न्यूज़ डेस्क : ऊपर से देखिए तो सब ठीकठाक लगता है, लेकिन नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के भीतर लगातार नेतृत्व और अधिकार के सवाल पर जंग छिड़ी हुई है। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के बुलावे पर उनके आधिकारिक निवास बालूवाटार में पार्टी सचिवालय की बैठक हुई और उसमें ओली के विपरीत ध्रुव की तरह काम करने वाले पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल भी पहुंचे। दोनों नेताओं ने पार्टी के महासचिव बिष्णु प्रसाद पौडेल को उनके जन्मदिन पर बधाइयां दीं, केक काटा गया, माहौल भी बेहद खुशनुमा नजर आया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच उनके अलग-अलग प्रस्तावों की वजह से सीधे तौर पर कोई बातचीत नहीं हुई।
28 नवंबर को पार्टी सचिवालय की बैठक में प्रधानमंत्री ओली ने अपनी जो 38 पेज की रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें साफ तौर पर दहल पर कई आरोप लगाए गए थे। जबकि 13 नवंबर को हुई बैठक में दहल ने 19 पेज की रिपोर्ट में ओली पर कुछ आरोप लगाए थे। ओली ने दहल से दुगनी लंबी रिपोर्ट बनाई और दहल पर आरोपों की झड़ी लगा दी। उन्होंने दहल के सभी आरोपों को खारिज किया और उनपर गलत नीयत से रिपोर्ट बनाने का आरोप लगाया। अपनी रिपोर्ट में ओली ने साफ तौर पर कह दिया था कि दहल को अगर पार्टी में बने रहना है, तो उनके आगे झुककर रहना होगा।
मंगलवार को हुई बैठक में पार्टी के अन्य नेताओं ने पौडेल के जन्मदिन के बहाने एक बार फिर दोनों नेताओं को एकसाथ लाने की कोशिश की। इस दौरान नेताओं ने कहा कि इस वक्त दो नेताओं के अहम की लड़ाई से ज्यादा जरूरी है एकजुटता के साथ पार्टी और सरकार चलाना। अगर ऐसा नहीं होता, तो पार्टी भी बदनाम होगी और सरकार भी। विपक्ष ऐसे मौकों की तलाश में रहता है और कम से कम दोनों नेताओं को ये समझना चाहिए कि एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से ज्यादा जरूरी है मिलकर पार्टी और देश को चलाना। बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता झालानाथ खनाल, माधव कुमार नेपाल और बामदेव गौतम के अलावा सचिवालय के ज्यादातर सदस्य मौजूद थे।
पार्टी सचिवालय की इधर लगातार हुई बैठकों के बाद अब 3 दिसंबर को पार्टी की स्थाई समिति (स्टैंडिंग कमेटी) और 10 दिसंबर को केन्द्रीय समिति (सेंट्रल कमेटी) की बैठक होनी है। इन दोनों ही बैठकों को बेहद अहम माना जा रहा है। खासकर इनमें ये तय हो जाने की संभावना है कि किसके पास कितना अधिकार और कौन सी अहम जिम्मेदारी होगी। ओली प्रधानमंत्री पद से हटने को राजी नहीं हैं, लेकिन उन्होंने ये भरोसा जरूर दे रखा है कि वह दिसंबर में पार्टी अध्यक्ष का पद जरूर छोड़ देंगे और पार्टी की पूरी जिम्मेदारी यानी बतौर इकलौते अध्यक्ष दहल की होगी।
इसके बावजूद पार्टी के तमाम नेता इस बात को लेकर खासे परेशान और चिंतित हैं कि जब दोनों नेताओं में बातचीत नहीं होगी, सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं होंगे, तो सरकार और पार्टी के बीच बेहतर तालमेल कैसे होगा। इसलिए माना जा रहा है कि सत्ता और ताकत की इस जंग में देश की जनता और विपक्ष को उंगली उठाने का मौका न मिले, ऐसी कोई न कोई रणनीति बन सकती है। कोई समन्वय समिति भी बन सकती है, जो ये जिम्मेदारी उठाए।
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