“मैंने कुछ गलत नहीं किया, माफी नहीं मांगूंगा” – ट्रंप से तीखी बहस के बाद भी नहीं बदले जेलेंस्की के तेवर

क्या है पूरा विवाद?

डोनाल्ड ट्रंप, जो 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में हैं, ने हाल ही में यूक्रेन को दी जा रही अमेरिकी सहायता पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि यदि वह राष्ट्रपति होते तो रूस-यूक्रेन युद्ध बहुत पहले खत्म हो चुका होता और अमेरिका को इस संघर्ष में इतना पैसा खर्च नहीं करना पड़ता।

इस पर जेलेंस्की ने कड़ा जवाब दिया और ट्रंप की टिप्पणियों को “यूक्रेन के लिए अपमानजनक और हतोत्साहित करने वाला” बताया। उन्होंने कहा कि यूक्रेन अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर रहा है।

जेलेंस्की का सख्त रुख

ट्रंप के बयानों से यूक्रेन सरकार में नाराजगी देखी गई। जेलेंस्की ने कहा,
“मैंने कुछ गलत नहीं किया है, इसलिए माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता। यूक्रेन एक संप्रभु राष्ट्र है, और हम अपने लोगों और अपनी जमीन की रक्षा कर रहे हैं। अगर किसी को यह पसंद नहीं आता, तो यह उनकी समस्या है, मेरी नहीं।”

उनके इस बयान को रूस के खिलाफ उनकी अडिग नीति और अमेरिका से सहयोग बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

रूस की प्रतिक्रिया

रूस इस पूरे घटनाक्रम से खुश नजर आ रहा है। रूसी मीडिया ने ट्रंप और जेलेंस्की की बहस को प्रमुखता से दिखाया और इसे “पश्चिमी गठबंधन में बढ़ते मतभेद” के रूप में प्रचारित किया। कई रूसी विश्लेषकों ने अनुमान लगाया कि अगर ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने तो अमेरिका की यूक्रेन नीति में बदलाव हो सकता है, जिससे रूस को रणनीतिक बढ़त मिलेगी।

अमेरिका में ट्रंप की रणनीति

ट्रंप के इस रुख को उनके समर्थकों के बीच “अमेरिका फर्स्ट” की नीति के रूप में देखा जा रहा है। वे लंबे समय से यूक्रेन को दी जा रही मदद पर सवाल उठाते रहे हैं और अपने अभियान में इस मुद्दे को बड़ा बना सकते हैं।

आगे क्या?

ट्रंप और जेलेंस्की की इस बहस से यह साफ हो गया है कि अमेरिका में अगले चुनाव के बाद यूक्रेन को लेकर नीति में बड़ा बदलाव आ सकता है। जेलेंस्की हालांकि अभी भी पश्चिमी देशों से समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं और यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे किसी भी दबाव में झुकने को तैयार नहीं हैं।

अब देखने वाली बात यह होगी कि अमेरिका और यूक्रेन के रिश्तों पर इस घटनाक्रम का क्या असर पड़ता है और क्या वाकई ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने से यूक्रेन को मिलने वाली सहायता में कटौती होगी।

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