न्यूज़ डेस्क : नरेंद्र मोदी सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुकी निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को वित्त मंत्रालय का जिम्मा संभाल लिया। यूं तो कभी प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने भी वित्त मंत्रालय का जिम्मा संभाला था, लेकिन पूर्णकालिक रुप से वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने वाली सीतारमण देश की पहली वित्त मंत्री बन गई हैं। इनके ऊपर चुनौती तो अपार है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अगले डेढ़ महीने में वर्ष 2019-20 का पूर्ण बजट पेश करने का होगा।
जवाहर लाल नेहरू विश्वाद्यलय से पढ़ाई करने वाली सीतारमण को अगले डेढ़ महीने के अंदर इस वर्ष का बजट बनाना होगा। इसके लिए वित्त मंत्रालय ने उद्योग जगत से बातचीत शुरू कर दी है। इसके साथ ही सभी मंत्रालयों से भी तालमेल बना कर उनकी आवश्यकता और समझना और उसके अनुरूप आवंटन के लिए उन्हें जद्दोजहद करनी होगी।
उनके ऊपर देश के विनिर्माण उद्योग की विकास दर बढ़ाने की भी होगी। यही वजह है कि पिछली तिमाही देश की विकास दर मोदी सरकार के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। उन्हें औद्योगिक विकास दर बढ़ाने के लिए ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना होगा, जिससे अर्थव्यवस्था में नई जान आए। यदि अर्थव्यवस्था में नई जान आती है तो इस एक तीर से कई शिकार होंगे। इससे रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी।
इस तरह की कई रिपोर्ट आ चुकी हैं कि इस समय रोजगार के अवसरों में काफी कमी आई है। बैंकिंग क्षेत्र में सुधार उनकी अगली प्राथमिकता होगी। पुराने वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कई छोटे बैंकों को मिला कर कुछ बड़े बैंक बनाने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत की है।
इसी क्रम में बैंक आफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का विलय हो चुका है। आगे भी इसे जारी रखना होगा। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में व्याप्त तरलता का संकट और एनबीएफसी संकट को भी दूर करने की जिम्मेदारी होगी। इसके अलावा इस समय बैंकिंग सेक्टर पर लघु उद्योग को पर्याप्त ऋण नहीं देने का आरोप लग रहा है। निर्यातक भी शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें निर्यात के लिए ऋण नहीं मिल रहा है। वित्त मंत्री के रूप में उन्हें इस समस्या को भी हल करना होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दूनी करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हो पाया है। इसलिए निर्मला सीतारमण के ऊपर कृषि विकास को भी बढ़ाने की जिम्मेदारी होगी। उन्हें इस तरह की योजनाओं का खाका खींचना होगा और वित्त पोषण करना होगा, जिससे किसानों की आमदनी बढ़े। नई वित्त मंत्री के ऊपर वस्तु एवं सेवा कर -जीएसटी- प्रणाली की दिक्कतों को दूर करने की भी जिम्मेदारी होगी।
इस समय कारोबारियों की शिकायत है कि जीएसटी प्रणाली में रिटर्न दाखिल करने की प्रणाली बेहतर नहीं हो पाई है। हर महीने जब जीएसटी का मासिक रिटर्न भरा जाता है, उस समय जीएसटी नेटवर्क की साइट मुंह बा देती है।
यही नहीं, उद्योग जगत सभी तरह के पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के अंदर लाने की मांग करता रहा है क्योंकि उन्हें इस समय पेट्रोल और डीजल पर भुगतान किये गए कर का आईटीसी नहीं मिलता है। इसी तरह नागरिक उड्डयन क्षेत्र एटीएफ को जीएसटी के अंदर लाने की मांग कर रहा है।
राजकोषीय घाटे को भी काबू करने की जिम्मेदारी नई वित्त मंत्री को उठानी होगी। बीते साल कई लोक लुभावन योजनाओं को कार्यरूप देने की वजह से चालू वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले राजकोषीय घाटे को 3.4 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया गया है। हालांकि पहले जो लक्ष्य तय किया गया था, उसके मुताबिक इसे 3.1 फीसदी पर होना था।
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