कोवाक्सिन बवाल मामला , दशकों से सभी वैक्सीन में होते है जानवरों के ही सीरम का इस्तेमाल

न्यूज़ डेस्क : जब भी किसी वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन तैयार होती है तो उसमें शुरुआती शोध के दौरान भैंस, घोड़े और बछड़े समेत कई अन्य जानवरों के सीरम का ही इस्तेमाल होता है। ऐसा सिर्फ कोरोना संक्रमण के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए तैयार की गई कोवाक्सिन के निर्माण के दौरान ही नहीं किया गया, बल्कि ऐसा मेडिकल साइंस में दशकों से चलता चला आ रहा है। कोवाक्सिन में बछड़े के सीरम को लेकर देश में शुरू हुए विवाद पर चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक भी हैरान हैं।

 

 

 

कसौली के सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और चंडीगढ़ पीजीआई में मेडिकल पैरासाइटोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश सहगल कहते हैं, किसी भी वैक्सीन को बनाने के लिए कोशिकाओं को सबसे पहले उगाया जाता है, जिसको मेडिकल साइंस की भाषा में सेल्सलाइन कहते हैं। उनका कहना है जब कोशिकाओं को ग्रो करना होता है तो सीरम की आवश्यकता होती है। यह सीरम भैंस, घोड़े या बछड़े समेत कुछ अन्य जानवरों से लिए जा सकते हैं। उनका कहना है दरअसल जब कोशिकाओं को ग्रो करके उनको संक्रमित करना होता है तो ऐसा सीरम आवश्यक होता है जिसकी न्यूट्रीशन वैल्यू बहुत ज्यादा हो। इन जानवरों में इसकी मात्रा बहुत होती है यही वजह है कि इनके सीरम का इस्तेमाल मेडिकल साइंस में दशकों से होता चला आ रहा है।

 

 

 

पोलियो और रैबीज में तो यही सीरम इस्तेमाल होता है

आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक बताते हैं कि पोलियो और रेबीज के टीके में भी सीरम ऐसे ही जानवरों का लिया जाता है। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कोवाक्सिन टीके में बछड़े के सीरम को लेकर हो रहा विवाद महज राजनीतिक है। उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकर कर दिया। लेकिन उनका कहना है कि साइंस तो अपना काम करेगी ही। उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस में किसी भी वायरस को खत्म करने के लिए तैयार की जाने वाली वैक्सीन में जब तक हम कोशिकाओं को तैयार करके उनके अंदर संक्रमित वायरस नहीं डालेंगे और उसका असर नहीं देखेंगे तब तक वैक्सीन का निर्माण हो ही नहीं सकता। कोशिकाओं का विकास करने के लिए हाई वैल्यू प्रोटीन सीरम की आवश्यकता होती है और यह हाई वैल्यू प्रोटीन सीरम घोड़ा, भैंस और बछड़े जैसे कई अन्य जानवरों से ही मिल सकता है। इसलिए इनका इस्तेमाल करके ही सबसे सुरक्षित वैक्सीन बनाई जाती है।

 

 

 

प्रोफेसर राकेश सहगल कहते हैं कि जब वैक्सीन की अंतिम चरण की प्रक्रिया होती है जिसमें उत्पाद बनकर तैयार होता है उस वक्त तक किसी भी तरह का सीरम तो बचता ही नहीं है। उनका कहना है कि अगर सीरम बचेगा तो वैक्सीन बन ही नहीं सकेगी। वह कहते हैं कि  पानी और रसायनों से अच्छी तरह से साफ किया जाता है। इसके बाद तैयार की गई कोशिकाओं को कोरोना वायरस से संक्रमित किया जाता है। जिससे उन कोशिकाओं में वायरस विकसित हो सके और उस पर तैयार की गई दवा का ट्रायल हो। जो बाद में लोगों की जान बचा सके।

 

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