अनचाहे गर्भ : दुष्कर्म पीड़ित अब अनचाहे गर्भ से का कर सकती है गर्भपात : बॉम्बे हाईकोर्ट

न्यूज़ डेस्क : बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग को अनचाहे गर्भ से मुक्त करने की राह दिखाई है। न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने कोर्ट की ओर से गठित मेडिकल बोर्ड की प्रस्तुत एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए गुरुवार को यह आदेश पारित किया कि नाबालिग को गर्भपात की मंजूरी है।

 

 

 

 

नाबालिग की मां ने एक याचिका दायर कर यह कहते हुए गर्भ को समाप्त करने की मंजूरी मांगी थी कि इस साल की शुरूआत में उसकी के साथ दुष्कर्म हुआ था जिसके बाद उसने गर्भधारण किया था। इस मामले की पैरवी एडवोकेट एशले कुशर ने की थी। पक्षकारों के वकील को सुनने के बाद अदालत ने जेजे अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित करने और याचिकाकर्ता की बेटी की जांच करने का निर्देश दिया था।

 

 

 

दुष्कर्म के कारण हुए गर्भधारण को देखते हुए 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ के गर्भपात को मंजूरी देने के लिए महिलाओं ने कई याचिकाएं दायर की थी। दरअसल यदि अदालतें गर्भपात नहीं करवाने का आदेश देती थीं तो महिलाओं को न चाहते हुए भी अनचाहे बच्चे को जन्म देना पड़ता था। जिसकी वजह से गंभीर बीमारी से पीड़ित महिलाओं और दुष्कर्म पीड़िता को काफी परेशानियों से गुजरना पड़ता था।

 

 

 

नए कानून से मिली राहत

दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग को अनचाहे गर्भ से मुक्ति मिलना संभव हो पाया है नए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट 2021 की बदौलत। यह कानून इस साल मई में संसद से पारित हुआ है। जिसके बाद महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात कराने का अधिकार हासिल हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इंग्लैंड, नेपाल, ऑस्टिया, इथोपिया, इटली, स्पेन, आइसलैंड, नॉर्वे, फिनलैंड और स्वीडन समेत करीब 52 देशों में भ्रूण के 20 हफ्ते से ज्यादा होने पर भी गर्भपात कराने का अधिकार महिलाओं को हासिल है। 

 

 

क्या कहता है नया कानून

गर्भापत पर बने नए कानून ने 1971 के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमपीटी) एक्ट की जगह ली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) ने भी इस कानून की सराहना करते हुए कहा था सार्वभौमिक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए भारत का यह ऐतिहासिक कदम है। जिसमें भारत ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम 1971 में संशोधन करके महिलाओं को और सशक्त बनाने का काम किया है।

 

 

गर्भपात कानून – फोटो : Social Media

नए गर्भपात कानून के मुताबिक अगर गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का है तो मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। पुराने कानून में इस तरह के गर्भपात की अनुमति नहीं थी। नए कानून के तहत महिलाओं को 20 हफ्ते के गर्भ को एक डॉक्टर की सलाह पर खत्म करने की इजाजत मिली है। विशेष कैटेगरी वाली महिलाओं के लिए दो डॉक्टरों की सलाह पर पहले 20 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति थी, जिसे बढ़ाकर अब 24 हफ्ते किया गया है। नए  कानून में महिलाओं की निजता का भी ध्यान रखा गया है। अविवाहित महिलाओं को भी कानूनी तौर पर गर्भपात की इजाजत है। 

 

 

 

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार गर्भपात की अनुमति देने के संबंध में अलग-अलग मत हैं। एक राय यह है कि गर्भावस्था को समाप्त करना गर्भवती महिला की मर्जी है और उसके प्रजनन अधिकारों का एक हिस्सा है। दूसरी बात यह है कि राज्य का दायित्व है कि वह जीवन की रक्षा करे और इसलिए उसे भ्रूण की सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। दुनिया भर में, देशों ने भ्रूण के स्वास्थ्य और गर्भवती महिला के लिए जोखिम के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने के लिए अलग-अलग शर्तें और समय सीमाएं निर्धारित की हैं। 

 

 

 

गर्भपात कानून की दूसरे देशों में क्या स्थिति

गर्भपात हमेशा से एक विवादास्पद विषय रहा है। बहुत से संगठन मानते हैं कि यह एक महिला का अधिकार है कि वह गर्भपात कराने का फैसला कर सकती है। सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार दुनिया भर में कई अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मानवाधिकार संधियों के बाद और संविधानों के तहत महिलाओं का मानव अधिकार माना गया है। मानवाधिकार संगठनों ने बार-बार प्रतिबंधात्मक गर्भपात कानूनों की निंदा की है क्योंकि वे मानवाधिकार मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। 

 

लगभग 50 देशों ने अपने गर्भपात कानूनों को उदार बनाया है। जिसमें महिलाएं कानूनन गर्भपात करा पाई हैं  जब उनके जीवन को खतरा हो या जब गर्भावस्था दुष्कर्म का नतीजा हो। 970 मिलियन महिलाएं ऐसे देशों में हैं जहां मोटे तौर पर गर्भपात की अनुमति हैं। दुनिया की 23 फीसदी यानी लगभग 38 करोड़ महिलाएं ऐसे देशों में रहती हैं जहां गर्भपात की मंजूरी उन्हें मिली हुई है।  इनमें भारत, ब्रिटेन, फिनलैंड और जापान जैसे देश शामिल हैं। वहीं दुनिया की 41 प्रतिशत महिलाएं प्रतिबंधात्मक कानूनों के तहत रहती हैं।

 

 

असुरक्षित गर्भपात से होती है 23 हजार महिलाओं की मौत

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में हर साल 23,000 महिलाएं असुरक्षित गर्भपात से मर जाती हैं। मानवधिकार संगठनों का कहना है कि गर्भपात पर कानूनी प्रतिबंधों का परिणाम कम गर्भपात नहीं होता है,  बल्कि महिलाएं असुरक्षित गर्भपात कराने को मजबूर होती हैं जिससे उनकी जान को खतरा बना रहता है। एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया के लगभग 67 फीसदी देश जहां गर्भावस्था को नियंत्रित करने वाला कानून है वहां गर्भपात कराने के लिए एक हेल्थ केयर प्रदाता की जरूरत होती है। 

 

 

गर्भपात कानून – फोटो : Social Media

अन्य देशों के कानून और नीतियों में क्या बदलाव हुए हैं 

सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स के मुताबिक ओक्साका गर्भपात को अपराध से मुक्त करने वाला मेक्सिको का दूसरा राज्य बन गया है।  मैक्सिको की शीर्ष अदालत ने गर्भपात को अपराध के दायरे से हटा दिया है। इसका मतलब गर्भपात को अब कानूनी मान्यता मिल गई है। 

 

सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स और उसके कोलंबिया साझेदार कोलंबिया के संवैधानिक न्यायालय के एक निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो पूरे देश में गर्भपात को अपराध से मुक्त कर सकता है। आंदोलन के संगठनों ने 2020 में एक याचिक दायर की थी जिसका उद्देश्य गर्भपात को अपराध के दायरे से मुक्त  करना है। इसके लिए कोलंबिया में कारावास की सजा का प्रावधान है।

 

आइसलैंड में यूरोप का सबसे उदार गर्भपात कानून लागू है, जहां महिला के अनुरोध पर 22 सप्ताह तक गर्भपात कराने की इजाजत है।  केन्या के उच्च न्यायालय ने असुरक्षित गर्भपात से मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए 2012 के मानकों और दिशानिर्देशों को वापस ले लिया। कोर्ट ने गर्भपात को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों आधारों पर वैध माना।

 

उत्तर मैसेडोनिया में गर्भपात के नियम सुलभ बनाए गए हैं। महिला के अनुरोध पर गर्भपात की सीमा को 12 सप्ताह तक बढ़ाया गया है। अर्जेंटिना में गर्भपात को कानूनी सहमति मिल गई। अब तक वहां दुष्कर्म के गर्भधारण से महिला की जान को खतरा होने पर ही गर्भपात की मंजूरी थी। इस देश में 1921 से ही गर्भपात के लिए सख्त नियम लागू थे जिस वजह से महिलाएं गर्भपात के लिए असुरक्षित तरीका अपना रही थीं।  दक्षिण कोरिया के संवैधानिक न्यायालय ने प्रतिबंधात्मक गर्भपात कानून को असंवैधानिक करार दिया है। संसद को नया कानून बनाने के लिए कहा गया है।  

 

इन देशों में महिलाओं को किसी भी हाल में गर्भपात की अनुमति नहीं

कुछ देश अभी भी गर्भपात के कानून को मानवाधिकार के दायरे में नहीं रखते हैं। कांगो, इराक, जमाइका, माल्टा, निकारगुआ, अरूबा, फिलिपींस, सैन मारिनो, हैती जैसे देशों में महिलाओं को किसी भी हाल में गर्भपात की अनुमति नहीं है। बेशक इससे महिला का जीवन या स्वास्थ्य जोखिम में हो।

 

 

गर्भपात

महिला की जान खतरे में हो तो तब यहां मिलती है गर्भपात की अनुमति

एंटीगुआ और बारबुडा, बहरीन, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, चिली, डोमिनिका, गाम्बिया, ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया, ईरान, किरिबाती, लेबनान, लीबिया, सोमालिया और माली जैसे कुछ देश ऐसे हैं जो महिला की जान जोखिम में होने पर उन्हें गर्भपात की इजाजत देते हैं। वहीं गिनी, इजराइल, जॉर्डन, केन्या, कुवैत, मलेशिया, मॉरीशस, मोरक्को, नामीबिया, पाकिस्तान, पेरू, पोलैंड, बोलीविया और कोस्टा रिका कुछ ऐसे देश हैं जहां महिलाओं को को स्वास्थ्य या चिकित्सीय आधार पर गर्भपात की मंजूरी है। 

 

टेक्सास में गर्भपात कानून पर विवाद 

अमेरिका के टेक्सास में एक सितंबर से लागू हुए नए कानून के अनुसार गर्भवती महिलाओं को पहले छह हफ्तों के भीतर गर्भपात कराने का अधिकार मिला है। नए कानून के अनुसार अगर कोई डॉक्टर इस समय सीमा से बाहर गर्भपात करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान किया गया है। टेक्सस के इस नए कानून के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था, लेकिन कोर्ट ने  इस नए कानून पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।

 

 

 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 1973 में एक मामले की सुनवाई करते हुए देशभर में गर्भपात को वैध करार दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महिलाओं के अधिकारों पर अभूतपूर्व हमलाबताया है। इस फैसले पर जस्टिस सोनिया सोतोमयोर ने बयान दिया- कोर्ट का आदेश चौंकाने वाला है। महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोका गया है। 

 

 

 

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