l भारत का मतदाता फंसा हुआ है और वह निर्णय देने की स्थिति में नहीं है की कौन सी पार्टी के साथ जाने पर उसके अच्छे दिन आएंगे l वर्तमान में तो अच्छे दिन आए नहीं है परंतु इस अपेक्षा के साथ की कभी अच्छे दिन आएंगे आज चुनाव के चौखट पर देश खड़ी है और दुविधा में है की किस को वोट दें l आजादी के बाद तमाम हुक्मरान और तमाम पार्टियों की सत्ता देश मे आई परंतु हिंदुस्तानवासी जहां थे वहीं हैं l राजनीतिक रूप से देखें तो अगर आप बीजेपी समर्थक है तो आपके अच्छे दिन आ गए अगर आप बीजेपी समर्थक नहीं है तो आप के अच्छे दिन नहीं है l
मगर देश की स्थिति की बात करें तो आज भी गरीबी एक नारा है l अच्छे दिन पार्टियों के आते हैं उसका ताजा उदाहरण है कि सिर्फ 1 साल में सभी राजनीतिक दलों के पास 17 हज़ार करोड रुपए चुनावी चंदा आए हैं l दूसरी स्थिति यह है कि पार्टी के अपने सत्ता को बचाए रखने के लिए नई-नई खैरात की योजनाएं ला रहे हैं हम सभी देशवासियों को खैरात की योजना का विरोध करना चाहिए क्योंकि स्थाई समाधान सरकार नहीं दे पा रही हैं या इनमें योग्यता नहीं है स्थाई समाधान देने का इसलिए सभी खैरात के वोट खरीदने का प्रयास कर रहे है l पहले नोट देकर सीधा वोट खरीदे थे परंतु अब चुनाव में खैरात दे कर वोट खरीदा जा रहा है l राजनीतिक रैली में कोई भी पार्टी विकास की बात नहीं करती दिख रही है जो की यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है l
हम बस अब यही मान लेते है कि जैसे राम मंदिर एक चुनावी मुद्दा भाजपा के लिए हमेशा होता है , परन्तु मंदिर कभी नहीं बनता l वैसे ही अच्छे दिन कब आएंगे यह भी राम मंदिर की तरह एक चुनावी घोषणा बन के रह जायेगा और यह कभी नहीं आएगा l वर्तमान परिस्थितियों में किसी भी राजनीतिक दल की स्थिति को देखते हुए उनके विचारों को देखते हुए नहीं लगता कि देश में कभी अच्छे दिन आएंगे l इसलिए आज यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या अच्छे दिन आ गए क्योंकी , इशी नारे के साथ “अच्छे दिन आने वाले है ” मोदी सरकार सत्ता में आई थी परन्तु इस बार उसने नारा ही बदल दिया और उनको शायद यह नारा याद भी नहीं होगा l
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