न्यूज़ डेस्क : कोरोना महामारी के बीच प्रकाशन से जुड़े मेरठ शहर के दो हजार करोड़ रुपये के उद्योग पर ताला लगा हुआ है। प्रकाशन संस्थानों को 2020 से अब तक बंदी के हालात से गुजरना पड़ रहा है। पब्लिशर्स के लिए काम करने वाले प्रिंटर्स का दो साल का 300 करोड़ से अधिक का भुगतान रुका हुआ है। शहर में पूरा चैनल प्रिंटर, पब्लिकेशन, डिस्ट्रीब्यूटर से रिटेलर तक प्रभावित हैं।
ऑनलाइन पढ़ाई के चलते किताबों की बिक्री कम हुई है। दो वर्ष से भुगतान न होने और कोविड की पाबंदियों के कारण पब्लिशर्स, प्रिंटर्स और बाइंडर्स के प्रतिष्ठानों पर ताले लटके हैं। कई प्रिंटर्स और बाइंडर्स ने किराए की दुकानें ही खाली नहीं कीं, बैंक का कर्ज चुकाने के लिए मशीनें भी बेच दी है।
शहर में लगभग 70 प्रिंटर्स, 80 चिल्डर्न बुक पब्लिशर्स और 22 हायर एजूकेशन बुक पब्लिशर्स हैं। एक पब्लिशर का कई सौ करोड़ का सालाना निवेश होता है, जिसका रिटर्न उसे अगले वर्ष प्राप्त होता है। 2019 में व्यापार पूर्व की भांति चला, लेकिन 2020 में भुगतान के समय पाबंदियां लागू हो गईं। इस साल तो हालात और भी चिंताजनक हो गए हैं।
बिजली बिलों का भुगतान अटका
ऑफसेट प्रिंटिंग मशीन लगाने वालों का औसत बिजली बिल 54 हजार रुपये है। मशीनें बंद होने से कई कारोबारी बिल नहीं जमा कर पाए और कनेक्शन कट गए। ज्यादातर व्यापारी बैंक से सीसी लिमिट पर काम करते हैं। करोड़ों रुपये बाजार में फंसने से बैंक का ब्याज भी बढ़ रहा है।
एक माह में 1400 कर्मचारी बेरोजगार
बड़े प्रकाशन संस्थानों ने दो साल से हो रहे घाटे के कारण कर्मचारियों को निकाल दिया है। इस साल अप्रैल में 1400 से अधिक कर्मचारियों को निकाला गया है। इस बीच कुछ प्रिंटर्स ने स्वयं को दिवालिया घोषित करते हुए दुकानों और मशीनों को बेच दिया है।
सरकार को 240 करोड़ राजस्व का घाटा
प्रिंटिंग में सर्वाधिक कागज का इस्तेमाल होता है। कॉपी किताबों पर जीएसटी नहीं हैं, लेकिन कागज पर टैक्स लगता है। ऐसे में मेरठ की पब्लिशिंग इंडस्ट्री सीधे-सीधे प्रतिवर्ष 240 करोड़ का जीएसटी सरकार को देती है। इस वर्ष कारोबार बंद होने के कारण टैक्स नहीं दिया गया है।
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