राम को शरीर छोड़े कितने दिन हो गए, या क्राइस्ट को देह त्यागे कितने दिन हो गए? दूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता। हजारों इसाई कोशिश में । तो चौबीस घंटे लगे हैं कि हिंदू राम बनने की कोशिश में बनने की कोशिश में लगे हैं, , बनते क्यों नहीं एकाध?
जब तक चपरासी अपमानित है और राष्ट्रपति सम्मानित है तब तक दुनिया में ईमानदारी नहीं हो सकती, क्योंकि चपरासी कैसे बैठा रहे चपरासी की जगह पर, बैठा रहे। जब असत्य सफलता लाता है, तो कौन पागल होगा जो उसे छोड़ दे। न केवल आप मानते हैं, बल्कि । मामला कुछ ऐसा है कि आपने जिस भगवान को बनाया हुआ है, जिस स्वर्ग को, वह भी इन सफल लोगों को ही मानता है। चपरासी मरता है, तो नरक ही जाने की संभावना है। राष्ट्रपति कभी नरक नहीं जाते, वे सीधे स्वर्ग चले जाते हैं। वहां भी यही लगा रखा है, वहां भी जो सफल है वही! तो फिर क्या होगा?
सफलता का केद्र खत्म करना होगा। अगर बच्चों से आपको प्रेम है और मनुष्य-जाति के लिए आप कुछ करना चाहते हैं तो बच्चों के लिए सफलता के केद्र को हटाइए, सुफलता के केद्र को पैदा करिए। अगर मनुष्यजाति के लिए आपके हृदय में प्रेम है और आप सच में चाहते हैं कि एक नई दुनिया, एक नई संस्कृति और नया आदमी पैदा हो जाए तो यह सारी पुरानी बेवकूफी छोड़नी । करना पड़ेगा कि क्या विद्रोह हो? कैसे हो सकता है इसके भूत से यह सब लता है इसिलएगत आदी पैव
शिक्षक बुनियादी रूप से इस जगत में सबसे बड़ा विद्रोही व्यक्ति होना चाहिए, तो वह पीढ़ियों को आगे ले बड़ा ट्रेडिशनलिस्ट वही है, वही दोहराया जाता है पुराने – कचरे को। क्रांति शिक्षक में होती नहीं है। आपने सुना है कि कोई शिक्षक क्रांतिपूर्ण हो। शिक्षक सबसे ज्यादा दकियानूस, सबसे ज्यादा आर्थाडाक्स है और इसलिए शिक्षक सबसे खतरनाक हैं। समाज उससे हित नहीं पाता, अहित पाता है। शिक्षक को होना चाहिए विद्रोही, कौन-सा विद्रोह है? मकान में आग लगा दें आप, या कुछ और कर दें या जाकर ट्रेनें उलट दें या बसों में आग लगा दें। उसको नहीं कह रहा हूं मैं, कोई गलती से वैसा न समझ ले। मैं यह कह रहा हूंकि हमारे जो मूल्य हैं, हमारी जो वैल्यूज हैं, उनके बाबत विद्रोह का रुख, विचार का रुख होना चाहिए कि हम विचार करें कि यह मामला क्या है! जब आप एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे हो, तुम , नासमझ हो, तुम बुद्धिहीन हो। देखो! उस दूसरे को, वह कितना आगे है। तब आप विचार करें, तब आप विचार करें कि यह कितने दूर तक ठीक है और कितने दूर तक सच है। क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैं? क्या यह संभव है कि जिसको आप गधा कह रहे हैं कि वैसा हो जाए जैसा कि जो आगे खड़ा है। क्या यह आज तक संभव हुआ है? हर आदमी जैसा है, अपने जैसा है, दूसरे आदमी से कपेरिजन का कोई सवाल ही नहीं। किसी दूसरे आदमी से उसकी कोई कपेरिजन नहीं, कोई तुलन नहीं है। एक छोटा ककड़ है, वह छोटा ककड़ है। एक बड़ ककड़ है, वह बड़ा ककड़ है। एक छोटा पौधा है, वह छोट है) एक बड़ा पौधा है, वह बड़ी पौधा है। एक घास का फूल है, वह घास का फूल है। एक गुलाब का फूल है, वह गुलाब का फूल है। प्रकृति का जहां तक संबंध है, घास के फूल पर प्रकृति नाराज नहीं है और गुलाब के फूल पर प्रसन्न नहीं है। घास के फूल को भी प्राण देती है, उतनी ही खुशी से जितने गुलाब के फूल को देती है और मनुष्य को हटा दें, तो घास के फूल और गुलाब के फूल में कौन छोटा है, कौन बड़ा है, है कोई छोटा और बड़ा घास का महान है और यह घास का तिनका छोटा है? तो परमात्मा कभी का घास के तिनके को समाप्त कर देता, चीड़-चीड़ के दरख्त रह जाते दुनिया में। नहीं, लेकिन आदमी की वैल्यूज गलत हैं।
यह आप स्मरण रखें कि इस संबंध में मैं आपसे कुछ गहरी बात कहने का विचार रखता हूं। वह यह कि जब ? तक दुनिया में हम एक आदमी को दूसरे आदमी से कम्पेयर करेंगे, तुलना करेंगे तब तक हम एक गलत रास्ते पर चले जाएंगे। वह गलत रास्ता यह होगा कि हम हर आदमी में दूसरे आदमी जैसा बनने की इच्छा पैदा । करते हैं। जब कि कोई आदमी किसी दूसरे जैसा न बना है और न बन सकता है। राम को शरीर छोड़े कितने दिन हो गए, या क्राइस्ट को शरीर छोड़े कितने दिन हो गए? दूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता और हजारों-हजारों क्रिश्चन कोशिश में तो चौबीस घंटे लगे हैं कि क्राइस्ट बन जाएं और हजारों हिंदू राम बनने की कोशिश में हैं, हजारों जैन, बुद्ध, महावीर बनने की कोशिश में लगे हैं, बनते क्यों नहीं एकाध? एकाध दूसरा क्राइस्ट और दूसरा सकती आपकी? मैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूं, जो रामलीला में बनते हैं राम। न आप समझ लें कि उनकी चर्चा कर रहा हूं, कई लोग राम बन जाते हैं। वैसे तो कई लोग बन जाते हैं, कई लोग बुद्ध जैसे कपड़े लपेट लेते हैं और बुद्ध बन जाते हैं। कोई महावीर जैसा कपड़ा लपेट लेता है या नग्न हो जाता है और महावीर बन जाता है। उनकी बात नहीं कर रहा। वे सब रामलीला के राम हैं, उनको छोड़ दें। लेकिन । राम कोई दूसरा पैदा होता है? यह आपको जिंदगी में भी पता चलता है कि ठीक ‘ एक आदमी जैसा दूसरा आदमी कहीं हो सकता है? एक ककड़ जैसा दूसरा ककड़ भी पूरी पृथ्वी पर खोजना है, हर चीज अद्वितीय है। और जब तक हम प्रत्येक की अद्वितीय प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे तब तक दुनिया में प्रतियोगिता रहेगी, प्रतिस्पर्धा रहेगी, तब तक दुनिया में मार-काट रहेगी, तब तक दुनिया में हिंसा रहेगी, तब तक दुनिया में सब बेईमानी के उपाय करके आदमी आगे होना चाहेगा, दूसरे जैसा होना चाहेगा ।
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