न्यूज़ डेस्क : भारत के नवंबर माह से चीन में बने वाईफाई मॉडयूल्स के आयात की मंजूरी रोकने के कारण 80 से ज्यादा विदेशी एप्लिकेशंस की लॉन्चिंग अटकी पड़ी है। टेलिकॉम उद्योग से जुड़े दो सूत्रों के मुताबिक, इस अहम बाजार में अपने उत्पादों की लॉन्चिंग में देरी का शिकार होने वाली कंपनियों में अमेरिका की डैल, एचपी, चीन की सियोमी, ओप्पो, वीवो व लेनोवो आदि शामिल हैं।
सूत्रों का कहना है कि चीन में तैयार ब्लूट्रूथ स्पीकर, वायरलेस ईयरफोन, स्मार्टफोन, स्मार्ट वॉच और लैपटॉप आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में वाईफाई मॉड्यूल होता है। इन सभी उत्पादों का आयात बंद है। सूत्रों के मुताबिक, संचार मंत्रालय की वायरलैस प्लानिंग एंड कोआर्डिनेशन (डब्ल्यूपीसी) विंग ने पिछले साल नवंबर से ही मंजूरी रोक रखी है।
कंपनियां यह रोक हटवाने के लिए लगातार लॉबीइंग में जुटी हैं। एक सूत्र का कहना है कि अमेरिकी, चीनी और कोरियाई कंपनियों के अलावा मंजूरी की कतार में कई ऐसी भारतीय कंपनियां भी खड़ी हैं, जो चीन से कुछ उत्पाद आयात करती हैं। हालांकि न तो संचार मंत्रालय और न ही डेल, एचपी, सियोमी, ओप्पो, वीवो और लेनोवो आदि ने इस बारे में मीडिया में कोई प्रतिक्रिया दी है।
आत्मनिर्भर भारत पहल के कारण फंसा पेंच
सूत्रों का कहना है कि भारत ने यह कठोर कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वृहद आर्थिक आत्मनिर्भरता की अपील करने के दौरान उठाया था। सरकार का विचार विदेशी कंपनियों पर चीन से आयात के बजाय ये उत्पाद भारत में ही बनाने के लिए दबाव बनाने का है। लेकिन इससे टेक कंपनियां कठिन हालात में फंस गई हैं। भारत में निर्माण का मतलब बहुत बड़ा निवेश करना और उसके वापस लौटने के लिए लंबा इंतजार करना है। दूसरी तरफ सरकार की तरफ से आयात में बाधा अटकाने का मतलब कंपनियों को राजस्व में बड़ी हानि होना है। भले ही भारतीय बाजार और निर्यात क्षमता उसे विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बना दिया है, लेकिन तकनीकी विशेषज्ञों व उद्योग जगत के अंदरूनी लोगों का कहना है कि यह अब भी उतने बड़े पैमाने पर नहीं है, जिसके लिए कंपनियां यहां आईटी उत्पाद और स्मार्ट उपकरणों का निर्माण करने में बहुत बड़ा निवेश करें।
पहले होता था ऐसा
पहले भारत ने कंपनियों को अपने वायरलैस उत्पादों को सेल्फ-डिक्लेरेशन के जरिये आयात करने की इजाजत दे रखी थी, लेकिन मार्च 2019 में आए नए नियमों में इसके लिए सरकारी मंजूरी लेना अनिवार्य बना दिया गया।
चीनी घुसपैठ घटाना है मकसद
विशेषज्ञ मानते हैं कि डब्ल्यूपीसी के मंजूरी देने में देरी के पीछे भारत की अपनी टेक अर्थव्यवस्था में चीनी प्रभाव और घुसपैठ को घटाने की रणनीति दिखाती है। खासतौर पर पिछले साल बीजिंग के साथ सीमा विवाद के बाद यह रणनीति प्रभावी बनाई गई। मोदी सरकार ने इसी सप्ताह 5जी ट्रायल्स में भी यूरोपीय व कोरियाई कंपनियों को इजाजत दी, लेकिन चीनी कंपनी हुआवे को इस रणनीति के कारण ही ट्रायल्स की सूची से बाहर किया था। एक बार 5जी नेटवर्क भारत में शुरू हो गया तो नई दिल्ली की तरफ से मोबाइल कंपनियों के हुआवे टेलिकॉम के उत्पाद इस्तेमाल करने पर भी रोक लगाएगा।
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