न्यूज़ डेस्क : कृषि कानूनों के विरोध में बैठे किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है। किसान हर हाल में तीनों कानूनों को निरस्त करवाने के लिए डटे हुए हैं। इसके समर्थन में किसान संगठनों ने आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है। देश भर में किसानों द्वारा बुलाए गए इस बंद को समर्थन मिल रहा है। तमाम राजनीतिक पार्टियां किसानों को समर्थन में सामने आई हैं। अब कई बैंक यूनियनों ने भी नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों का समर्थन किया है। यूनियनों ने सरकार से इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाने का आग्रह किया है।
क्या कहा बैंक यूनियों ने?
ऑल इंडिया बैंक इम्पलॉइज एसोसिएशन (एआईबीईए) ने बयान में कहा कि सरकार को आगे आकर देश और किसानों के हित में उनकी मांगों का समाधान करना चाहिए। अधिकारियों की यूनियनों, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी), ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (एआईबीओए) तथा इंडियन नेशनल बैंक ऑफिसर्स कांग्रेस (आईएनबीओसी) ने सरकार से आग्रह किया है कि वह इन विधेयकों को राष्ट्रपति के विशेष आदेश के जरिए प्रवर समिति को भेजकर गतिरोध दूर करे।
महामारी के दौरान सिर्फ कृषि क्षेत्र का रहा सकारात्मक प्रदर्शन : किसान संगठनों का कहना है कि तीनों नए कृषि कानून- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020 और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर कृषक (संरक्षण एवं सशक्तीकरण) कानून-2020 से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और वे बड़ी कंपनियों की ‘दया’ पर निर्भर हो जाएंगे। इन कानूनों को सितंबर में लागू किया गया है। अधिकारियों की तीनों यूनियनों ने संयुक्त बयान में कहा कि, ‘हमारे देश को शांति चाहिए और किसानों की दिक्कतों को दूर किया जाना चाहिए। कोविड-19 महामारी के दौरान सिर्फ कृषि ही ऐसा क्षेत्र था, जिसका प्रदर्शन सकारात्मक रहा। यह इस क्षेत्र की बुनियादी ताकत को दर्शाता है।’
विरोध के मुख्य कारण क्या हैं?
एपीएमसी में किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य मिलता है, लेकिन सरकार ने इससे संबंधित कानून में यह साफ नहीं किया गया है कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता है कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें।
इसके साथ ही सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वो सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें। ऐसे में वो व्यापारियों को कम कीमत पर अपनी फसल बेच सकते हैं और व्यापारी अपने पास उनकी फसल जमा कर सकते हैं। क्योंकि व्यापारी के भंडारण की सुविधा अच्छी होगी तो वो अपने हिसाब से बाजार में फसल को बेचेंगे। किसानों का कहना है कि ऐसा करने से फसल की कीमत तय करने का अधिकार बड़े व्यापारियों या कंपनियों के पास आ जाएगा और किसानों की भूमिका ना के बराबर हो जाएगी।
नए बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण लगाएंगी। ये स्थितियां अकाल, युद्ध, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा हो सकती है।
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