केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने पुणे में सिम्बायोसिस विश्वविद्यालय अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में मेटाबोलिक एवं एंडोक्राइन डिसऑर्डर केंद्र का उद्घाटन किया

प्रसिद्ध मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि टाइप 1 मधुमेह का प्रबंधन करने में संतुलित जीवनशैली महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज पुणे में सिम्बायोसिस विश्वविद्यालय अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में मेटाबोलिक एवं एंडोक्राइन डिसऑर्डर केंद्र का उद्घाटन किया।

डॉ. जितेंद्र सिंह, जो एक प्रसिद्ध मधुमेह रोग विशेषज्ञ और प्रतिष्ठित रिसर्च सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआई) के जीवन संरक्षक भी हैं, ने कहा कि असंतुलित जीवनशैली के कारण होने वाली बीमारियों और मेटाबोलिक संबंधी विकारों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए नए केंद्र की स्थापना समय पर और आवश्यक रूप में की गई है। यह केंद्र आजकल की सबसे सामान्य बीमारी – मधुमेह की निवारक जांच पर ध्यान केंद्रित करेगा।

संपूर्ण सिम्बायोसिस आरोग्य धाम की स्थापना ग्राम लावले, पुणे में सिम्बायोसिस अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में की गई है। चिकित्सा महाविद्यालय और उससे संबद्ध सिम्बायोसिस विश्वविद्यालय अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में अत्याधुनिक अवसंरचनाएं और सुविधाएं मौजूद हैं।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले दो दशकों के दौरान भारत में टाइप-2 मधुमेह रोगियों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है, जो अब एक अखिल भारतीय रूप ले चुका है। उन्होंने कहा कि टाइप-2 मधुमेह, जो दो दशक पहले तक मुख्य रूप से दक्षिण भारत तक ही सीमित था, आज उत्तर भारत में भी उतना ही व्यापक रूप ले चुका है और साथ ही यह महानगरों, शहरों और शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण इलाकों में भी फैल चुका है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान देश में मधुमेह रोगियों की संख्या में 150 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि चिंता का मुख्य कारण टाइप 2 मधुमेह का इलाज कराने वाले रोगियों की उम्र में लगातार होने वाली कमी है क्योंकी शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में 25-34 आयु वर्ग के लोगों में इस बीमारी का प्रसार स्पष्ट रूप दिख रहा है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि टाइप 1 मधुमेह का प्रबंधन करने में संतुलित जीवनशैली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और बीमारी का सटीक प्रबंधन करने के लिए ग्लाइसेमिया पर आहार और शारीरिक गतिविधियों के प्रभाव को समझना आवश्यक है। मंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी से पहले के दौर में भी यह प्रमाणित हो चुका है कि गैर-संचारी रोगों जैसे मधुमेह-मेलिटस के उपचार में कुछ सहायक योग आसनों का नियमित अभ्यास करने और प्राकृतिक चिकित्सा में उपलब्ध जीवनशैली को अपनाने से इंसुलिन या मधुमेह रोधी दवाओं के खुराक में कमी लाई जा सकती है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी जानकारी दी कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की निःशुल्क औषधि सेवा पहल के अंतर्गत बच्चों सहित गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए इंसुलिन और आवश्यक दवाएं निःशुल्क उपलब्ध कराने वाले प्रावधानों के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारों के सहयोग से जन औषधि योजना के अंतर्गत सभी लोगों को इंसुलिन सहित गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं किफायती मूल्यों पर उपलब्ध कराई जाती हैं।

इसके अलावा, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज प्रदान किया जाता है। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) डेटाबेस 2011 के अनुसार, आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) के अंतर्गत पात्र 10.74 करोड़ परिवारों के लिए इन-पेशेंट केयर उपचार सुविधा भी उपलब्ध है। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा 15 अगस्त, 2020 को “राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन” की क्रांतिकारी घोषणा का उल्लेख करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि उपचार के दौरान सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को उद्धरित करते हुए कहा कि प्रत्येक भारतीय को एक स्वास्थ्य पहचानपत्र प्रदान किया जाएगा। यह स्वास्थ्य पहचानपत्र देश के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य अकाउंट के रूप में काम करेगी। इस अकाउंट में उनके सभी जांच, बीमारी, उपचार करने वाले डॉक्टरों, ली गई दवाओं और निदान का विवरण मौजूद होगा। मंत्री ने कहा कि हम एक ऐसी प्रणाली तैयार कर रहे हैं जो देश के प्रत्येक नागरिक को बेहतर और सही निर्णय लेने में मदद करेगी।

सिम्बायोसिस मेटाबोलिक एवं एंडोक्राइन डिसऑर्डर केंद्र में शरीर रचना मशीन, स्किनफोल्ड थिकनेस मेजरमेंट कैलीपर, न्यूरोपैथी का शीध्र पता लगाने वाला बायोथेसियोमीटर, हाथ से चलने वाला वैस्कुलर डॉपलर, पोडियास्कैन आदि की सुविधा उपलब्ध है, जबकि रोगी और उनके रिश्तेदारों को सही आहार और इसके महत्व के बारे में परामर्श देने के लिए पोषण विशेषज्ञ, नर्स और मधुमेह शिक्षक उपलब्ध होंगे। केंद्र का मुख्य फोकस जटिलताओं की रोकथाम करना और यह सुनिश्चित करना है कि रोगियों को एक अच्छी जीवनशैली अपनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया जाए।

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इस केंद्र में हृदयरोग विज्ञान, बाल चिकित्सा सर्जन, स्नायु विज्ञान, नेत्र रोग जैसे सभी संबद्ध रोगों के विशेषज्ञ मौजूद हैं जिनके द्वारा शुरू से अंत तक सेवाएं प्रदान की जा सकें। इसके अलावा, एक अन्य प्रमुख चिंताजनक जीवनशैली मोटापा है और केंद्र का उद्देश्य रोगियों के लिए गैर-पारंपरिक और शल्य चिकित्सा संबंधी उपचार दोनों प्रदान करना है। मधुमेह और मोटापा के अलावा, इस केंद्र में थायराइड विकारों, पॉली सिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और अन्य मेटाबोलिक एवं एंडोक्राइन डिसऑर्डर के रोगियों का भी उपचार किया जाएगा। परिसर के स्थित सहयोगी संस्थाएं जैसे सिम्बायोसिस सेंटर फॉर स्टेम सेल रिसर्च (एससीएससीआर), सिम्बायोसिस सेंटर फॉर मेडिकल इमेजिंग एनालिसिस (एससीएमआईए), सिम्बायोसिस सेंटर फॉर इमोशनल वेलबीइंग (एससीईडब्ल्यू), सिम्बायोसिस सेंटर फॉर एप्लाइड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एससीएएआई), सिम्बायोसिस सेंटर फॉर बिहेवियरल स्टडीज (एससीबीएस), सिम्बायोसिस सेंटर फॉर नैनोसाइंस एंड नैनोटेक्नोलॉजी (एससीएनएन) और सिम्बायोसिस सेंटर फॉर वेस्ट रिसोर्स मैनेजमेंट (एससीडब्ल्यूआरएम) केंद्र को शिक्षा और अनुसंधान पर दृढ़ता से ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी।

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