न्यूज़ डेस्क : दुनियाभर में कोरोना वायरस का मामला काफी तेजी से बढ़ रहा है। अब तक इससे तीन करोड़ सात लाख से भी ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं जबकि नौ लाख 57 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि खुशी की बात ये है कि अब तक दो करोड़ 24 लाख से ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आकर ठीक भी हो चुके हैं। फिलहाल सक्रिय मामलों की संख्या 74 लाख 20 हजार के आसपास ही है। कोरोना को लेकर लगातार शोध चल रहे हैं। इसी कड़ी में ऑस्ट्रेलिया में हुए शोध ने दुनियाभर के लोगों को हैरान कर दिया है। इस शोध में यह पाया गया है कि एक खास ब्लड ग्रुप वाले लोगों पर इस वायरस का असर कम होता है। आइए जानते हैं इस शोध के बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं और साथ ही कोरोना से जुड़े अन्य जरूरी सवालों के जवाब भी जानने की कोशिश करते हैं।
रेमडेसिविर काफी महंगी दवा है, इसे जेनेरिक दवा में क्यों नहीं शामिल किया जा रहा है?
डॉ. अपर्णा अग्रवाल बताती हैं, ‘रेमडेसिविर नई दवा है। जब कोई भी नई दवा आती है तो उत्पादन कंपनी उसे पेटेंट करा कर बेचती है, तो ऐसी दवाइयां काफी महंगी मिलती हैं। हालांकि हमारे देश में यह दवा अभी बहुत ज्यादा महंगी नहीं है। सरकार इनपर नजर बनाए हुए है। सभी को यह समझना होगा कि यह दवा अभी मरीजों पर ट्रायल के रूप में दी जा रही है। ऐसा नहीं है कि रेमडेसिविर से सभी मरीज ठीक हो रहे हैं। इसके साथ अन्य दवाइयों पर भी ट्रायल चल रहा है।’
कोरोना से ठीक होने के बाद सबसे कब तक मिल सकते हैं?
डॉ. अपर्णा अग्रवाल के मुताबिक, ‘रिपोर्ट नेगेटिव आ चुकी है और 17 दिन हो गए हैं तो कोई परेशानी नहीं है। सबसे साथ उठ-बैठ सकते हैं, लेकिन सामान्य लोगों के लिए जो भी नियम बनाए गए हैं, उनका पालन आपको भी करना है। ठीक हुए मरीजों के लिए कोई अलग नियम नहीं हैं।’
क्या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी कोरोना की जांच संभव है?
डॉ. अपर्णा अग्रवाल बताती हैं, ‘सरकार ज्यादा से ज्यादा कोरोना टेस्ट करने की कोशिश कर रही है। आरटी-पीसीआर टेस्ट को ही अच्छा माना जाता है, जिसके लिए लैब की जरूरत होती है और गांव में लैब संभव नहीं है। इसलिए गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में रैपिड एंटीजन टेस्ट शुरू किए जा रहे हैं, लेकिन लोगों को ध्यान रखना है कि रैपिड एंटीजन टेस्ट में पॉजिटिव आने पर तुरंत आइसोलेट हो जाएं, भले ही लक्षण नजर आएं या नहीं। कई बार मरीज एसिम्प्टोमेटिक होते हैं। अगर लक्षण आ रहे हैं और फिर भी पॉजिटिव नहीं आए हैं, तो आरटी-पीसीआर के लिए जिला अस्पताल जाएं।’
सीडीसी, अमेरिका के निदेशक ने कहा है कि वैक्सीन से भी ज्यादा प्रभावी मास्क है, क्या यह सच है?
डॉ. अपर्णा अग्रवाल के मुताबिक, ‘अमेरिका के सीडीसी के निदेशक रॉबर्ट रेडफील्ड ने यह बात पूरी दुनिया में मास्क पर हुए बहुत सारे अध्ययनों के आधार पर कही है। अगर आमने-सामने बैठे हुए हैं और मास्क लगाए हैं और सुरक्षित दूरी बनाए हैं, तो सुरक्षा कई गुना बढ़ जाती है। लेकिन जरूरी है कि मास्क सही से लगाया हो, मुंह और नाक अच्छी तरह से ढका हुआ हो। वैक्सीन की बात करें तो उनपर कई ट्रायल चल रहे हैं। वायरस से बचाव के लिए एंटीबॉडी होते हैं, जो वैक्सीन देने के बाद करीब 70 फीसदी लोगों में ही बन पाते हैं, जबकि मास्क से 80-85 फीसदी तक सुरक्षा मिलती है।’
ऑस्ट्रेलिया के शोध में पाया गया है कि O+ वालों को कोरोना का खतरा कम होता है?
दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की डॉ. अपर्णा अग्रवाल बताती हैं, ‘ऑस्ट्रेलिया में करीब 10 लाख लोगों के डीएनए पर शोध हुआ है। उन्होंने पाया कि O+ ब्लड ग्रुप वालों पर वायरस का असर कम होता है। इससे पहले हार्वर्ड से भी रिपोर्ट आई थी, लेकिन उसमें कहा गया था कि O+ वाले लोग कोरोना पॉजिटिव कम हैं, लेकिन गंभीरता और मृत्यु दर में बाकियों की तुलना में कोई फर्क नहीं है। अभी और देशों में हुए रिसर्च की रिपोर्ट आने पर ही कुछ कह सकते हैं। फिलहाल लोगों को इससे यह नहीं मानना है कि उन्हें संक्रमण नहीं होगा।’
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