श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक उपायों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि के प्रबंध समूह के 9वें सत्र का उद्घाटन किया

पादप आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण मानवता की साझा जिम्मेदारी – केंद्रीय कृषि मंत्री

“भारत अपने नागरिकों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध”: श्री तोमर

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री, श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि पादप आनुवंशिक उपाय प्रजनन चुनौतियों के समाधान का स्रोत हैं। प्राकृतिक वास नष्‍ट होने और जलवायु परिवर्तन के कारण पादप आनुवंशिक उपाय भी असुरक्षित हैं। इनका संरक्षण ” मानवता की साझा जिम्‍मेदारी है”। हमें इन्‍हें बचाकर रखने और इनका स्‍थायी उपयोग करने के लिए सभी आधुनिक तकनीकों के साथ-साथ पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने और स्थायी रूप से उपयोग करने के लिए उपयोग करना चाहिए।

श्री तोमर ने आज नई दिल्ली में खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक उपायों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए) के प्रबंध समूह के नौवें सत्र का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। आईटीपीजीआरएफए संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के 31वें सत्र के दौरान नवम्‍बर, 2001 में रोम में हस्ताक्षरित कानूनी रूप से बाध्यकारी एक व्यापक समझौता है। समझौता 29 जून 2004 को प्रभावी हुआ और वर्तमान में भारत सहित 149 अनुबंधित पक्ष हैं। यह संधि, जैविक विविधता पर समझौते के अनुरूप, खाद्य और कृषि के लिए विश्व पादप आनुवंशिक उपायों (पीजीआरएफए) के संरक्षण के माध्‍यम से, विनिमय और स्‍थायी उपयोग, इसके उपयोग से होने वाले लाभ के समान बंटवारे के साथ-साथ किसानों के अधिकारों की मान्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर खाद्य सुरक्षा हासिल करना चाहती है। पीजीआरएफए खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के निरन्‍तर दोहन के लिए स्केल-फ्री समाधान प्रदान करता है। पीजीआरएफए के लिए देश परस्पर एक-दूसरे पर आश्रित हैं, जिससे पहुंच और लाभ साझा करने की सुविधा के लिए एक वैश्विक प्रणाली की आवश्यकता होती है। जीबी9 का आयोजन “सेलिब्रेटिंग द गार्जियंस ऑफ क्रॉप डायवर्सिटी: टूवर्ड्स ऐन इनक्लूसिव पोस्ट-2020 ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क” विषय के तहत किया जा रहा है। इस विषय का उद्देश्य पीजीआरएफए के प्रभावी प्रबंधन की दिशा में दुनिया के छोटे किसानों के योगदान को उजागर करना और इस बारे में विचार करने का अवसर प्रदान करना है कि कैसे संधि और उसका समूह नई वैश्विक जैव विविधता निर्माण में योगदान दे सकता है।

 

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उद्घाटन सत्र में, श्री तोमर ने कहा कि पादप संधि का उद्देश्य फसलों की विविधता में किसानों और स्थानीय समुदायों के योगदान को पहचानना है। सदियों से, आदिवासी और पारंपरिक कृषक समुदायों ने अपने पास मौजूद समृद्ध आनुवांशिक सामग्री के पैमाने का लगातार विकास किया और उसे उपयोग के योग्‍य बनाया है। इसने विशाल और विविध सांस्कृतिक (पौधों की विविधता के आसपास जीवन और व्‍यापार), पाक शाला संबंधी (उद्देश्य और मौसम के अनुसार अविश्वसनीय किस्म, स्वाद और पोषण) और उपचारात्मक (दवा के रूप में भोजन) कार्य प्रणालियों में बढ़ोतरी की है। श्री तोमर ने कहा कि कोविड महामारी ने हमें कुछ सबक सिखाया है। भोजन की उपलब्धता और पहुंच शांति और स्थिरता के लिए सर्वोपरि है। भारत अपने नागरिकों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। श्री तोमर ने कहा कि हमें साल दर साल भरपूर फसल उत्पादन सुनिश्चित करने की जरूरत है। इसका जवाब फसल विविधता और विविधीकरण है।

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श्री तोमर ने कहा कि खाद्य सुरक्षा की कीमत पर कोई बातचीत संभव नहीं है। सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों को यह नहीं भूलना चाहिए कि भोजन एक आवश्यक मौलिक अधिकार है। विकासशील देशों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता से प्रेरित किया जाएगा कि खाद्यान्न पैदा करने वाले किसानों के अधिकारों से कभी समझौता न किया जाए। यह समुदाय आज हमारे पास मौजूद पादप आनुवंशिक उपायों के अस्तित्व के लिए भी जिम्मेदार है। हमारे पास दुनिया भर में अनेक जगहें और लोग हैं जिन्होंने अमूल्य आनुवंशिक संसाधनों और मूल्यवान पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण किया है। फसलों की जंगली प्रजातियों और संभवत: कम उपयोग की गई फसलों की प्रजातियों के समय पर संरक्षण पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि और पोषण सुरक्षा के लिए हमारा संघर्ष काफी हद तक आपके निर्णयों और कार्यों पर निर्भर करता है। श्री तोमर ने कहा कि उन्नत जीनोमिक और जैव-सूचना संबंधी साधनों का उपयोग करके प्राप्त आनुवंशिक जानकारी में आईपीआर का विषय बनने की संभावना है। दूसरी ओर, पारंपरिक ज्ञान जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित और समृद्ध किया गया है, सामान्य ज्ञान बन गया है। आईटीपीजीआरएफए जैसे बहुपक्षीय मंच पृथ्वी पर पीजीआर संरक्षण की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए व्यावसायिक हितों और विरासत मूल्यों को संतुलित करने के लिए जिम्मेदार हैं।

 

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श्री तोमर ने कहा कि भारत पादप आनुवंशिक संसाधनों की संपत्ति को साझा करने का दृढ़ समर्थक रहा है। आईएआरसी जीनबैंक और अन्य राष्ट्रीय जीन बैंकों पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि लगभग 10 प्रतिशत जर्मप्लाज्म भारतीय मूल के हैं। पौधों के आनुवंशिक संसाधनों को बनाया जाना चाहिए। हमारा दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है कि पौधों के आनुवंशिक  संसाधनों को अनुसंधान और स्‍थायी उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए। श्री तोमर ने कहा कि हम समय के साथ पौधों के आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और चयन में किसानों, स्वदेशी समुदायों, आदिवासी आबादी और विशेष रूप से समुदाय की महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसलिए, हमारा कर्तव्य है संधि में संशोधन और सुधार पर विचार करते समय उनके हितों को ध्यान में रखें। भारत बहुपक्षीय समझौते की प्रतिबद्धताओं में अपने विश्वास और कार्यों में दृढ़ है। उन्होंने कहा कि आईटीपीजीएफआरए का अनुच्छेद 9 किसानों के अधिकारों से संबंधित है, जिसका भारत पूरी तरह से अनुपालन करता है जिसके महत्‍वपूर्ण प्रावधान पीपीवी और एफआर कानून, 2001 में निहित हैं। 166 किसानों/कृषि समुदायों को प्लांट जीनोम सेवियर पुरस्‍कारों से सम्मानित किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत आईटीपीजीआरएफए के प्रबंध समूह  को किसानों के अधिकारों से संबंधित जागरूकता, पहुंच और क्षमता निर्माण कार्यक्रम के एक मॉड्यूल का इस्‍तेमाल शुरू करने पर विचार करने का प्रस्ताव देता है, जिसके लिए भारत इसके कार्यान्वयन का समर्थन करेगा।

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श्री तोमर ने कहा कि वैश्विक कृषि अनुसंधान स्पष्ट कारणों से कुछ प्रमुख फसलों पर ध्यान केन्द्रीत कर रहा है। छोटे बाजरा, छोटी दालें, छोटे फल और पत्तेदार सब्जियों पर ध्यान केन्‍द्रित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पास इन फसलों पर काम करने वाले संस्थानों का एक नेटवर्क है। हमने अपने किसान-संरक्षकों को जीबी-9 में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है। श्री तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में कृषि क्षेत्र में प्रगति हो रही है, किसान समृद्ध हो रहे हैं और अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो रही है। देश में कई ऐसे बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया है जो देश को प्रेरित करते हैं और दुनिया को आगे का रास्ता भी दिखा सकते हैं।

श्री तोमर ने इस बात पर भी अपार प्रसन्नता व्यक्त की कि 2019 में रोम में आयोजित जीबी8 बैठक के दौरान हुई भारत के लिए बैठक की मेजबानी करने के उनके आह्वान का संधि बोर्ड और अनुबंध करने वाले पक्षों ने का सम्मान किया था, इस बैठक में उन्होंने भाग लिया था।

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग में सचिव श्री मनोज आहूजा ने सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत करते हुए भारतीय कृषि की ताकत और सरकार की प्रगतिशील नीतियों के कारण हाल के दिनों में हुई महत्वपूर्ण प्रगति के बारे में संक्षेप में बताया। उन्होंने आग्रह किया कि जीबी9 के दौरान विचार-विमर्श से उपयोग के साथ आनुवंशिक संसाधन अधिकार, नवाचार के साथ निवेश और कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए भविष्य के लिए तैयार समाधान प्राप्त करने के लिए लाभ साझा करने के बीच संतुलन होना चाहिए।

जीबी9 ब्यूरो की चेयरपर्सन सुश्री यास्मीना अल-बहलौल ने संधि ब्यूरो की ओर से सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और जीबी9 की मेजबानी के लिए गर्मजोशी से भरे आतिथ्य और असाधारण व्यवस्था के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया।

एफएओ के महानिदेशक डॉ. डोंगौ कू वर्चुअल रूप से सत्र में शामिल हुए। आईटीपीजीआरएफए के जीबी9 की मेजबानी के लिए भारत सरकार को धन्यवाद देते हुए, उन्होंने कहा कि पादप संधि सार्वभौमिक थी और पीजीआरएफए को खाद्य सुरक्षा के लिए साझा करने और देखभाल करने की आवश्यकता है। इन संसाधनों को खासतौर से बदलती जलवायु में लोचदार बनाना जरूरी है।

भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर श्री शोम्बी शार्प ने संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रतिनिधियों का स्वागत किया और खुशी व्यक्त की कि संयुक्त राष्ट्र इस बेहद महत्वपूर्ण संधि से जुड़ा था। उन्होंने वैश्विक समस्याओं के वैश्विक समाधान का आह्वान किया, खासकर तब जब से पीजीआरएफए कृषि फसलों को उगाने और साथ ही कृषक समुदाय की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग में सचिव और, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने पीजीआरएफए के प्रभावी प्रबंधन के लिए अनुसंधान और विकास संस्थानों के साथ-साथ अच्छी तरह से प्रशिक्षित मानव संसाधन की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने प्रतिनिधियों को जर्मप्लाज्म प्रबंधन और उपयोग के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ-साथ आईसीएआर की उत्कृष्ट क्षमता की जानकारी दी। उन्होंने रुचि रखने वाले देशों को भारत द्वारा जीनबैंकिंग और विशेषता-विशिष्ट मूल्यांकन में क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से जीन-पूल का उपयोग बढ़ाने की पेशकश की।

उद्घाटन समारोह के बाद, श्री तोमर ने किसानों की प्रदर्शनियों का दौरा किया और उनके साथ बातचीत की। आईटीपीजीआरएफए पर विचार-विमर्श करने के लिए लगभग 150 सदस्य देशों के 400 से अधिक प्रतिनिधि छह दिवसीय जीबी9 के दौरान एकत्र हुए हैं, जिसमें देखा जाएगा कि सदस्य राष्ट्र कैसे विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और इसके उपयोग से उत्पन्न होने वाले उचित और न्यायसंगत लाभ साझा करना सुनिश्चित करते हुए स्थायी रूप से खाद्य और कृषि के लिए दुनिया के पादप आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग करते हैं। पीजीआरएफए बुनियादी निर्माण खंड हैं जिन पर विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और अन्य संबंधित चुनौतियों को ध्‍यान में रखते हुए कृषि विकास, खाद्य सुरक्षा निर्भर करती है।

 

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बैठक के दौरान जिन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की जानी है उनमें शामिल हैं (i) बहुपक्षीय प्रणाली में फसलों की सूची का विस्तार करने के लिए संधि में संशोधन; (ii) संधि के लिए क्षमता-विकास रणनीति; (iii) फंडिंग रणनीति, संसाधन जुटाना और बजट (iv) पीजीआरएफए और कृषि का संरक्षण और स्‍थायी उपयोग; (v) अनुपालन; (vi) अन्य संगठनों और निकायों के साथ सहयोग; और (vii) अधिक मजबूत संधि कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने के लिए जीनोम अनुक्रम जानकारी सहित कार्य का बहु-वर्षीय कार्यक्रम। जीबी9 के मेजबान के रूप में, भारत से उम्‍मीद की जा रही है कि वह महत्‍वपूर्ण विषयगत वस्‍तुओं पर कार्यात्मक संकल्प प्राप्त करने के लिए प्रौद्योगिकी-समृद्ध विकसित और जीन-समृद्ध विकासशील देशों के बीच विसंगति को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पौधों की आनुवंशिक विविधता के संरक्षण और स्‍थायी उपयोग के लिए महत्वपूर्ण एजेंडा मदों पर का निभाने की उम्मीद है। जीबी9 पादप आनुवंशिक विविधता के संरक्षण और स्‍थायी उपयोग के साथ-साथ किसानों के अधिकारों के लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को व्यक्त करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। जीबी9 की पूर्व संध्या पर, भारत ने वैश्विक भूख से लड़ने और खाद्य और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर उपलब्ध जर्मप्‍लाज्‍म संसाधन और हर उन्नत तकनीक का उपयोग करने के लिए वैश्विक सद्भाव का आह्वान किया।

 

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