कॉर्पोरेट जगत के बिचौलियों के साथ मिलीभगत कर सरकारी अधिकारियों ने ही लगाया बैंको को बट्टा : रिपोर्ट

भारत में बैंकों के अभिशासन यानी कामकाजी व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए गठित की गई पीजे नायक समिति ने अपनी रिपोर्ट में भी इस तरह की बातों का उल्लेख किया था…

 

 

न्यूज़ डेस्क ; भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों का जो बंटाधार हुआ है, उसके पीछे सरकारी कर्मियों का ही हाथ रहा है। सरकारी अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर कॉर्पोरेट जगत के बिचौलियों की वह टोली, जो बैंकों के ऋण प्रस्ताव की फेरी लगाती रहती है, बैंकों के कामकाज को प्रभावित करती रही है। भारत में बैंकों के अभिशासन यानी कामकाजी व्यवस्था की समीक्षा करने के लिए गठित की गई पीजे नायक समिति ने अपनी रिपोर्ट में भी इस तरह की बातों का उल्लेख किया था।

 

 

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार के कई अंग अनौपचारिक मौखिक निर्देश जारी करते हैं। वे ऐसे ही लहजे में सलाह भी दे देते हैं। खास बात ये है कि उनके ये निर्देश या सलाह कभी भी आधिकारिक रिकॉर्ड पर नहीं आ पाते। यह नियंत्रण का एक ऐसा तरीका होता है जो बैंक की कार्यप्रणाली का गंभीर तौर से राजनीतिकरण करता है। इन तरीकों का इस्तेमाल ऋण मंजूरी के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। इसके पीछे जो लॉबी काम करती है, उसमें कॉर्पोरेट जगत के लोग और कुछ उधारकर्ता शामिल होते हैं। यही टोली बैंकों के ऋण प्रस्ताव की फेरी लगाने वाले बिचौलियों के अनौपचारिक व्यवसाय को जन्म देती है।

 

 

वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के अनुसार, बिचौलियों का यह अनौपचारिक व्यवसाय बैंकिंग उद्योग को बुरी तरह संकटग्रस्त कर देता है। ये बातें सरकार के ध्यान में हैं। मई 2014 में जब पीजे नायक समिति ने अपनी रिपोर्ट दी थी तो उसके बाद कई नए कदम उठाए गए थे। जनवरी 2015 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ सरकार द्वारा आयोजित ज्ञान संगम विचार विमर्श के दौरान सरकार ने स्पष्ट शब्दों में यह संदेश दिया था कि वाणिज्यिक निर्णयों सहित पीएसबी के कार्यों में कोई भी हस्तक्षेप नहीं होगा। वित्त मंत्रालय ने अपने कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से भारत सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को यह सलाह दी थी कि बैंकों को अपने समस्त वाणिज्यिक निर्णय अपने संगठन के सर्वोत्तम हित में लेने चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया था कि ऐसे सभी निर्णय मामले के तथ्यों और वस्तुनिष्ठता के आधार पर लिए जाएं।

 

 

पीएसबी में बैंकिंग तंत्र की निगरानी के लिए उठाए गए ये कदम

वर्ष 2015 से पीएसबी के अध्यक्ष, मुख्य कार्यपालकों तथा अन्य पूर्णकालिक निदेशकों की नियुक्तियां, समुचित दूरी बनाते हुए एक पेशेवर बैंक बोर्ड ब्यूरो के माध्यम से की जा रही है। बोर्ड ने अभ्यार्थियों के साथ विचार विमर्श/साक्षात्कार के दिन ही चयन के नतीजों की घोषणा के द्वारा चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की है। इससे चयन प्रक्रिया की निरपेक्षता सुदृढ़ हुई है। इससे बैंक बोर्ड और प्रबंधन द्वारा बैंकिंग तंत्र की निगरानी में मजबूती देखने को मिली है।

 

 

राष्ट्रीयकृत बैंकों में अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक के पद को गैर कार्यकारी अध्यक्ष तथा एक प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में अलग-अलग कर दिया गया है। इससे बोर्ड का स्वतंत्र पर्यवेक्षण तथा पीएसबी में बैंकिंग तंत्र की निगरानी मजबूत बनी है। भगौड़ा आर्थिक अपराधी की संपत्ति को जब्त करने, पीएसबी से 50 करोड़ रुपये से अधिक की ऋण सुविधा प्राप्त करने वाली कंपनियों के प्रवर्तकों/निदेशकों तथा अन्य प्राधिकृत हस्ताक्षकर कताओं के पासपोर्ट की सत्यापित प्रति प्राप्त करने, पीएसबी के प्रमुखों को लुकआउट सर्कुलर जारी करने के लिए अनुरोध करने की शक्ति प्रदान करने की खातिर भगौड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम 2018 अधिनियमित किया गया है।

 

 

इस तरह आएगी जोखिम में कमी

वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक पूरे आंकड़ा स्रोतों में व्यापक सम्यक तत्परता के लिए तीसरे पक्ष आंकड़ा स्रोतों के उपयोग के माध्यम से हामीदारी की खातिर बैंकिंग तंत्र की निगरानी तथा ऋणों की निगरानी प्रक्रिया मजबूत बनी है। इससे गलत सूचना देने और धोखाधड़ी के कारण संभावित जोखिम में कमी आएगी। पीएसबी में व्यापक आटोमेटेड आरंभिक चेतावनी प्रणाली लागू की गई है। उधार में भाग लेने के लिए पीएसबी के अधिदेशित न्यूनतम 10 फीसदी एक्सपोजर के साथ कंसोर्टियम उधार में बैंक तंत्र को और ज्यादा प्रभावी बनाया गया है। इससे बोर्ड के सदस्यों की संख्या को प्रबंधनीय संख्या तक कम किया जा सकता है। उच्च मूल्य वाले ऋणों की स्वीकृति और निगरानी की भूमिकाओं को सख्ती से अलग अलग किया गया है। ढाई सौ करोड़ रुपये या उससे अधिक के ऋण की निगरानी के लिए वित्तीय तथा संबंधित क्षेत्र, दोनों का ज्ञान रखने वाली विशेषज्ञ निगरानी एजेंसियों को तैनात किया गया है।

 

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