आयकर विभाग का एक प्रमुख दूरसंचार समूह में तलाशी और जब्‍ती अभियान

आयकर विभाग ने 15.02.2022 को दूरसंचार उत्पादों के वितरण और कैप्टिव सॉफ्टवेयर विकास सेवाएं उपलब्‍ध कराने वाले एक बहुराष्ट्रीय समूह पर तलाशी और जब्‍ती अभियान चलाया। इस समूह की बुनियादी शेयरधारिता पड़ोसी देश की विदेशी इकाई के पास है। यह तलाशी अभियान इस समूह के दिल्ली, गुरुग्राम और बेंगलुरु में फैले व्यावसायिक परिसरों के साथ-साथ समूह के प्रमुख पदाधिकारियों के आवासीय परिसरों में चलाया गया।

तलाशी कार्रवाई से पता चला है कि इस समूह ने भारत से बाहर अपनी संबंधित पार्टियों से तकनीकी सेवाओं की प्राप्ति के सापेक्ष बढ़े हुए भुगतान किए हैं। कर निर्धारिती कंपनी ऐसी कथित तकनीकी सेवाओं को प्राप्त करने की वास्तविकता को सही नहीं ठहरा सकी जिसके बदले में उसने भुगतान किया है और इसके अलावा इसके विचार निर्धारण का आधार भी नहीं है। कर निर्धारिती कंपनी द्वारा ऐसी सेवाओं की प्राप्ति के लिए ऐसी सेवाओं की प्राप्ति पर पांच वर्षों की अवधि में 129 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

तलाशी के दौरान, यह पाया गया कि, निर्धारिती समूह ने हाल के वित्तीय वर्षों में अपनी संबंधित पार्टी को रॉयल्टी के लिए अपनी खाता बहि‍यों में 350 करोड़ रुपये से अधिक की राशि डेबिट की है। इस तरह के खर्च ब्रांड के उपयोग और तकनीकी जानकारी से संबंधित अप्रत्‍यक्ष संपत्तियों के उपयोग के लिए किए गए हैं। तलाशी के दौरान, यह समूह ऐसी सेवाएं/तकनीकी जानकारी की प्राप्ति या ऐसे दावे के लिए रॉयल्टी दर के मात्रा निर्धारण के आधार को प्रमाणित करने में विफल रहा है। इसके परिणाम स्‍वरूप सेवाओं का प्रतिपादन और ऐसा रॉयल्टी भुगतान बहुत अधिक संदिग्ध और प्रथम दृष्टया, मौजूदा आयकर कानून के अनुसार व्यावसायिक व्यय के रूप में अस्वीकार्य हो जाता है।

तलाशी के दौरान एकत्र किए गए सबूत और दर्ज किए गए बयानों से यह भी पता चलता है कि सॉफ्टवेयर विकास सेवाएं प्रदान करने में लगी समूह की संस्थाओं में से एक संबंधित पक्षों से कम नेट मार्जिन ले रही है और इसका संचालन ‘लो एंड नेचर’ होने का दावा कर रही है। हालांकि, जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों से यह संकेत मिलता है कि यह संस्था उच्च स्तरीय प्रकृति की महत्वपूर्ण सेवाएं/संचालन प्रदान कर रही है। इस पहलू में आय में 400 करोड़ रुपये का छिपाव होने का पता चला है।

तलाशी कार्रवाई में आगे यह भी पता चला है कि समूह ने भारत में अपनी कर योग्य आय को कम करने के लिए अपनी लेखा बहियों में हेरा-फेरी की है और इसके लिए खर्च के लिए अनेक प्रावधानों का सृजन, अप्रचलन के लिए प्रावधान, वारंटी के प्रावधान, संदिग्ध ऋण/कर्ज और अग्रिम राशि आदि का सहारा लिया गया है, जिनका बहुत कम या कोई वैज्ञानिक/वित्तीय तर्क नहीं है। जांच के दौरान, समूह ऐसे दावों के लिए कोई पर्याप्त और उचित औचित्य प्रदान करने में विफल रहा है।

आगे की जांच जारी है।

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