घरेलू बाजार में चीनी की उपलब्धता और चीनी की कीमतों में स्थिरता केंद्र की शीर्ष प्राथमिकता है

केंद्र अक्टूबर-नवंबर के त्योहारी सीजन के दौरान पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करेगा
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग में सचिव श्री सुधांशु पांडे ने कहा कि केंद्र की पहली प्राथमिकता उपभोग के लिए उचित दर पर पर्याप्त चीनी की उपलब्धता सुनिश्चित करना है, उसके बाद एथेनॉल के लिए अधिकतम चीनी भेजी जाएगी। उन्होंने आज यहां मीडिया के साथ संवाद के दौरान यह बात कही।

घरेलू खपत को प्राथमिकता देने की बात करते हुए, उन्होंने कहा कि अक्टूबर और नवंबर में त्योहारों के दौरान चीनी की मांग बढ़ जाती है और इसलिए, केंद्र नरम सीजन के लिए चीनी की उपलब्धता सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध है।

भारत सरकार घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है और पिछले 12 महीनों में चीनी की कीमतें नियंत्रण में हैं। भारत में चीनी की थोक कीमतें 3,150-3,500 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में हैं, वहीं खुदरा कीमतें भी देश के विभिन्न हिस्सों में 36-44 रुपये प्रति किग्रा के दायरे में नियंत्रण में हैं।

विशेष रूप से ब्राजील में उत्पादन में कमी के चलते वैश्विक स्तर पर चीनी की कमी की स्थिति नजर आ रही है। इससे वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ सकती है और घरेलू उपलब्धता एवं हितों को ध्यान में रखते हुए, डीजीएफटी ने चीनी सत्र 2021-22 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान देश में उपलब्धता बनाए रखने और चीनी की कीमतों में स्थिरता रखने के लिए आदेश जारी किया है, जिसमें अग्रिम आदेश तक केंद्र सरकार द्वारा 1 जून, 2022 से चीनी के निर्यात को विनियमित करना शामिल है। सरकार 100 एलएमटी तक चीनी के निर्यात की अनुमति देगी।

इस साल 35 एलएमटी चीनी से एथेनॉल के उत्पादन को अलग करने के भारत में 355 एलएमटी चीनी का उत्पादन हुआ है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत चीनी का दूसरा बड़ा निर्यातक है। चालू चीनी सत्र 2021-22 में लगभग 100 एलएमटी चीनी का निर्यात होना चाहिए। वर्तमान में 90 एलएमटी के निर्यात के लिए अनुबंध हुए हैं, जिसमें से 82 एलएमटी का उठान हो चुका है। अब 10 एलएमटी और का निर्यात किया जा सकता है। भारत में मासिक खपत लगभग 23 एलएमटी है, इसके लिए लगभग 62 एलएमटी का पर्याप्त घरेलू भंडार उपलब्ध है। भारत में फिलहाल चीनी का औसत खुदरा मूल्य लगभग 37-44 रुपये प्रति किग्रा है।

निर्यात पर सीमा के बावजूद चीनी का निर्यात अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। पिछले पांच साल में निर्यात 200 गुने से ज्यादा बढ़कर 0.47 एलएमटी से 100 एलएमटी तक पहुंच गया है। 1 जून से सभी मिलों पर निर्यात के लिए डीएफपीडी लागू हो जाएगा। निर्यात की निगरानी के उद्देश्य से, चीनी मिलों को निर्यात के लिए भेजने से जुड़ी जानकारी ऑनलाइन जमा करनी होगी। डाटा से एक्सपोर्ट रिलीज ऑर्डर्स जारी करने के लिए मात्रा के निर्धारण का आधार उपलब्ध होगा। 31 मई, 2022 तक निर्यात के लिए कोई मंजूरी की जरूरत नहीं है। चीनी मिलों और निर्यातकों से आवेदन प्राप्त होने पर डीओएफपीडी एक्सपोर्ट रिलीज ऑर्डर (ईआरओ) जारी करेगा। चीनी निदेशालय, डीओएफपीडी द्वारा 24.05.2022 को चीनी मिलों और निर्यातकों द्वारा पालन की जाने वाली ईआरओ के आवेदन की प्रक्रिया जारी कर दी गई है। चीनी मिलें निर्यात के उद्देश्य से मिलों से चीनी भेजने के उद्देश्य से ईआरओ के लिए आवेदन करेंगी। निर्यातक देश के बाहर चीनी की निर्यात के लिए आवेदन करेंगे। दोनों को नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम (एनएसडब्ल्यूएस) के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन करने की आवश्यकता होगी।

देश में पिछले सत्र की तुलना में इस सत्र में 17 प्रतिशत ज्यादा चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है। इसके अलावा, देश चालू चीनी सत्र में लगभग 278 एलएमटी चीनी की खपत के साथ दुनिया में सबसे बड़ा उपभोक्ता रहा है। भारत में सालाना 2-4 प्रतिशत प्रति वर्ष की बढ़ोतरी के साथ चीनी की खपत लगातार बढ़ रही है। भारत में चीनी की प्रति व्यक्ति खपत लगभग 20 किग्रा है, जो वैश्विक औसत से कम है।

देश में उपलब्ध अतिरिक्त चीनी के विवेकपूर्ण उपयोग के क्रम में भारत सरकार ने 2017-18 से कई और समयबद्ध कदम उठाए हैं, जिसके परिणाम स्वरूप देश में चीनी का उचित भंडार है और चीनी का अत्यधिक भंडार नहीं है, जिसके चलते चीनी मिलों का फंड अटक सकता था और किसानों का गन्ना एरियर का भुगतान लंबित हो सकता था। पिछले चार साल में बफर स्टॉक बनाए रखने के साथ ही निर्यात उद्देश्यों के लिए चीनी के परिवहन के लिए सब्सिडी के रूप में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने वाली सरकार की विभिन्न योजनाओं से किसानों को समयबद्ध भुगतान और चीनी मिलों का वित्तीय मजबूती सुनिश्चित हुई है। इन उपायों के चलते, पिछले चीनी सत्र में 99.6 प्रतिशत से ज्यादा गन्ना बकाये का भुगतान हो चुका है और वर्तमान चीनी सत्र के 84 प्रतिशत गन्ना बकाये का भुगतान कर दिया गया है। वर्तमान सत्र में परिचालित चीनी मिलों की संख्या भी बढ़कर 522 चीनी मिलों तक पहुंच गई है।

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