कानपुर देहात । नोटबंदी के दौर में पैदा हुआ खजांची चंद दिन के बाद ही अपना पहला जन्मदिन मनाएगा। नोटबंदी के दौरान उसकी मां दो दिसंबर को बैंक से अपना पैसा निकालने को लाइन में लगी थी। इसी दौरान उसको प्रसव पीड़ा हुई और उसने बेटे को जन्म दिया।
इसके बाद शुरु हुई राजनीति के दौर ने जोर पकड़ा और अखिलेश यादव सरकार से भी परिवार को आर्थिक मदद मिली। इसके बाद कुछ और लोगों ने परिवार को मदद दी। गरीबी और परिवार के हालातों ने खजांची को उपहार के रूप में उस सरकार से मिली राशि से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रखा है। जिस धनराशि का लाभ खजांची को मिलना था, उस राशि को परिवार व भाई की बीमारी में खर्च किया जा रहा है। इन बातों से अनजान खजांची तो अपने बचपन में खोया हुआ है।
नोटबंदी से भले ही अधिकांश लोग परेशान रहे हों, किंतु कानपुर देहात के झींझक ब्लाक के सरदारपुरवा जोगीडेरा निवासी सर्वेशा देवी के लिए 2016 का दिसंबर माह खासा खुशी लेकर आया था। नोटबंदी के दौरान कोख में पल रहे बच्चे ने बैंक की लाइन में जन्म का क्या दिया मानो उसकी किस्मत खुल गई। दो दिसंबर को जन्मे बच्चे का सर्वेशा ने खजांची रख दिया। इसी के बाद से अखिलेश सरकार ने उसे उपहार के तौर पर दो लाख रुपये की धनराशि दी। सरकार ने उसकी परवरिश और देखभाल के लिए यह धनराशि दी थी।
आज खजांची के एक साल का होने में कुछ ही दिन बाकी है, लेकिन परिवार के हालात ने उसे इस उपहार की धनराशि के लाभ से वंचित रखा। उसकी मां सर्वेशा देवी बताती हैं कि पुत्र के जन्म के छह माह पहले पति ने लंबी बीमारी के बाद साथ छोड़ दिया। इसका वह दंश झेल रही थी कि बड़ा बेटा शिवा (8) क्षयरोग से ग्रसित हो गया। जिसकी बीमारी में इलाज के लिए खजांची के उपहार की धनराशि खर्च करनी पड़ी। गरीबी और परिवार के हालात इस कदर हावी हुए कि वह खजांची की देखभाल छोड़ कर अन्य बच्चों और बीमार बच्चों की देखभाल में जुट गई।
उनके परिवार में खजांची के अलावा पुत्री प्रीती (10), पुत्र शिवा (8), धीरज (6), गगन (4) है। उसने बताया कि एक लाख 25 हजार रुपये की धनराशि को उसने एकमुश्त जमा कराई है। 75 हजार रुपये अब तक घर के कर्ज व बीमारी में खर्च हो गए हैं। खजांची के देखभाल और पढ़ाई के बावत बताया कि उसे अच्छी तरह से पढ़ाने की कोशिश करेगी। उसके लिए वह काफी भाग्यशाली है।
राजनीति ने साथ न दिया
खजांची, जिसने नोटबंदी के दौरान लाइन में लगे लोगों को आवाज दी थी। वही खजांची, जिसके नन्हें कंधों पर कई राजनेताओं ने सवारी की थी। वही खजांची जो देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ब्रांड एम्बेस्डर के तौर पर पेश किया गया। अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में खजांची का हर जनसभा में जिक्र किया। उन्होंने दर्जनों सभाओं में खजांची को दो लाख रुपए की मदद देने का बखान किया और केंद्र पर नोटबंदी को लेकर हमला किया। आज खजांची को पूछने वाला कोई भी नहीं है। खजांची अब पहला जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहा है। पिता के निधन के बाद उसकी मां को ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। वह मजदूरी करती है, खजांची खेलता रहता है।
खजांची पड़ गया नाम
कानपुर देहात के झींझक ब्लॉक के सरदारपुर जोगी डेरा गांव की रहने वाली सर्वेशा दो दिसंबर 2016 को पंजाब नेशनल बैंक में सुबह 9 बजे लाइन में लगी थी। वह गर्भवती थी। सुबह से शाम हुई तो सर्वेशा दर्द बढऩे लगा। बैंकवालों ने इसके बाद भी उसे इंट्री नहीं दी। आखिरकार शाम 4 बजे बैंक की सीढिय़ों पर सर्वेशा का प्रसव हो गया। बैंक वालों ने बच्चे का नाम खजांची रख दिया।
पैसा खत्म तो सब हो गए पराए
सर्वेशा को लगा कि ऐसे तो पूरा पैसा ही खर्च हो जाएगा। उसने अपनी बेटी की शादी के लिए बाकी बचा सवा लाख रुपए बैंक में फिक्स करा दिए। अब परिवार के पास एक कौड़ी नहीं बची। पैसा खत्म हुआ तो अपने ही पराए होने लग गए।
सर्वेशा को उसके अपने ही जेठ और देवर ने घर से बाहर निकाल दिया। सर्वेशा कहती हैं कि ससुराल में जो कालोनी मिली है, उसमें देवर उसे रहने नहीं दे रहे हैं।
इसी कारण वह अपने मायके अनन्तपुर गांव में रहने लगी है। घर चलाने के लिए सर्वेशा मजदूरी करती है। दूसरों के खेतों में फसल काटने से लेकर तमाम काम करती है।
खजांची को लेकर आंखों में उम्मीद
खजांची को लेकर सर्वेशा की आंखों में उम्मीद दिखती है। वह अपने लिए मदद नहीं मांगती बस अपने खजांची के लिए सरकार से आग्रह करती है कि हमारे खजांची नाथ को पढ़ाएं लिखाएं, नौकरी लगाएं।
News Source: jagran.com
Comments are closed.