बिलासपुर। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने चार वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के आरोपी की मृत्युदंड की सजा को यथावत रखा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे क्रूरतम अपराधी को जीने का अधिकार नहीं होना चाहिए। इसका जिंदा रहना समाज के लिए कलंक होगा।
रायगढ़ निवासी आरोपी लोचन श्रीवास पिता तिलक श्रीवास 25 वर्ष 25 फरवरी 2015 को घर के सामने खेल रही 4 वर्ष की बच्ची को खाने की सामग्री देने का लालच देकर अपने घर ले गया। आरोपी ने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। बच्ची के रोने पर आरोपी ने गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी।
फिर शव को झोले में भरकर घर से कुछ दूर झाड़ियों में फेंक दिया। बच्ची के नहीं दिखने पर परिवार वालों ने तलाश शुरू की। तब आरोपी ने बच्ची के पिता को बताया कि वह पास की झाड़ी में बेहोश पड़ी है। इसके बाद परिवार के लोग बच्ची के शव को अस्पताल लेकर गए। जांच उपरांत डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।
पीएम रिपोर्ट में दुष्कर्म के बाद गला घोंटकर हत्या की पुष्टि हुई। पुलिस की पूछताछ में लोचन ने हत्या करने की बात स्वीकार की। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश रायगढ़ ने मामले को क्रूरतम अपराध माना और दोषी को फांसी की सजा सुनाई। राज्य शासन ने सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट में आवेदन दिया।
वहीं आरोपी ने भी सजा के खिलाफ अपील की। शासन की ओर से अधिवक्ता विवेक शर्मा ने सजा में कमी करने का विरोध किया। जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आरपी शर्मा की डीबी ने सुनवाई उपरांत इस अपराध को भी क्रूरतम से क्रूरतम माना है।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि ऐसे कू्ररतम अपराध करने वाले को जीवन का अधिकार नहीं होना चाहिए। इसका जिंदा रहना समाज के लिए कलंक होगा। कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को यथावत रखते हुए आरोपी की फांसी की सजा की पुष्टि की है।
NEWS SOURCE :- www.jagran.com
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