न्यूज़ डेस्क : जम्मू में वायुसेना के टेक्निकल एयरपोर्ट पर ड्रोन से हमला होता है। उसके अगले दिन रतनूचक्क इलाके में सेना की ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर ड्रोन दिखाई पड़ता है। ये सब महज एक संयोग नहीं है। ड्रोन हमले की बाकायदा एक इनसाइड स्टोरी है। इसमें चूक, तकनीक का अभाव और पड़ोसी देश की हताशा छिपी है। साथ ही पाकिस्तान के मीरपुर जिले में झेलम नदी के पास स्थित ‘मंगला’ डैम का इलाका भी इसी कहानी का हिस्सा है। मंगला डैम इलाके में पाकिस्तानी सेना, आईएसआई व आतंकी संगठनों को ड्रोन हमले की ट्रेनिंग दी जाती है।
जम्मू कश्मीर के रक्षा विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, ड्रोन जम्मू एयरफोर्स स्टेशन तक पहुंच जाता है, अगले दिन फिर वही घटना दोहराई जाती है, लेकिन पता नहीं चला कि ड्रोन कहां से आया है।
जम्मू एयरफोर्स स्टेशन से पाकिस्तान बॉर्डर की वायु मार्ग दूरी 14 किलोमीटर है, जबकि सड़क के द्वारा 22 किलोमीटर है। दरअसल, भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के पास अभी तक एंटी ड्रोन सिस्टम का अभाव है। चीन, 3600 ड्रोन एक साथ उड़ाकर यह दिखाता है कि उन्हें कंट्रोल कैसे किया जाता है, वहां से भारत को बहुत कुछ सीखने की जरुरत है।
एंटी ड्रोन तकनीक को लेकर धरातल पर कुछ नहीं हुआ
ड्रोन अटैक कोई नई बात नहीं है। चार पांच साल से इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। राजस्थान, गुजरात व पंजाब में ड्रोन के जरिए हथियार और ड्रग्स तो पहले भी आते रहे हैं। बीते आठ जून को जम्मू कश्मीर में ड्रोन से आई ड्रग्स पकड़ी गई थी।
खतरा बड़ा है, परमाणु संयंत्र भी जद में आ सकते हैं
रक्षा विशेषज्ञ अनिल गौर कहते हैं, पिछले तीन चार साल से एंटी ड्रोन सिस्टम लाने की बात चल रही है। धरातल पर कुछ नहीं हो सका है। अब ड्रोन के जरिए सैनिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके बाद पावर प्लांट, रिफाइनरी, न्यूक्लियर प्लांट, डैम और आयुध कारखाने भी ड्रोन हमले की जद में आ सकते हैं।
सऊदी अरब में ड्रोन हमले से रिफाइनरी को तबाह कर दिया गया था। आर्मेनिया-अजरबैजान की लड़ाई में ड्रोन की मदद से सैनिक ठिकाने, टैंक और हथियारों के जखीरे खत्म कर किए गए। भारत में अभी तक एंटी ड्रोन सिस्टम ही नहीं है। अगर ड्रोन दिख गया तो मार गिराएंगे। बकौल अनिल गौर, भारत पाकिस्तान बॉर्डर तो हजारों किलोमीटर लंबी है, कहां-कहां पर ड्रोन को देखकर शूट करेंगे।
रडार की पहुंच से दूर हैं क्वार्डकॉप्टर जैसे छोटे ड्रोन
इस्राइल, रूस और अमेरिका के पास बेहतरीन एंटी ड्रोन सिस्टम हैं। दूसरी तरफ भारत सरकार तीन साल से किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी। गणतंत्र दिवस पर डीआरडीओ की तरफ से कहा गया कि एंटी ड्रोन सिस्टम विकसित किया गया है, लेकिन उसके बाद क्या डेवेलपमेंट हुआ, कोई नहीं जानता।
ड्रोन गिराने वाले उपकरणों की कमी
आर्मी, एयरफोर्स, बीएसएफ और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के पास ऐसे तकनीकी उपकरणों का अभाव है, जिनकी मदद से ड्रोन को समय रहते गिराया जा सके। क्वार्ड कॉप्टर जैसे छोटे साइज वाले ड्रोन मौजूदा रडार प्रणाली की पहुंच से दूर हैं। छोटे ड्रोन का झुंड हो तो भी पता नहीं लगता, बड़ा ड्रोन ही रडार की जद में आ सकता है।
ड्रोन गन: एक किलोमीटर तक के दायरे में काम करती है। इसके द्वारा ड्रोन के रेडियो सिग्नल को जाम किया जा सकता है।
ड्रोन कैचर: इसके द्वारा उड़ते हुए ड्रोन पर जाल फेंका जाता है।
स्काईवॉल: इसमें नीचे से शूट किया जाता है। यह भी एक तरह का जाल होता है।
स्काई ड्रोन सिस्टम: इसमें पांच सौ से एक हजार मीटर की दूरी तक ड्रोन की फ्रीक्वेंसी कम कर दी जाती है। इस तकनीक की मदद से वह ड्रोन गिर जाता है।
चीन ने बनाए पक्षी जैसे दिखने वाले ड्रोन
रडार क्रॉस सेक्शन की मदद से पक्षी आकार के ड्रोन का पता लगाना मुश्किल होता है। चीन ने ऐसे ड्रोन तैयार किए हैं, जिन्हें देखकर मौजूदा रडार सिस्टम यह तय नहीं कर पाता कि वह पक्षी है या ड्रोन है।
महंगे हैं इस्राइल व रूस के एयर डिफेंस सिस्टम
सुरक्षा मामलों से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार, परंपरागत एयर डिफेंस सिस्टम में इस्राइली स्पाइडर और रूस में निर्मित ओएसए-ओके से केवल छोटे ड्रोन का पता चल सकता है, लेकिन इनकी कीमत बहुत ज्यादा है। नेवी के लिए स्मैश 2000 प्लस एंटी ड्रोन सिस्टम लाया गया है। आर्मी व दूसरे केंद्रीय सुरक्षा बलों को ऐसा सिस्टम मुहैया कराया जा सकता है।
सैनिक ठिकानों के आसपास बढ़ती तादाद बड़े खतरे का संकेत
रक्षा विशेषज्ञ कैप्टन (रिटायर्ड) अनिल गौर ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बताया, जम्मू के आसपास बेतरतीब ढंग से लोग बसाए जा रहे हैं। जिस एयरफोर्स स्टेशन के पास ड्रोन हमला हुआ है, वहां से तीन सौ गज दूरी पर तवी नदी का किनारा है। वहां पर अवैध लोगों ने बसेरा कर लिया है।
कई तरह की चूक नजर आई
रोहिंग्या मुस्लिमों की भारी संख्या जम्मू में रह रही हैं। इनके पास पैन कार्ड और आधार कार्ड भी हैं। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्र बताते हैं कि इन्हें सीमा पार से आर्थिक मदद मिलती है। नगरोटा में सैन्य प्रतिष्ठान के निकट पूर्व डिप्टी सीएम निर्मल सिंह ने अपना आवास बना लिया है। उन्हीं के पास कवींद्र गुप्ता को भी जमीन अलॉट कर दी गई। बकौल अनिल गौर, ये नौ मैन्स लैंड है, इसके बावजूद यहां जमीनें दी जा रही हैं। आर्मी ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। यह एक बड़ी लापरवाही है। सेना ब्रिगेड के क्षेत्र में इस तरह का निर्माण सुरक्षा चक्र को भेद रहा हैं। आने वाले समय में यह बड़ी मुसीबत का संकेत है। सुरक्षा एजेंसियों को अंडर ग्राउंड वर्कर तलाशने होंगे। स्लीपर सेल की जानकारी रखनी होगी। इंटेलिजेंस अगर पुख्ता है तो ड्रोन कहां से आया और किस जगह वापस चला गया, ये सब अभी तक पता लग जाना चाहिए था। ये भी तो संभव है कि जम्मू के ही किसी इलाके से ड्रोन उड़ा हो। कई तरह की चूक तो हुई है।
पाकिस्तान का सीज फायर और आतंकी हमले के तार जुड़ रहे
पिछले कुछ माह से पाकिस्तान सीमा पर संघर्ष विराम यानी सीज फायर का पालन कर रहा है। बॉर्डर पर फायरिंग बंद है। घाटी में भी शांति रही है। लेकिन पिछले सप्ताह से आतंकियों ने कई घटनाओं को अंजाम दिया है। एकाएक इन घटनाओं में तेजी आ गई।
पाक को था एफएटीएफ का भय इसलिए फायरिंग बंद की
इस बाबत अनिल गौर कहते हैं, मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए नीति बनाने वाली संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफएटीएफ) का डर पाकिस्तान को सता रहा था। उसने फायरिंग बंद की और आतंकियों के खिलाफ छोटी मोटी कार्रवाई कर यह दिखाना चाहा कि वह आतंक के खिलाफ है। एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को एक बार फिर ग्रे लिस्ट में बनाए रखने का फैसला किया गया।
एफएटीएफ के अध्यक्ष मार्कस प्लेयर ने कहा, पाकिस्तान को जो सुझाव दिए गए थे उनमें उसने काफी प्रगति की है। 27 में से 26 शर्तों को पूरा किया है, लेकिन अभी उसे आतंकवादियों को ज़िम्मेदार ठहराने और उन्हें सजा देने की दिशा में काम करना बाक़ी है। ऐसे में पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ गई।
इसलिए शुरू किए ड्रोन हमले
चूंकि भारतीय सेना बॉर्डर पर या सीमा के भीतर जब आतंकियों को मारती है तो पाकिस्तान को आतंक के मुद्दे पर घेर लिया जाता है। इसके चलते अब पाकिस्तान ने ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है। मंगला डैम इलाके में क्वार्डकॉप्टर ड्रोन की ट्रेनिंग पर खास फोकस है। ये 4 से 6 पंखों वाला छोटा ड्रोन होता है। यह 18 से 20 किलो सामान ले जा सकता है। वहां पर चीन में निर्मित हाईटेक ड्रोन के अलावा आर्मेनिया-अजरबैजान की लड़ाई में इस्तेमाल हुए ड्रोन भी मौजूद हैं। इसके लिए भारत को एंटी ड्रोन सिस्टम, जितनी जल्दी हो सके, विकसित करना होगा।
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