न्यूज़ डेस्क : एक फरवरी 2021 को पेश आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह घोषणा की थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण किया जाएगा। सरकारी सूत्रों के अनुसार, सरकार पहले चरण में कम से कम दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण कर सकती है। 14 अप्रैल को नीति आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवाओं और आर्थिक मामलों के विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, बैठक में निजीकरण के संभावित बैंकों पर चर्चा होगी। सरकारी सूत्रों ने बताया कि सरकार ने निजीकरण के लिए मझोले आकार के चार बैंक शॉर्टलिस्ट किए हैं। सूत्रों के अनुसार, सरकार बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ इंडिया का निजीकरण कर सकती है। अगर बैंकों का निजीकरण होता है, तो इसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा।
ग्राहकों को नहीं होगा कोई नुकसान
बैंकों के निजीकरण से ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिन बैंकों का निजीकरण होने जा रहा है, उनके खाताधारकों को कोई नुकसान नहीं होगा। ग्राहकों को पहले की तरह ही बैंकिंग सेवाएं मिलती रहेंगी। मालूम हो कि इन चार बैंकों में फिलहाल 2.22 लाख कर्मचारी काम करते हैं। सूत्रों का कहना है कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कम कर्मचारी होने के चलते उसका निजीकरण आसान रह सकता है। अभी तक निजीकरण के लिए किसी भी बैंक का अंतिम चयन नहीं किया गया है।
इसलिए बनाई निजीकरण की योजना
दरअसल इस समय केंद्र सरकार विनिवेश पर ज्यादा ध्यान दे रही है। सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बेचकर सरकार राजस्व को बढ़ाना चाहती है और उस पैसे का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं पर करना चाहती है। सरकार ने 2021-22 में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को 2021-22 का बजट पेश करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों और एक साधारण बीमा कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव किया था।
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