सिनेमा सिर्फ व्यावसायिकता ही नहीं है, बल्कि ये उन भावनाओं के बारे में है जो दर्शकों से जुड़ती है: निर्देशक प्रतीक शर्मा
ये कायनात किसी के लिए जो योजना बनाती है वो हमेशा पूरी होती है: पटकथा लेखिका अस्मिता शर्मा
क्षेत्रीय फिल्में ही ज्यादातर भारत के सार को दर्शाती हैं: अभिनेता अखिलेंद्र छत्रपति मिश्रा
अपनी मैथिली फीचर-फिल्म ‘लोटस ब्लूम्स‘ के पीछे की प्रेरणा के बारे में बात करते हुए निर्देशक प्रतीक शर्मा ने कहा कि इसके पीछे का विचार था प्रकृति के साथ एक इंसान के जीवन की भावनात्मक यात्रा को दिखाना जिसके साक्षी लोग हैं। लेकिन वे इस संदेश को मनोरंजक तरीके से पहुंचाना चाहते थे। पटकथा लेखिका अस्मिता शर्मा ने ‘लोटस ब्लूम्स‘ के केंद्रीय विषय के बारे में बताया कि ये कायनात किसी के लिए जो योजना बनाती है, वो हमेशा पूरी होती है और कभी-कभी अप्रत्याशित तरीके से। जबकि इंसान की बनाई योजनाएं कभी-कभी विफल हो जाती हैं। उन्होंने कहा, “कभी-कभी जीवन की यात्रा कठिन हो जाती है, लेकिन जब आप खुद को प्रकृति और उस सर्वशक्तिमान के सामने समर्पित कर देते हैं, तो ये समस्याएं चमत्कारी ढंग से हल हो जाती हैं।” फिल्म लोटस ब्लूम्स के कलाकारों और क्रू ने पीआईबी द्वारा आयोजित इफ्फी “टेबल टॉक्स” के हिस्से के तौर पर एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया था।
जाने माने अभिनेता अखिलेंद्र छत्रपति मिश्रा ने कहा, “मैंने इस प्रोजेक्ट में काम करना इसलिए चुना क्योंकि ये संदेश व्यक्त करने के लिए ‘सिनेमा की भाषा’ का इस्तेमाल करता है।” इस फिल्म के विषय पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये दिखाती है कि “जीवन भी कमल के फूल की तरह है, जो सूर्योदय के साथ खिलता है और सूर्यास्त के साथ मुरझा जाता है”। उन्होंने इस फिल्म में इसलिए भी काम किया क्योंकि ये मैथिली भाषा को बढ़ावा देती है। उन्होंने टिप्पणी की कि भारत का सार ज्यादातर क्षेत्रीय फिल्मों में झलकता है, हालांकि क्षेत्रीय भाषाओं में ज्यादा फिल्में नहीं बनती हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं में और फिल्में बनाई जानी चाहिए और दिखाई जानी चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि सिनेमा जीवन का ही विस्तार है। “इसे ‘लार्जर दैन लाइफ’ कहा जाता है क्योंकि ये संस्कृति, भाषा और आध्यात्मिक दृष्टि को अपने में समाहित करता है”। उन्होंने कहा कि जो नवरस होते हैं वो ही सिनेमा की भाषा गढ़ते हैं।
53वें इफ्फी के रेड कार्पेट पर टीम लोटस ब्लूम्स
अखिलेंद्र छत्रपति मिश्रा ने जो कहा, उसे आगे बढ़ाते हुए, निर्देशक प्रतीक शर्मा ने स्पष्ट किया, “सिनेमा व्यावसायिकता के बारे में नहीं है, यह भावनाओं के बारे में है, जो दर्शकों से संवाद स्थापित करते हैं।“ प्रतीक शर्मा सामाजिक रूप से प्रासंगिक फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा, “मैं अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज को कुछ वापस देने की कोशिश करता हूं।“
आईएफएफआई में 23 नवंबर, 2022 को फीचर फिल्म ‘लोटस ब्लूम्स‘ के कलाकारों और क्रू सदस्यों के साथ निर्देशक प्रतीक शर्मा, निर्माता और पटकथा लेखक अस्मिता शर्मा, अभिनेता अखिलेंद्र छत्रपति मिश्रा और मास्टर अथ शर्मा को सम्मानित किया गया।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अभिनेता अखिलेंद्र छत्रपति मिश्रा और निर्देशक प्रतीक शर्मा
मैथिली फीचर-फिल्म ‘लोटस ब्लूम्स‘ को 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के भारतीय पैनोरमा वर्ग में प्रदर्शित किया गया। यह फिल्म संदेश देने के लिए संकेतों का उपयोग करके एक माँ और बच्चे के आपसी बंधन पर आधारित कहानी को चित्रित करती है। फिल्म में संवाद बहुत कम हैं। इसे बिहार के ग्रामीण इलाकों में शूट किया गया है।
फिल्म, प्रकृति और मानवता की मौलिक अच्छाई पर विश्वास, के बारे में है। विवेक का कमल तभी खिलता है, जब वह प्रकृति माँ और व्यक्ति की आंतरिक प्रकृति – आत्मा – से जुड़ा होता है। नायक (सरस्वती) प्रेम से भरी प्रकृति माँ की प्रतीक है, जिसमें स्वीकार करने की अदम्य शक्ति है, वह कुछ देने की भावना से ओतप्रोत है और इसलिए समाज के असंवेदनशील और आसक्त कृत्य भी उसकी कोमलता और सरलता को नष्ट नहीं कर पाते हैं।
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