वेब सीरीज रिव्यू: द फैमिली मैन 2
लेखक: राज निदिमोरू, कृष्णा डीके और सुमन कुमार
कलाकार: मनोज बाजपेयी, शारिब हाशमी, समांथा अक्किनेनी, प्रियमणि, सीमा बिस्वास, दलीप ताहिल, शरद केलकर, देवदर्शिनी, एम गोपी आदि
निर्देशक: राज निदिमोरू, कृष्णा डीके और सुपर्ण वर्मा
ओटीटी: प्राइम वीडियो
रेटिंग: ***
न्यूज़ डेस्क : प्राइम वीडियो की नई सीरीज ‘द फैमिली मैन 2’ के बारे में अगर एक लाइन में पूछा जाए कि ये देखने लायक है या नहीं? तो मेरा जवाब होगा, जरूर देखें। सीरीज में दोस्ती के, गलतफहमी के, माता-पिता को गलत समझने के, नौकरी के आगे घर की शांति कुर्बान कर देने के अलावा कुछ लम्हे राष्ट्रप्रेम के ऐसे भी हैं जो सिखाते हैं कि एक राष्ट्रभक्त किसी व्यक्ति का स्वामिभक्त नहीं होता। जिनके जिम्मे राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी है वह सियासत में भी नहीं पड़ते। उन्हें कुर्सी पर बैठे शख्स की रक्षा करनी होती है, कुर्सी पर कौन बैठा है, उससे उन्हें रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता। वेब सीरीज ‘द फैमिली मैन 2’ की कहानी कई धाराओं पर एक साथ आगे बढ़ती है और बीच में एपीसोड पांच में बोझिल भी लगने लगती है लेकिन बस एक कमजोर एपीसोड के अलावा बाकी सीरीज बिंच वॉच की जा सकती है।
द फैमिली मैन 2’ कहानी श्रीलंका से शुरू होती है। तमिल विद्रोहियों के नेता भास्करन के हाथ में उसकी ही मौत की खबर वाला अखबार है। वहां की संसद और हवाईअड्डे पर हमले की योजना पर चर्चा हो रही है और तभी श्रीलंका की सेना उनका कैंप तबाह कर देती है। भास्करन पहले भागकर लंदन और वहां से फ्रांस में छुपता है। उसका भाई चेन्नई में है और श्रीलंका में बन रहा बंदरगाह चीन के हाथ न लगने पाए तो भारतीय प्रधानमंत्री बसु भास्करन के भाई को श्रीलंका सरकार को सौंपने का फैसला सुना देती हैं। लेकिन, भास्करन का भाई चेन्नई में ही मारा जाता है। भास्करन भारतीय प्रधानमंत्री को मारने की साजिश रचता है तो वह अपने ही गुट में अलग थलग पड़ता है। इसके बाद पाकिस्तान के दो मददगारों से वह कैसे अपनी योजना को विदेश में बैठकर अंजाम देने की कोशिश करता है और कैसे एक कॉपरेरेट कंपनी में काम करना शुरू कर चुका श्रीकांत इसे रोकता है, यही ‘द फैमिली मैन 2’ की कहानी है।
इस बार ‘द फैमिली मैन’ एक आईटी कंपनी में जेंटलमैन बनकर काम करता है। अपने से आधी उम्र के बॉस से तकरीबन रोज डांट खाता है और फिर एक दिन जब उसके सब्र का बांध टूटता है तो वह फिर से कॉमन मैन बन ही जाता है। ‘द फैमिली मैन 2’ की रिलीज से पहले इसमें समांथा अक्किनेनी की मौजूदगी की भी खूब हवा बांधी गई है लेकिन मणिरत्नम की फिल्म ‘दिल से’ की तरह यहां भी कहानी की कमजोर कड़ी ये महिला आतंकवादी का किरदार ही है। यहां हीरो को फिदायीन से प्यार तो नहीं होता पर किरदारों का भावनात्मक संघर्ष ‘दिल से’ में बेहतर बन पड़ा था। घंटे भर के पहले एपीसोड में ही ‘द फैमिली मैन’ के दूसरे सीजन का ताना बाना दूर दूर तक फैल जाता है।
अगले आठ एपीसोड में राज एंड डीके के हाथों से ये कथानक कभी फिसलता है तो कभी संभल भी जाता है। दोनों ने इस बार के सीजन के सिर्फ चार एपीसोड निर्देशित किए हैं, पहला, दूसरा, छठा और नौवां। बाकी पांच एपीसोड के निर्देशन की जिम्मेदारी सुपर्ण एस वर्मा के हिस्से है। अलग अलग एपीसोड की अवधि से पता चलता है कि ‘तांडव’ को लेकर हुए बवाल के बाद कैंची सुपर्ण के एपीसोड्स पर ही ज्यादा चली है। सीरीज का प्रसारण फरवरी से खिसकर कर जून तक आया तो मेकर्स ने इसमें कोरोना भी क्लाइमेक्स में डाल दिया है और अगले सीजन की कहानी उत्तर पूर्व में ले जाने का इशारा भी कर दिया है। इस बार अमेजन प्राइम वीडियो ने सीरीज में पहले ही साफ कर दिया है कि सीरीज के कथानक से वह इत्तेफाक नहीं रखते हैं यानी कि अब मुकदमा हुआ तो थाने में पूछताछ के लिए प्राइम वीडियो के किसी अफसर को नहीं जाना होगा।
‘द फैमिली मैन 2’ सीरीज की पटकथा काफी चुस्त है। कहीं कहीं तो ये इतनी चुस्त है कि आप चाय का कप उठाने के लिए झुके और सामने से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिस हो सकती है। सीरीज में गालियां भी हैं। देह भोग के दृश्य भी हैं तो सीरीज देखते समय विवेक का इस्तेमाल जरूरी है। वैसे भी पूरी सीरीज सिर्फ वयस्कों के लिए हैं। संवाद काफी चुस्त और मारक हैं। जैसे, ‘सब चाहते हैं कि सच उनके साथ रहे लेकिन सच के साथ कोई नहीं रहना चाहता।’ सीरीज की पटकथा में कुछ झोल भी पकड़ आते हैं जैसे राजी के घर पहुंची चेन्नई पुलिस की इंस्पेक्टर को फार्मेलीन की गंध पहली बार में समझ नहीं आती। वह इसके बारे में पोस्टमार्टम के डॉक्टर से सुनकर चौकन्नी होती है। या कि छठे एपीसोड में रिसॉर्ट में रुके श्रीकांत को मछली वाला बनकर लोकल 52 का पता बताने आया चेल्लम अनावश्यक रूप से जासूसी उपन्यास जैसा माहौल बनाता है। एक बार और अटकती है कि सीने में गोली लगे इंसान की सांसें लौटाने के लिए क्या कोई एनआईए का अफसर किसी के सीने को पंप करेगा?
‘द फैमिली मैन 2’ की शुरूआत लंका से होती है। शुरू के पांच सात मिनट कहानी तमिल में ही चलती रहती है। सबटाइटल्स अंग्रेजी में हैं और अगर हिंदी पट्टी के लोग समझना भी चाहें कि परदे पर चल क्या रहा है तो उनके पास इन संवादों को समझने का जरिया नहीं है। सीरीज का एक बड़ा हिस्सा तमिल संवादों में ही है और हिंदी में इनके सबटाइटल्स न होने से हिंदी पट्टी के लोगों को ये संवाद समझने में परेशानी हो सकती है। तमिलनाडु में सीरीज को लेकर मचे बवाल के बाद ये सीरीज फिलहाल तमिल में रिलीज नहीं की गई है। राज और डीके ने पिछले सीजन में इस सीरीज के लिए जासूसी की जो दुनिया बसाई है, उसके कुछ और रंग यहां दिखते हैं। रिटायर्ड खुफिया अफसर चेल्लम का किरदार अच्छा है। जेके और उमायल के बीच फ्लर्टिंग के हिस्से भी रोचक हैं। कहानी में श्रीकांत की बेटी और उसके ब्वॉयफ्रेंड वाला ट्रैक भी बहुत चतुराई से बुना गया है।
सीरीज के दूसरे कलाकारों में प्रियमणि पहले सीजन की तरह यहां भी हैं। शुरू में तो उनका किरदार फिलर जैसा ही लगता है लेकिन बाद में उनके नौकरी पर लौटने और बेटी का अपहरण होने के समय के उनके कुछ सीन काफी प्रभावी हैं। शारिब हाशमी सीरीज के दूसरे हीरो हैं। वह फिर एक बार अपनी लय में हैं। तलपडे के किरदार का असली रंग उनसे ही है। मौत की कगार पर पहुंचा तलप़डे इस बार दर्शकों को रुलाता भी है। आखिरी एपीसोड में उसकी कमी भी खलती है। मुथु के रोल में रवींद्र विजय ने अच्छा काम किया है। चेन्नई पुलिस की लेडी इंस्पेक्टर के रोल में देवदर्शिनी प्रभावित करने में सफल रही हैं। शरद केलकर, सीमा बिस्वास, दलीप ताहिल, विपिन शर्मा, एम गोपी, दर्शन कुमार, शहाब अली, सनी हिंदूजा और श्रेया धन्वंतरि ने भी अच्छा काम किया है। श्रीकांत और शुचि के बच्चों के किरदारों में आश्लेषा ठाकुर और वेदांत सिन्हा ने फिर काबिले तारीफ अदाकारी की है। आश्लेषा का अभिनय धीरे धीरे काफी परिपक्व हो रहा है और वह आने वाले दिनों में किसी लीड किरदार में चौंका सकती हैं।
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