न्यूज़ डेस्क : भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सत्ता वाले 13 राज्यों ने जीएसटी राजस्व में आई कमी की पूर्ति के लिए केंद्र की तरफ से दिए गए कर्ज के विकल्प को चुन लिया।
हालांकि विपक्षी दलों की सत्ता वाले राज्य अब भी जीएसटी की कमी को ऐसे पूरा किए जाने के खिलाफ डटे हुए हैं। इनमें पश्चिमी बंगाल, केरल, दिल्ली, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु शामिल हैं। इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर विरोध जताया है।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने रविवार को बताया कि विकल्प भरने वाले 13 राज्यों में बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और मेघालय शामिल हैं, जबकि अगले एक या दो दिन में छह और राज्य अपने विकल्प भर देंगे। इन छह राज्यों में गोवा, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
राज्य चालू वित्त वर्ष में वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) राजस्व में 2.35 लाख करोड़ रुपये की भारी कमी से जूझ रहे हैं। केंद्र के आकलन के हिसाब से राजस्व की इस कमी में करीब 97 हजार करोड़ रुपये जीएसटी नियम लागू होने के कारण हैं और शेष 1.38 लाख करोड़ रुपये राज्यों की अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 (कोरोना वायरस) के कारण पड़े दुष्प्रभावी का असर है।
पिछले महीने 27 अगस्त को जीएसटी काउंसिल की 41वीं बैठक में केंद्र ने राज्यों को केंद्रीय फंड में जीएसटी की कमी को पूरा करने के लिए दो विकल्प दिए थे। पहले विकल्प में राज्यों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से दी गई विशेष विंडो की सुविधा के जरिये 97 हजार करोड़ रुपये का विकल्प लेने के कहा था।
दूसरे विकल्प के तौर पर 2.35 लाख करोड़ रुपये बाजार से कर्ज के तौर पर उठाने को कहा गया था। साथ ही इस कर्ज को चुकाने के लिए वस्तुओं पर लगने वाले कंपनसेशन सेस को 2022 तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया था।
मणिपुर ने आरबीआई नहीं बाजार से कर्ज का भरा विकल्प
13 राज्यों में से 12 ने आरबीआई की विशेष विंडो के जरिये कर्ज लेने का विकल्प भरा है। इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और ओडिशा शामिल हैं। महज मणिपुर ने ही बाजार से कर्ज उठाने का विकल्प भरा है।
Comments are closed.