जागना पड़ रहा नैक को भी, उच्च शिक्षा के बजट का अधिकतम भाग वेतन बांटने में हो रहा खर्च, ज्यादातर नए महाविद्यालय राजनैतिक कारणों से खुल रहे।
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देशभर के 400 इंजीनियरिंग कॉलेज पिछले साल बंद हुए है। इन कॉलेजों को शासन ने नहीं बल्कि स्टूडेंट ने स्वयं ने बंद करवाएं है। यानि अब कॉलेजों और विश्वविद्यालय को चलना है या नहीं चलना है यह शासन नहीं बल्कि स्टूडेंट तय करेगा। इसे देखते हुए नैक को भी जागना पड़ रहा है। हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक बैठक में कहा कि देशभर के 400 इंजीनियरिंग कॉलेज शासन ने नहीं बल्कि स्टूडेंट ने बंद किए है। इसे देखते हुए शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद(नैक) अपने मानकों एवं मूल्यांकन पद्धति में बदलाव करने जा रहा है। नए मानकों को 1 सितंबर से लागू करने का लक्ष्य है। इतना ही नहीं शिक्षकों की गुणवत्ता को निर्धारित करने वाली संस्थाओं को भी बदलने की बात सुनने में आई है। इसी कड़ी में नैक नए मानक और मानदंड तैयार कर रही है, ताकि विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में शिक्षक को समावेशी एवं मानवीय बनाया जाए। सूत्रों की माने तो देश में शिक्षा की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने वाली संस्थाओं की संख्या बढऩी चाहिए, ताकि इससे शैक्षणिक संस्थाओं में आपसी प्रतिस्पर्धा हो।
गुणवत्ता दृष्टि पत्र केवल सेमिनारों में पढऩे के काम आ रहा
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश शासन ने गुणवत्ता दृष्टि पत्र अपनी वेबसाइट पर डाल रखा है जिसमें गुणवत्ता के लिए कई बिंदुओं को चिंहित किया गया है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यह गुणवत्ता पत्र केवल सेमिनारों में पढऩे के काम आ रहा है, इसे वास्तविक धरातल पर नहीं उतारा गया है। शिक्षक विहिन महाविद्यालय, पुस्तक विहिन ग्रंथालय, उपकरण विहिन प्रयोगशालाएं की स्थिति में गुणवत्ता की कल्पना की जा रही है। उच्च शिक्षा के बजट का अधिकतम भाग वेतन बांटने में खर्च हो जाता है। ज्यादातर नए महाविद्यालय राजनैतिक कारणों से खोले जाते हैं, ओर उनमें नए महाविद्यालय खोलने की गाइडलाइंस का ध्यान नहीं रखा जाता। इस वातावरण में नैक द्वारा गुणवत्ता आधारित मूल्यांकन का के देशभर महाविद्यालय कैसे सामना करेंगे।
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