नहीं रहे छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का रिकॉर्ड बनाने वाले राम विलास पासवान, 74 साल की उम्र मे निधन

न्यूज़ डेस्क : लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक, पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान भारतीय दलित राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक थे। पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में हुआ था। वह एक अनुसूचित जाति परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम जामुन पासवान और माता का नाम सिया देवी था। पासवान ने कोसी कॉलेज, पिल्खी और पटना विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक और मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की थी। उन्हें 1969 में बिहार पुलिस में डीएसपी के रूप में उन्हें चुना गया था।

 

 

रामविलास पासवान मंझे हुए राजनेताओं में से एक थे। वे एक  ऐसे कद्दावर नेता थे जिनके साथ छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की शानदार उपलब्धि जुड़ी है। वे चुनावी माहौल को भांपकर बता देते थे की जीत किसकी होने वाली है। 

 

 

राजनीतिक जीवन

रामविलास पासवान के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई और आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की।

 

पासवान 1969 में एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में बिहार राज्य विधान सभा के लिए चुने गए थे। 1974 में राज नारायण और जयप्रकाश नारायण के सानिध्य में लोकदल के महासचिव बने। वे व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी थे। पासवान मोरारजी देसाई के साथ होकर लोकबंधु राज नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी-सेक्युलर में शामिल हुए।

 

 

1975 के आपातकाल में गए जेल और रिहा होने पर रिकॉर्ड मतों से जीत

1975 में, जब भारत में आपातकाल की घोषणा की गई , तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्होंने पूरा समय जेल में बिताया। 1977 में रिहा होने पर, वे जनता पार्टी के सदस्य बन गए और पहली बार इसकी टिकट पर संसद के लिए चुनाव जीत हासिल की, और उन्होंने सबसे अधिक अंतर से चुनाव जीतने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया। वे 1980 और 1984 में हाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र से 7 वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए। 1983 में उन्होंने दलित मुक्ति और कल्याण के लिए एक संगठन दलित सेना की स्थापना की।

 

पासवान 1989 में 9वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए और उन्हें विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में केंद्रीय श्रम और कल्याण मंत्री नियुक्त किया गया। 1996 में उन्होंने लोकसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन का भी नेतृत्व किया क्योंकि प्रधान मंत्री राज्य सभा के सदस्य थे। यह वह वर्ष भी था जब वे पहली बार केंद्रीय रेल मंत्री बने। उन्होंने 1998 तक उस पदभार को संभाला।  

 

 

लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना और इन छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का रिकॉर्ड

लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना

वर्ष 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) बनाने के लिए पासवान जनता दल से अलग हो गए। 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद, पासवान यूपीए सरकार में शामिल हो गए और उन्हें रसायन और उर्वरक मंत्रालय और इस्पात मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बनाया गया।

 

फरवरी 2005 में बिहार में किंग मेकर के रूप में उभरे

फरवरी 2005 के बिहार राज्य चुनावों में, पासवान की पार्टी एलजेपी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। परिणाम यह हुआ कि कोई भी विशेष दल या गठबंधन अपने आप सरकार नहीं बना सका। हालांकि, पासवान ने लालू यादव का समर्थन करने से लगातार इनकार किया।

 

छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का रिकॉर्ड

लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान के नाम छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की शानदार उपलब्धि जुड़ी है। 1989 में जीत के बाद वह वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। एक दशक के भीतर ही वह एचडी देवगौडा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री बने।

 

1990 के दशक में जिस ‘जनता दल’ धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनाए गए और बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री बने। इसके बाद 2004 में यूपीए से जुड़ गए तथा मनमोहन सिंह के अंदर काम किया। फिर 2014 में प्रधान मंत्री मोदी के कैबिनेट में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का कार्यभार संभाला।

 

 

वर्ष 2014 के चुनाव में यूपीए से अलग होकर एनडीए में शामिल हो गए

यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों में तब दूरी आ गयी जब 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिला और इस दौरान पासवान अपने गढ़ हाजीपुर में ही हार गए थे। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने उन्हें लड़ने के लिए सात सीटें दी। लोजपा छह सीटों पर जीत गयी

 

चुनावी मिजाज भांपने में माहिर

राम विलास पासवान चुनावी मिजाज भांपने में माहिर थे। चुनाव होने से पहले उन्हें अंदाजा लग जाता था कि कौन सा गठबंधन उनके लिए उपयुक्त रहेगा

 

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