न्यूज़ डेस्क : करीब सात साल बाद उत्तराखंड पुन: कुदरत के रौद्र रूप का सामना कर रहा है। रविवार सुबह राज्य के चमोली जिले में कहर बरपा जबकि जून 2013 में केदार घाटी में बादल फटने से प्रलयंकारी बाढ़ आई और भारी तबाही हुई थी। हजारों लोग मारे गए व सैकड़ों लापता हो गए। कई का अब तक पता नहीं चल सका है। दोनों विनाशकारी घटनाएं देवभूमि ने झेली। केदार घाटी के वक्त हाहाकार इसलिए तबाही ज्यादा हुई, क्योंकि तब चारधाम यात्रा चरम पर थी। देशभर के लाखों लोग तीर्थ क्षेत्र में फंस गए थे।
चमोली में रविवार को यह हुआ
7 फरवरी 2021 रविवार को चमोली जिले के रैनी गांव के समीप एक विशाल हिमखंड टूट कर पहाड़ों से दरकता हुआ धौली गंगा व ऋषि गंगा में समा गया। इससे आई बाढ़ के कारण ऋषि गंगा पर 13 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना और तपोवन में 500 मेगावाट की निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा। इन परियोजना स्थलों पर कई मजदूर काम कर रहे थे। उनमें से 150 श्रमिक लापता हो गए है। देर शाम तक 10 शव निकाले जा सके। कई मजदूरों को जिंदा निकाल लिया गया। क्षेत्र में बचाव व राहत का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। रैनी में भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाला पुल क्षतिग्रस्त हो गया है। सीमा पर आवाजाही ठप हो गई है।
ठंड के दिनों में कैसे टूटा हिमखंड
आमतौर पर हिमखंड दरकने की घटना ठंड के दिनों में कम ही होती है। ताजा घटना किस वजह से हुई यह तो पर्यावरण वैज्ञानिक शोध के बाद बताएंगे। बहरहाल इस घटना ने 2013 के केदार घाटी प्रलय की याद दिला दी। हालांकि अच्छी बात यह रही कि हिमखंड दिन के वक्त टूटा व मौसम साफ होने से तत्काल अलर्ट कर व राहत व बचाव के जरिए काफी लोगों को बचा लिया गया।
2013 में केदार घाटी ने देखा महाविनाश
16-17 जून 2013 को केदार घाटी में कुदरत ने कोहराम मचाया था। उस महाप्रलय को याद कर लोगों की रूह कांप जाती है। तब समूचे चार धाम क्षेत्र, खासकर केदारनाथ व उसके आसपास भारी वर्षा हो रही थी। तभी बादल फटने से मंदाकिनी, अलकनंदा व उसकी सहायक नदियों में भारी बाढ़ आई। यह इतनी प्रबल थी कि लोग संभलें उसके पूर्व ही विनाशकारी बाढ़ ने उन्हें आगोश में ले लिया था। पांच दिन तक भारी बारिश के कारण राहत व बचाव कार्य में भारी बाधा आई। केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री और हेमकुंड साहिब जैसी जगहों पर हजारों यात्री फंस गए थे। सैकड़ों लोग मारे गए। हजारों लोग बह गए और अब तक लापता ही हैं। लाखों लोगों को बड़ी मुश्किल से निकाला गया। सेना व अन्य राहत एजेंसियों ने बचाव में अहम भूमिका निभाई थी।
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