पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सृष्टि की रचना, पालन एवं संहार तीनों प्रकार की ईश्वरीय शक्तियों से परिपूर्ण, आद्यगुरू अवधूत भगवान श्री दत्तात्रेय के प्राकट्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। हमारे आत्म को जगाते हैं – भगवान दत्तात्रेय…। भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु व महेश का स्वरूप माना गया है। भगवान दत्तात्रेय महायोगी व महागुरु के रूप में भी पूजनीय हैं। भगवान दत्तात्रेय स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं, उनका कार्य है – पालन करना, लोगों में भक्ति की लगन जगाना तथा आदर्श एवं आनंदमयी जीवन व्यतीत करने की सीख देना। इस अर्थ में वे संपूर्ण मानव जाति के गुरु हैं। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु श्री दत्तात्रेय जी की जयंती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय शीघ्र कृपा करने वाले हैं, भक्त वत्सल दत्तात्रेय जी, भक्त के स्मरण करते ही उसके पास पहुंच जाते हैं। इसीलिए इन्हें ‘स्मृतिगामी’ तथा ‘स्मृतिमात्रानुगन्ता’ भी कहा गया है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – श्री दत्तात्रेय जी में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें ‘परब्रह्ममूर्ति सदगुरु’ और ‘श्री गुरुदेवदत्त’ भी कहा जाता है, शैव और वैष्णव दोनों ही मतों को मानने वाले श्री दत्तात्रेय भगवान को पूजते हैं। श्रीदत्त अर्थात् ‘मैं आत्मा हूं’ की अनुभूति देने वाला…। प्रत्येक मनुष्य में आत्मा का वास है इसलिए प्रत्येक मनुष्य अनेक तरह की गतिविधियों में सक्रिय रहता है। श्रीदत्त का स्मरण करते हुए हम पाते हैं कि हमारे अंदर भगवान का ही वास है, उनके बिना हम अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। हर मनुष्य की आत्मा में भगवान का वास है, इसकी प्रतीति आने पर ही हम सभी से प्रेमपूर्वक आचरण कर सकेंगे, दत्त जयंती हमें इसी बात का ध्यान दिलाती है…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – जब यदु ने दत्तात्रेय जी से पूछा कि उन्होंने इतना ज्ञान कैसे पाया? तो भगवान दत्तात्रेय जी ने उन्हें बताया कि मैंने हर किसी से ज्ञान प्राप्त किया है। श्रीदत्तात्रेय जी बोले – मां पृथ्वी मेरी पहली गुरु है, उन्होंने मुझे बताया कि मुझे लोग रौंदते हैं, तरह-तरह के उत्पात करते हैं, फिर भी मैं रोती-चीखती नहीं, उनसे बदला नहीं लेती, बल्कि उन्हें वह सबकुछ देती हूं, जो उनके लिए आवश्यक है। धीर साधु पुरुष को चाहिए कि वह लोगों की मजबूरी को समझें, न क्रोध करें और न ही अपना धैर्य छोड़ें। वृक्षों और पर्वतों की सभी चेष्टाएं दूसरों के हित में लगी रहती हैं, हमें उनकी शिष्यता स्वीकार कर उनसे परोपकार की शिक्षा लेना चाहिए। पवन (वायु) भी मेरे गुरु हैं, वह अनवरत चलते रहते हैं, फूल, कांटा, पवित्र, अपवित्र सबको समान रूप से स्पर्श करते हैं, सबको ताजगी प्रदान करते हैं, बिना किसी से आसक्त हुए। उनसे मैंने बिना किसी से आसक्त हुए या घृणा किए, बिना ईर्ष्या, भेदभाव के सबको ताजगी प्रदान करना सीखा। शरीर के अन्दर रहने वाली प्राण वायु के रूप में उन्होंने सिखाया कि आवश्यकता के अनुसार ही वस्तुओं को ग्रहण करें, इन्द्रियों की अनावश्यक चाह की पूर्ति में अपना श्रम व्यर्थ न करें। मेरे गुरु आकाश भी हैं, इस जगत में आग लगती है, बरसात होती है, सूर्य, चन्द्र अनेक खगोलीय पिंड भ्रमण करते हैं। वे बिना किसी भेदभाव, बिना किसी से आसक्त हुए दृश्य, अदृश्य सबको समान रूप से उचित स्थान देते हैं। लेकिन उनमें से कोई भी उनकी चेतना को प्रभावित नहीं करता, वह सभी घटनाओं के असम्पृक्त भाव से दृष्टा हैं। मेरा चौथा गुरु जल है, यह जगत में जीवन के नाम से जाना जाता है, जो भी इसके सम्पर्क में आता है, उसे यह स्वच्छ करता है, जीवन प्रदान करता है। जल हमेशा प्रवाहमान रहता है, यदि ठहर जाए, तो विकृत हो जाता है, इसलिए सदा प्रवाहमान रहते हुए लोगों का भला करते रहना चाहिए…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली, उन्होंने मानव जाति के समक्ष यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि शिक्षा किसी से भी प्राप्त की जा सकती है। छोटे से छोटे जीव मात्र से भी कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने पशुओं के कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। वे कहते थे कि जिससे जितना भी सीखने को मिले उसे सीखने में संकोच न रखें। उन्होंने 24 गुरु बनाए, उनके 24 गुरुओं में पृथ्वी, अग्नि, जल, चंद्रमा, आकाश, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी कन्या, सर्प, बाण बनाने वाला, मकडी और भृंगी शामिल हैं। भगवान दत्तात्रेय के पीछे खड़ी गाय पृथ्वी एवं कामधेनु का प्रतीक हैं। कामधेनु हमें इच्छित वस्तु प्रदान करती हैं। चार श्वान- ये ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद इन चारों वेदों के प्रतीक हैं। औदुंबर वृक्ष – भगवान दत्तात्रेय का पूजनीय स्वरूप है, इस वृक्ष में भगवान तत्व रूप में उपस्थित रहते हैं। मार्गशीर्ष मास पूर्णिमा परब्रह्ममूर्ति सदगुरु भगवान श्री दत्तात्रेय जी के प्राकट्य दिवस के उपलक्ष्य पर समरस राष्ट्र व विश्व कल्याण के लिए मंगलकामना, सर्वव्यापी भगवान गुरुदत्त आप सभी का सर्वथा मंगल करें…।
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