धरती के नीचे यूरेशियन और भारतीय प्लेटें टकरा रहीं
दोनों प्लेटों का बदल रहा स्थान, नेपाल में आए भूकंप का है यह असर
न्यूज़ डेस्क : छह साल पहले नेपाल में आए भूकंप का असर अभी भी बरकरार है। नेपाल में जिस तीव्रता के साथ भूकंप आया उससे न सिर्फ धरती के अंदर की प्लेट हिलीं बल्कि उन प्लेटों के लगातार आपस में टकराने की वजह से प्लेटों ने अपने स्थान को ही बदलना शुरू कर दिया। भूवैज्ञानिकों का दावा है कि इन बदली हुई प्लेटों की स्थिति से हिमालय क्षेत्र में भूकंपों के आने की तादाद बढ़ गई है। इन भूकंपों की तीव्रता का स्तर भले ही कम हो, लेकिन संख्या काफी ज्यादा है। विशेषज्ञों का दावा है कि आने वाले समय में ऐसे भूकंप आते रहेंगे।
नेपाल में आए भूकंप से भारतीय क्षेत्र में हुए असर को जांचने के लिए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के तत्कालीन अपर महानिदेशक डॉ सोमनाथ चंदेल और उनकी अगुवाई वाली टीम ने शोध करना शुरू किया था। उस शोध में पता चला कि भूकंप की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि भूकंप के एक महीने बाद भी रिक्टर स्केल पर सात की तीव्रता वाले झटके आते रहे थे। डॉक्टर चंदेल कहते हैं कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि भूकंप के बाद आने वाले झटके भी इतनी ज्यादा तीव्रता वाले हों।
इस इलाके में सबसे ज्यादा भूकंप का प्रभावित क्षेत्र हिमालय क्षेत्र ही रहा है। चूंकि अब हिमालय की इन प्लेटों में बदलाव दिखने लगा है इसलिए इसका असर भी दिखता है। भूकंप और चट्टानों पर रिसर्च करने वाले जीएसआई के पूर्व अपर महानिदेशक डॉ चंदेल कहते हैं कि भारतीय और यूरेशियन प्लेटें आपस में लगातार टकरा रही हैं।
प्लेटों के लगातार टकराने से न सिर्फ उनका स्थान परिवर्तित हो रहा है बल्कि धरती के नीचे अत्यधिक उर्जा भी बन रही है। उसका असर भी ऊपर देखने को मिल रहा है। डॉक्टर चंदेल कहते हैं प्लेटों के टकराने से जो ऊर्जा बनती है, उससे कहीं ग्लेशियर टूट जाते हैं तो कहीं पहाड़ों में दरारें आती हैं। जब इसका असर मैदानी इलाकों में होता है तो बड़े भूकंप आते हैं।
डॉक्टर चंदेल का कहना है नेपाल के भूकंप के बाद छोटे-छोटे भूकंप की तादाद बढ़ गई है। उनका कहना है कि ऐसे भूकंपों पर विशेषज्ञों को पैनी नजर रखनी होगी। क्योंकि ऐसे भूकंप पहाड़ों पर और ग्लेशियरों पर अपना असर दिखाना शुरू करेंगे। उनका मानना है कि चमोली जैसी और भी घटनाएं हो सकती हैं। इसलिए सिस्मिक जोन में ज्यादा सतर्कता बरतने की ज़रूरत है।
Comments are closed.