नई दिल्ली। आरुषि व हेमराज की हत्या के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिहा हुए तलवार दंपती जेल में फिर जाएंगे या बाहर खुली हवा में सांस लेते रहेंगे यह सुप्रीम कोर्ट के रुख पर तय होगा। बता दें कि बहुचर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड में हाईकोर्ट ने डा. राजेश तलवार और नूपुर तलवार को संदेह का लाभ देते हुए हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने गाजियाबाद की सीबीआइ कोर्ट से तलवार दंपती को मिली उम्रकैद की सजा के आदेश को भी रद कर दिया था। कोर्ट ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश भी दिया।
आरुषि व हेमराज की हत्या के मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हेमराज की पत्नी ने सर्वोच्च अदालत से गुहार लगाई है कि उसे न्याय दिलाया जाए। आरुषि के पिता राजेश तलवार व मां नुपुर तलवार को हाई कोर्ट ने 12 अक्टूबर को बरी किया था।
2008 में हुए दोहरे हत्याकांड ने देशभर में सुर्खियां बटोरी थीं। मामले में निर्णायक मोड़ तब आया जब जांच एजेंसियों ने दोहरे हत्याकांड में राजेश व नुपुर को गिरफ्तार किया। 26 नवबंर 2013 को गाजियाबाद की विशेष कोर्ट ने दोनों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। उस के बाद से दोनों गाजियाबाद की डासना जेल में सजा काट रहे थे।
हालांकि पहले इस मामले में आरुषि की हत्या को लेकर नौकर हेमराज की तरफ शक की सुई घूमी थी, लेकिन टैरेस पर उसकी लाश मिलने के बाद सारा मामला ही दूसरी तरफ घूम गया।
बहुचर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड में हाईकोर्ट ने डा. राजेश तलवार और नूपुर तलवार को संदेह का लाभ देते हुए हत्या के आरोप से बरी कर दिया है। अदालत ने गाजियाबाद की सीबीआइ कोर्ट से तलवार दंपती को मिली उम्रकैद की सजा के आदेश को भी रद कर दिया है। कोर्ट ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश भी दिया।
तलवार दंपती की अपील को मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति बीके नारायण और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र (प्रथम) की खंडपीठ ने यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जिन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर आरोपितों को सीबीआइ कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, उनकी कडिय़ां टूटी हुई हैं।
उनके आधार पर यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि हत्या अन्य कोई नहीं कर सकता था। हाईकोर्ट ने कहा कि संदेह का लाभ हमेशा आरोपित को ही मिलेगा। इस मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य हत्या का आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सीबीआइ अदालत इन साक्ष्यों की तारतम्यता को नहीं मिला सकी और इस वजह से उसका निष्कर्ष कानून की दृष्टि में सही नहीं माना जा सकता।
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