पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर सभी देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए अपने बधाई संदेश में कहा – इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति के रूप में जो सचराचर जगत में विद्यमान हैं, उन माँ पराम्बा के आराधना का पवित्र पर्व शारदीय नवरात्रि आप सभी के लिए मंगलमय हो..। सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति का मूल कारण शक्ति ही है जिसे ब्रह्मा, विष्णु व शिव तीनों ने मिलकर माँ नवदुर्गा के रूप में सृजित किया, इसलिए माँ दुर्गा में ब्रह्मा, विष्णु व शिव तीनों की शक्तियां समाई हुई हैं। जगत् की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएँ जिस शक्ति के आधीन सम्पादित होती है वही हैं – पराम्बा माँ भगवती आदि शक्ति। नवरात्र के नौ दिनों को तीन भागों में बांटा गया है। पहले तीन दिनों में तमस को जीतने की साधना, अगले तीन दिन रजस और आखिरी तीन दिन सत्व को जीतने की साधना माने गए हैं। नवरात्र पर्व का आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व है। अध्यात्म के रूप में नवरात्र पर्व की विशेष मान्यता है। माना जाता है कि नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ-संकल्प बल के सहारे माँ दुर्गा की कृपा से सफल होते हैं। इस पर्व के आते-आते वर्षा ऋतु क्षीण हो जाती है। धीरे-धीरे शीत ऋतु का आभास होने लगता है। इस तरह यह पर्व ऋतु परिवर्तन को भी दर्शाता है। नवरात्रि उत्सव बुराइयों से दूर रहने का प्रतीक है। यह लोगों को जीवन में उचित एवं पवित्र कार्य करने और सदाचार अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इस पर्व पर सकारात्मक दिशा में कार्य करने पर मंथन करना चाहिए ताकि समाज में सद्भाव का वातावरण का निर्माण हो सके। नवरात्रि काल आहार की शुद्धि के साथ मंत्र की उपासना का काल है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तरंगों से भरा हुआ है। मंत्र के माध्यम से उन तरंगों को जो शक्ति और सामर्थ के रूप में बिखरी हुई है, उन्हें आकर्षित किया जा सकता है। इस काल की तरंगें बहुत सामर्थवान है। उनके साथ एकीकृत होकर हम अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। मन्त्र वातावरण से सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर आपके पास लाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – माँ ही आद्य शक्ति है, सर्वगुणों का आधार, राम-कृष्ण, गौतम, कणाद आदि ऋषि-मुनियों, वीर-वीरांगनाओं की जननी हैं। नारी इस सृष्टि और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जीवन के सकल भ्रम, भय, अज्ञान और अल्पता का भंजन एवं अंतःकरण के चिर-स्थायी समाधान करने में समर्थ हैं – विश्वजननी पराशक्ति श्री माँ दुर्गा जी की उपासना। नवरात्रि ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-गुण यानी स्त्रैण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। “माँ” यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम−रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है और मनोमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। ‘माँ’ वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। माँ सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, उसे कहते हैं कि “या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते…” – अर्थात्, “सभी जीव-जंतुओं में चेतना के रूप में ही माँ देवी तुम स्थित हो”। नवरात्रि माँ के अलग-अलग रूप को निहारने का सुन्दर त्योहार है। माना जाता है कि नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ-संकल्प बल के सहारे देवी दुर्गा की कृपा से सफल होते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृति हैं, उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते हैं। हर एक व्यक्ति जीवनभर या पूरे वर्ष भर में जो भी कार्य करते-करते थक जाते हैं तो इससे मुक्त होने के लिए इन नौ दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए; इस तरह के शुद्धिकरण करने का, पवित्र होने का त्योहार है – यह नवरात्रि….।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – शारदीय नवरात्रि का यह उत्सव हमें मातृशक्ति की आराधना करने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में यह मान्यता है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता विचरण करते हैं। इस पर्व में आत्म संयम और शुद्धि के लिए व्रत-उपवास का विशेष महत्व है। इस पर्व पर हम सभी समाज में महिलाओं की समान भागीदारी, उनके गौरव को बनाये रखने और कन्या भ्रूण हत्या रोकने का संकल्प लें। नवरात्रि नवनिर्माण के लिए होती है, चाहे आध्यात्मिक हो या भौतिक। आदिकाल से ही मनुष्य की प्रकृति शक्ति साधना की रही है। शक्ति साधना का प्रथम रूप दुर्गा ही मानी जाती है। मनुष्य तो क्या देवी-देवता, यक्ष-किन्नर भी अपने संकट निवारण के लिए मॉ दुर्गा को ही पुकारते हैं। हमारे देश में ‘माँ’ को ‘शक्ति’ का रूप माना गया है और वेदों में ‘माँ’ को सर्वप्रथम पूजनीय कहा है। इस श्लोक में भी इष्टदेव को सर्वप्रथम ‘माँ’ के रूप में ही उद्बोधित किया गया है – “त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या, द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देव देव …”।। हमारे वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद आदि सब ‘माँ’ की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं। असंख्य ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, पंडितों, महात्माओं, विद्वानों, दर्शनशास्त्रियों, साहित्यकारों आदि ने भी ‘माँ’ के प्रति पैदा होने वाली अनुभूतियों को कलमबद्ध करने का भरसक प्रयास किया है। इन सबके बाद भी ‘माँ’ शब्द की समग्र परिभाषा और उसकी अनन्त महिमा को आज तक कोई शब्दों में नहीं पिरो पाया है, क्योंकि माँ अनन्त है, माँ महान है …।
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