अजित डोभाल के एक ट्रिक ने कम कर दिया भारत और चीन के बीच तनाव

दोनों देश बफर जोन बनाने पर हुए राजी, दोनों देशों ने हटाई सेना- सूत्र

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल और विदेश मंत्री वांग यी के बीच बनी सहमति

लेकिन पैंगोंग त्सो लेकर क्षेत्र को लेकर अभी साफ नहीं है तस्वीर

अजित डोभाल का पुराना मूलमंत्र- भिन्नता वाले मसले पर नहीं टकराएं, मित्रता की राह पर बढ़े आगे

 

न्यूज़ डेस्क : भिन्नता वाले मुद्दे पर आपस में न टकराएं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का पुराना मूल मंत्र है। इसी मंत्र से डोकलाम विवाद के दौरान भी भारत ने चीन का अमूल्य संदेश दिया था। यही पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में भारत और चीन की सेना के बीच में बना तनातनी में काम आया है।

 

अजित डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री यांग यी से इसी कूटनीतिक लाइन पर रविवार 5 जुलाई को बात की। दोनों देशों के सीमा विवाद मुद्दे के विशेष प्रतिनिधियों में यह वार्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लेह-लद्दाख की यात्रा के ठीक अगले दिन हुई है। वार्ता के ठीक बाद भारत और चीन ने 30 जून को सैन्य कमांडरों के बीच बनी सहमति को जमीन पर आकार देना शुरू किया है।

 

गलवां नदी घाटी क्षेत्र में हटे हैं पीछे…बफर जोन रहेगा इलाका

सैन्य सूत्र बताते हैं कि गलवां नदी क्षेत्र में चीन की फौज कोई 1.5 किमी से अधिक पीछे हटी है। भारत ने भी अपनी फौज पीछे हटाई है। चीन ने अपने स्थाई टेंट आदि को खुद हटाया और पीछे की तरफ गए हैं। यह वहीं क्षेत्र है, जहां 15 जून को दोनों देशों के सैनिकों में हिंसक झड़प हो गई थी और दोनों देशों को नुकसान उठाना पड़ा था।

 

भारत के 20 से अधिक सैनिक शहीद हो गए थे। बताते हैं भारत और चीन के बीच में विवादित क्षेत्र को छोड़कर दोनों देशों की सेनाएं अपन-अपने क्षेत्र में पेट्रोलिंग करने पर सहमत हो रही हैं। सूत्र बताते हैं कि विवादि क्षेत्र को बफर जोन की तरह से व्यवहार में लाए जाने की योजना है।

 

 

भिन्नता (असहमति) न बने टकराव का कारण, सीमा पर रहे शांति

अजित डोभाल और यांग यी के बीच में सहमति बनी है कि भारत और चीन सीमा क्षेत्र में मामले में जहां भी असहमति (भिन्नता, विवाद) है, उसे टकराव का रूप नहीं बनने देंगे। दोनों देश सहमत हैं कि इस आधार पर सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखेंगे। इसके लिए यथासंभव, यथा शीघ्र कुछ चरणों में विवादित क्षेत्र से दोनों देश अपनी सेना को हटाकर पहले की स्थिति में ले जाएंगे।

 

दोनों शीर्ष स्तर के विशेष प्रतिनिधियों ने सहमति जताई है कि दोनों देश इस सहमति का पालन करेंगे और एक दूसरे को इस सहमति के प्रति आश्वस्त करेंगे। भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलसीए) का सम्मान करेंगे और कोई भी देश सीमा क्षेत्र में एकतरफा कार्रवाई जैसा कदम नहीं उठाएगा।

 

इतना ही नहीं सहमति का आधार यह भी है कि दोनों देशों के वर्किंग मैकेनिज्म इस पर कार्य करते रहेंगे, ताकि इस तरह के टकराव की पुनरावृत्ति न होने पाए। इसके लिए दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के निबटारे में सहयोग और समन्वय के लिए बना सैन्य अधिकारियों, राजनयिकों का वर्किंग मैकेनिज्म तय प्रोटोकॉल के आधार पर अपना काम करता रहेगा।

 

 

चीन का बयान उलझा रहा है

भारत का दावा पैंगोंग त्सो झील के इलाके में फिंगर आठ तक का है। अभी चीन के सैनिक पेट्रोलिंग प्वाइंट, फिंगर क्षेत्र 4 से पीछे हट रहे हैं, लेकिन पैंगोंग क्षेत्र को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है। भारत और चीन के बयान में कहीं यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों के सैनिक पुरानी स्थिति में लौटकर, पुरानी स्थिति (अप्रैल 2020) में लौट जाएंगे।

 

चीन के बयान में कहा गया है कि भारत और चीन की सेना के बीच में फ्रंटलाइन ट्रूप्स को पीछे हटाने पर सहमति बनी है। फ्रंटलाइन ट्रूप्स का जिक्र केवल चीन के वक्तव्य है। भारत के बयान में नहीं है।

 

पूरी तरह से सेना को पीछे हटाने और पुरानी स्थिति को बहाल करने का कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में अभी स्थिति साफ नहीं है कि आगे पूर्वी लद्दाख में चीन का रुख क्या रहेगा? पैंगोंग क्षेत्र का क्या रहेगा?

 

 

चीन के बयान में भारत को दी है नसीहत

चीन के विदेश मंत्री ने अपने वक्तव्य में भारत-चीन के बीच में तनाव के कई और पक्षों पर राय दी है। वांग यी के वक्तव्य में कहा गया है कि भारत और चीन अपने व्यापक हितों को देखते हुए विकास और रिश्तों में जीवंतता को प्राथमिकता देंगे।

 

दोनों देश एक-दूसरे विकास के अवसर देंगे। अपने यहां लोगों की बन रही एक दूसरे के विरोध की राय को भी सही दिशा देंगे। वांग यी के इस वक्तव्य से साफ है कि भारत सरकार चीन के 59 एप्स, चीनी कंपनियों के व्यापार पर लगाई जा रही रोक का पड़ोसी देश पर गहरा असर पड़ा है।

 

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बातचीत में इस पर प्रतिवाद किया है और इस तरह की स्थितियों को दूर करने के लिए कहा है। चीन यहां एक तरह से भारतीय पक्ष को नसीहत देता हुआ दिखाई दे रहा है कि रिश्तों को लेकर एक तरफा बनाया जा रहा वातावरण ठीक नहीं है। इसको लेकर दोनों देश अपने यहां सही दिशा में काम करेंगे।

 

वक्तव्य में एक लाइन गलवां नदी घाटी क्षेत्र में हुई हिंसक झड़प पर भी है। यहां वांग यी के हवाले से कहा जा रहा है कि हाल में चीन-भारत पश्चिमी सीमा क्षेत्र के गलवां घाटी में गलत या सही, जो भी हुआ उससे बहुत स्पष्ट है। चीन सीमा क्षेत्र में शांति और अमन के साथ-साथ अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की सुरक्षा को जारी रखेगा। यानी चीन अपने दावे को नहीं छोड़ेगा।

एनएसए डोभाल की पुरानी ट्रिक आई काम

याद कीजिए 73 दिन की डोकलाम में भारत-चीन फौज की तनातनी। तब भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोकलाम की यही ट्रिक काम आई थी। उन्हें चीन के शिखर नेता के पास संदेश भिजवाया था कि भारत-चीन के बीच सीमा पर तनाव से बड़े कई और क्षेत्रों में बड़े द्विपक्षीय हित हैं।

 

दोनों देश एशिया में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और दोनों को आपसी तालमेल, सहयोग तथा सामन्वय से अर्थ व्यवस्था समेत अन्य रणनीतिक साझेदारी की तरफ देखना चाहिए। इसके बाद डोकलाम में दोनों देशों के बीच सहमति बन गई थी।

 

मई 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच में लद्दाख क्षेत्र में बनी टकराव की स्थिति के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने एक बार फिर अपनी इस ट्रिक के अनुरुप डिजाइन तैयार की। पहले चीन के मोबाइल एप पर प्रतिबंध, फिर प्रधानमंत्री का विबो से अपनी प्रोफाइल हटाना, कई मंत्रालयों द्वारा चीन की कंपनियों के ठेके रद्द करना और चीनी सामानों के बष्किार की देश भर में अपील ने चीन पर अच्छा असर डाला।

 

माना जा रहा है कि एनएसए की ट्रिक काम कर गई। इसी डिजाइन के तहत शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने भी लेह-लद्दाख का दौरा भी किया था।

अच्छी बात….सुधरेंगे रिश्ते

दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच बातचीत के बाद अच्छी खबर आई है। चीन और भारत दोनों ने अमल किया। अपने दावे से पीछे हटे, सेना भी शांति, सहयोग और समन्वय की स्थापना के लिए पीछे हटाई है।

 

आगे सैन्य कमांडरों और स्थापित वर्किंग मैकेनिज्म के बीच में चर्चा चलती रहेगी। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही चीन और भारत के सैनिक अप्रैल 2020 की स्थिति में आते हुए बैरक में चले जाएंगे। पैंगोंग त्सो एरिया से चीन के सैनिक अपने बंकर, टेंट, सैन्य सरचना को हटाकर पीछे लौट जाएंगे।

 

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