हिमंत बिस्व सरमा होंगे असम के नये मुख्यमंत्री, सोनवाल को मिलेगा केंद्र में जगह

न्यूज़ डेस्क : असम में ऐतिहासिक जीत पाने के छह दिन बाद भी राज्य में ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ की कशमकश से गुजर रही भाजपा की गुत्थी आज सुलझ गई है। असम के अगले सीएम पद के चेहरे को लेकर लगाए जा रहे कयासों के बीच मौजूदा मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने राज्यपाल जगदीश मुखी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद हिमंत बिस्व सरमा को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। इससे तय हो गया कि वह ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे। बता दें कि असम के मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाने के लिए आज विधायकों की बैठक हुई, जिसमें शामिल होने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह और सर्बानंद सोनोवाल पहुंचे। वहीं दूसरी ओर अब जानकारी मिल रही है कि हिमंत ने रविवार को राज्यपाल जगदीश मुखी से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया है।

 

 

 

बता दें कि इससे पहले शनिवार को दोनों वरिष्ठ नेताओं सर्बानंद सोनोवाल और हिमंत बिस्वा सरमा को दिल्ली तलब कर बातचीत की गई। पार्टी के अधिकृत सूत्रों ने बताया कि चार दौर की बातचीत के बाद देर रात हिमंत को नया मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति बन गई थी। इसके बाद आज भाजपा विधायकों की बैठक में हिमंत के नाम पर मुहर लगा दी गई।

 

 

 

सूत्रों का दावा था कि रविवार को गुवाहाटी में विधायक दल की बैठक के दौरान मौजूदा मुख्यमंत्री सोनोवाल ही हिमंत के नाम का प्रस्ताव रखेंगे। बदले में सोनोवाल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। सोनोवाल पहले भी केंद्रीय खेल मंत्री रह चुके हैं। दोनों शनिवार रात में एक साथ चार्टर्ड विमान से गुवाहाटी के लिए रवाना हो गए। देर रात भाजपा नेतृत्व ने इस बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पार्टी महासचिव अरुण सिंह को केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर भेजने की घोषणा की।

 

 

 

 

 

इससे पहले पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने आवास पर गृह मंत्री अमित शाह और संगठन महासचिव बीएल संतोष की मौजूदगी में दोनों नेताओं से मुलाकात की। पहले राज्य के मौजूदा स्वास्थ्य व वित्त मंत्री हिमंत पहुंचे। उनसे बातचीत के बाद पहुंचे सोनोवाल के साथ भी केंद्रीय नेताओं ने अकेले में बात की। इसके बाद तीसरे दौर की बातचीत में दोनों को एकसाथ बैठाकर बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया गया। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों को अलग-अलग केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। लेकिन दोनों नेताओं ने इस प्रस्ताव पर अपनी असहमति जाहिर की।

 

 

 

इसके बाद रविवार को विधायक दल की बैठक बुलाने का फैसला किया गया। देर शाम अचानक दोनों नेताओं को एक बार फिर बुलाया गया और चौथी दौर की बैठक हुई। सूत्रों का कहना है कि बैठक में हिमंत के नाम पर सहमति बन गई। हालांकि इससे पहले तीसरे दौर की बैठक के बाद हिमंत ने कहा था कि मुख्यमंत्री कौन होगा, इसकी जानकारी रविवार को विधायक दल के बैठक के बाद सार्वजनिक हो जाएगी। 

 

 

 

सोनोवाल असम के मूल आदिवासी समुदाय सोनोवाल-काछरी से आते हैं, जबकि सरमा उत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन के समन्वयक हैं, जो भाजपा की उत्तर पूर्वी राज्यों में सफलता का आधार है। ऐसे में दोनों का ही दावा मजबूत माना जा रहा था। 

 

 

 

सोनोवाल के पक्ष में थे संघ व क्षेत्रीय प्रभारी, हिमंत के साथ ज्यादातर विधायक

इससे पहले बृहस्पतिवार को अमित शाह के निवास पर भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्यों की अनौपचारिक बैठक हुई थी। बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में असम के क्षेत्रीय प्रभारी के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वोत्तर प्रभारी ने सोनोवाल का समर्थन किया था। साथ ही संसदीय बोर्ड के दो वरिष्ठ सदस्यों ने भी सोनोवाल का पक्ष लिया। उधर, हिमंत के पक्ष में इस बार जीतने वाले कम से कम तीस विधायकों के अलावा दोनों सहयोगी दल एजीपी और यूपीपीएल खड़े हैं। साथ ही पूर्वोत्तर के तीन अन्य राज्यों में हिमंत की गहरी पकड़ को देखते हुए भी पार्टी नेतृत्व उन्हें नाराज करने की स्थिति में नहीं है।

 

 

 

सीएम पद का चेहरा नहीं घोषित करने से फंसा पेंच

दरअसल 2016 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पहले ही सोनोवाल को सीएम पद का दावेदार घोषित किया था। उन्होंने जीत हासिल कर पहली बार किसी उत्तर पूर्वी राज्य में भगवा सरकार गठित की थी। इस बार गुटबाजी खत्म करने के लिए पार्टी नेतृत्व ने किसी को सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाया। इसके चलते  इससे यह संकेत गया कि चुनाव के बाद सोनोवाल की जगह हिमंत को भी मौका दिया जा सकता है। इस बार चुनाव में भाजपा ने 126 सदस्यीय विधानसभा में 60 सीट जीती हैं, जबकि उसके सहयोगी दलों एजीपी को 9 और यूपीपीएल को छह सीट हासिल हुई हैं।

 

 

 

 

इससे बड़ी पूंजी नहीं हो सकती : तोमर

असम में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि चुनाव में हमारी सरकार की लोकप्रियता पूरी तरह बरकरार थी। सीएम और मंत्रियों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता था। 5 साल सरकार चलाने के बाद अगर हमारी विश्वसनीयता स्थिर रहती है तो किसी भी राजनीतिक दल के लिए इससे बड़ी पूंजी नहीं हो सकती।

 

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