न्यूज़ डेस्क : मोदी सरकार 2.0 का तीसरा आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया गया है। यह रिपोर्ट देश की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति तथा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से मिलने वाले परिणामों को दर्शाती है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी 2021 को संसद में बजट पेश करेंगी। प्रति वर्ष बजट से पहले आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जाता है। इस सर्वे की रिपोर्ट को सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) के नेतृत्व में एक टीम द्वारा तैयार किया जाता है।
‘कोविड के दौरान हमारी नीति जान बचाने की रही’
इसके बाद एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन ने आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 पेश किया। सुब्रमण्यन ने कहा कि आर्थिक सर्वे का पहला चैप्टर भारत की कोविड-19 को लेकर नीतियों पर है, जिसमें ऐसे संकट के बीच जान और आजीविका बचाना शामिल है। सर्वे के अनुसार, कोविड-19 लॉकडाउन की सख्ती उस समय में नकारात्मक आर्थिक वृद्धि का कारण बनी लेकिन आने वाले समय में सकारात्मक वृद्धि होगी।
उन्होंने कहा कि अत्यधिक अनिश्चतता के दौरान नीति को बड़े घाटे कम से कम करने चाहिए। कोविड-19 के प्रति भारत की नीतियां इस वास्तविकता पर आधारित थी कि जीडीपी वृद्धि वापस लौटेगी लेकिन लोगों की जान नहीं। शुरुआती दौर में लगाए गए सख्त लॉकडाउन ने लोगों की जानें बचाईं और तेजी से स्थिति में सुधार लाने में मदद मिली।
अर्थव्यवस्था में होगी ‘वी-शेप’ की रिकवरी
सर्वेक्षण में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी -7.7 फीसदी होगी यानी इसमें 7.7 फीसदी की गिरावट आ सकती है। भारत में इससे पहले जीडीपी में 1979-80 में सबसे अधिक 5.2 फीसदी का संकुचन हुआ था। वहीं आगामी वर्ष देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘वी-शेप’ की रिकवरी होगी। वित्त वर्ष 2021-22 में 11 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है।
भारत में इससे पहले जीडीपी में 1979-80 में सबसे अधिक 5.2 फीसदी का संकुचन हुआ था। कृषि क्षेत्र में वृद्धि जारी है, जबकि कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के चलते सेवा, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए। आगे सर्वे में कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी ने मार्च 2020 से देश में आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है। लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण की खास बातें:
समीक्षा में ‘एक सदी में एक बार आने वाले संकट के बीच जीवन और आजीविका को बचाना’ विषय पर अध्याय में कहा गया है कि भारत ने महामारी की शुरुआत के साथ ही साहसी और बचाव उपाय लागू किए थे। आज भारत को सख्त लॉकडाउन उपायों का फायदा मिल रहा है।
निवेश बढ़ाने वाले कदमों पर जोर रहेगा। ब्याज दर कम होने से कारोबारी गतिविधियां बढ़ेंगी। कोरोना वायरस की वैक्सीन से महामारी पर काबू पाना संभव है और आगे आर्थिक रिकवरी के लिए ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद है।
अप्रैल से नवंबर 2020 तक उपलब्ध रुझानों के आधार पर, वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट की संभावना है।
भारत की लॉकडाउन रणनीति ने 37 लाख कोविड-19 मामलों और एक लाख मौतों को रोका।
सर्वेक्षण के अनुसार, भारत वित्त वर्ष के दौरान चालू खाते के अधिशेष को 17 वर्षों के अंतराल के बाद देख सकता है।
भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग उसके मूल सिद्धांतों को नहीं दर्शाती है।
आर्थिक वृद्धि का प्रभाव आय में असमानता से अधिक गरीबी हटाने पर पड़ता है। भारत को गरीबों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए विकास पर ध्यान देने की जरूरत है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में एक फीसदी से दो फीसदी की वृद्धि हुई है।
कर प्रशासन में सुधार ने पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रोत्साहन कर अनुपालन की प्रक्रिया शुरू की है।
मार्च 2020 से रेपो दर में 115 आधार अंकों की कटौती हुई है। एक जनवरी 2021 को बैंकों की ऋण वृद्धि धीमी होकर 6.7 फीसदी पर आ गई।
23 दिसंबर 2020 तक भारत सरकार ने 41,061 स्टार्टअप्स को मान्यता दी। देशभर में 39,000 से ज्यादा स्टार्टअप्स के जरिए 4,70,000 लोगों को रोजगार मिला है। एक दिसंबर 2020 तक सिडबी ने सेबी के पास रजिस्टर्ड 60 अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स को 4,326.95 करोड़ रुपये देने की प्रतिबद्धता जताई है।
सर्वे में हेल्थकेयर पर सरकारी खर्च जीडीपी का 2.5 से तीन फीसदी तक ले जाने की बात कही गई है। 2017 की नेशनल हेल्थ पॉलिसी में भी यह लक्ष्य रखा गया था। आगे कहा गया कि इंटरनेट कनेक्टिविटी और हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में खर्च बढ़ाना चाहिए।
देश की कंपनियां रिसर्च एंड डेवलपमेंट एक्टिविटीज पर ज्यादा खर्च करने के बजाय किसी तरह काम चलाने के ‘जुगाड़’ में लगी रहती हैं। जुगाड़ इनोवेशन पर निर्भरता से हम भविष्य के लिए इनोवेट करने का अहम मौका गंवा देंगे।
धानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) ने स्वास्थ्य बीमा कवरेज को बढ़ाया है। 2015-16 से 2019-20 तक बिहार, असम और सिक्किम में स्वास्थ्य बीमा वाले परिवारों का अनुपात 89 फीसदी बढ़ा।
जिन राज्यों ने पीएम-जेएवाई को लागू किया था, इन सभी राज्यों में स्वास्थ्य बीमा वाले परिवारों के अनुपात में 54 फीसदी की वृद्धि हुई। वहीं जिन्होंने इसे लागू नहीं किया था, इनमें 10 फीसदी की गिरावट आई।
योजना लागू करने वाले राज्यों में 2015-16 से 2019-20 तक राज्यों में शिशु मृत्यु दर में 12 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं जिन राज्यों में यह लागू नहीं की गई थी, उनमें शिशु मृत्यु दर में 20 फीसदी की गिरावट आई है।
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